अंजुरी से पीता हूँ मय
रक्खा क्या है पैमाने में
दिल से पिला ऐ साकी
आया तेरे मयखाने में.
गम नहीं सुकूं ले के आया हूँ
खिज़ा नहीं बहार ले के आया हूँ
दिल से झूम ले साकी
है जश्न तेरे मयखाने में .
नशा नहीं कुछ और है यह
गुनाह नहीं कुछ और है यह
आ गले लग जा साकी
वस्ल अपना तेरे मयखाने में.
मंदिर है मस्जिद है यह
पूजा ओ इबादात है यह
सजदे में झुक जा साकी
है खुदा भी तेरे मयखाने में.
रूह से खींचती है मय
जिस्म से रिसती है मय
रौं रौं में घुली है मय
मय मय है तेरे मयखाने में.
धुन बन गयी है नयी
नगमा भी है नया यह
साज़ सब बजने लगे
महफ़िल तेरे मयखाने में.
मर के होना है दफ़न
ख़ाक में मिल जाना है
लहद बन जाये मेरी
साकी तेरे मयखाने में।
.......और साकी ने प्यार से देखा, उसकी नज़रों ने कहा :
मयकश तेरा यूँ आना,अब मेरे मयखाने में
बन बैठा इक अफसाना ,अब मेरे मयखाने में
जिस्मों की सुराही से,छलके है मय रूह की
नज़रें बनी पैमाना, अब मेरे मयखाने में
मय रूहों की खिंचती है,रूहों में ही ढलती है
रों रों हुआ रिन्दाना, अब मेरे मयखाने में
वस्ल तेरा,तेरी साक़ी का ,कुछ ऐसा हुआ जानम
ले थम गया ज़माना ,अब मेरे मयखाने में
तार बज उठे हैं दिल के ,सांसें हुई झंकारित
लब गा रहे तराना , सुन मेरे मयखाने में
सजदे में झुकी साक़ी,ये उसकी इबादत है
तुझको खुदा है माना , अब मेरे मयखाने में
मदहोश हुई है साक़ी,कैसा मिला ये मयकश
दिल हो गए दीवाने ,अब मेरे मयखाने में
मयकश हुआ है साक़ी,साक़ी भी अब है मयकश
बदला है यूँ फ़साना, अब मेरे मयखाने में ........
और इस तरह यह जुगलबंदी एक बार के लिए पूरी हुई.......
Sunday, November 29, 2009
Scribbling : Life And Death
Life as we live
Is anonymous
Just
Breathing with others
Compromising
Imitating
Pretending....
Death is unique
Always unique
Death is just alone
One dies alone
No society
No mass
No crowd
They are there
When we breathe ;
When we die
We die alone
Absolutely alone
Utterly alone...
Death has quality
Unique to it
Death is the
Only truth
When revealed
We are free from
All the clutches.....
Sick and tired of
Compromise
Imitating
Crowd
Society
Mass....?
We call it
Fed up of the
Phenomenon
Called LIFE
Let us try death
In our own way
No suicide
No killing of
The body
Only happening of
A change in
Approach.......
Let us
Not live
As others want
Let us live
In our own way
And
This is death of
Binding
Conditioning
Imitating
And this death is
The true life
To rejoice.......
This to happen
At inner level
Let outer
Remain
As it is
Like a wrapping
Like a packaging
To protect loving
From the vagaries
Of living.......
Is anonymous
Just
Breathing with others
Compromising
Imitating
Pretending....
Death is unique
Always unique
Death is just alone
One dies alone
No society
No mass
No crowd
They are there
When we breathe ;
When we die
We die alone
Absolutely alone
Utterly alone...
Death has quality
Unique to it
Death is the
Only truth
When revealed
We are free from
All the clutches.....
Sick and tired of
Compromise
Imitating
Crowd
Society
Mass....?
We call it
Fed up of the
Phenomenon
Called LIFE
Let us try death
In our own way
No suicide
No killing of
The body
Only happening of
A change in
Approach.......
Let us
Not live
As others want
Let us live
In our own way
And
This is death of
Binding
Conditioning
Imitating
And this death is
The true life
To rejoice.......
This to happen
At inner level
Let outer
Remain
As it is
Like a wrapping
Like a packaging
To protect loving
From the vagaries
Of living.......
Sunday, November 15, 2009
Scribbling : EGO and SELF.
एक अभिन्न मित्र की इस रचना को यहाँ शेयर करना चाहता हूँ क्योंकि अगली रचना जो इस कलम की है वह इसकी पूरक है.
बाल बराबर अंतर है
अहम् व आत्मसम्मान में
इक फैलाता विष जड़ गहरी
दूजा फूल खिलाये जहान में
स्वयं जो सोचें स्वाभिमान है
वही दूसरे का अभिमान
छोटे से एक मतान्तर को
मान लिया जाता अपमान
जैसा अंतस होता जिसका
प्रतिबिम्ब दिखता वही अन्य में
खोल के मन की आँखें देखो
घिर बैठे क्यूँ तिमिर अरण्य में
ऋण ऊर्जा होती अहम् की
करती निज का ही नुकसान
दृढ कर ऊर्जा धन की अपनी
ढह जाएगा मिथ्या अभिमान
( ऋण-नकारात्मक और धन-सकारात्मक के लिए प्रयोग किया है )
People have EGO
A poor substitute of
SELF
We create EGO
It is just 'make believe'
We create this monster
As we are not aware of our
TRUE SELF..
We cannot live without center
Therefore, we invent
A false center
That is EGO.
The society helps the
False center
As the false person can
Easily be dominated
He always seeks
Domination
To have a feeling of
"I am"
When fulfilling someone's
Orders in the name of
Love, faith or compassion
He feels,
"I have some worth."
He has no meaning of
His own
Somebody else has to give this.
His worth
His meaning
His life
All are borrowed.
Others give us a toy
A toy called Ego
They support Ego
They praise ego
They nourish ego
If you follow their dictates
You are respected
If you donot follow
You will be disrespected
This way they punish your EGO
Keeping it satrved
You cannot live
Without a center
So this false center
THE EGO
To maintain this
You are ready to fulfill
All their demands
Rational...Irrational.
Drop this
False entity
called 'THE EGO'
Dropping this is
Half the work
And other half is
To be aware of
'THE TRUE SELF.'
The EGO is created thing
This is rootless
This has to die
The true SELF existed
Before you were born
And shall exist
After you would go
Just realize the
Difference of False and True
Just assimilate the
Difference of EGO and SELF.
बाल बराबर अंतर है
अहम् व आत्मसम्मान में
इक फैलाता विष जड़ गहरी
दूजा फूल खिलाये जहान में
स्वयं जो सोचें स्वाभिमान है
वही दूसरे का अभिमान
छोटे से एक मतान्तर को
मान लिया जाता अपमान
जैसा अंतस होता जिसका
प्रतिबिम्ब दिखता वही अन्य में
खोल के मन की आँखें देखो
घिर बैठे क्यूँ तिमिर अरण्य में
ऋण ऊर्जा होती अहम् की
करती निज का ही नुकसान
दृढ कर ऊर्जा धन की अपनी
ढह जाएगा मिथ्या अभिमान
( ऋण-नकारात्मक और धन-सकारात्मक के लिए प्रयोग किया है )
People have EGO
A poor substitute of
SELF
We create EGO
It is just 'make believe'
We create this monster
As we are not aware of our
TRUE SELF..
We cannot live without center
Therefore, we invent
A false center
That is EGO.
The society helps the
False center
As the false person can
Easily be dominated
He always seeks
Domination
To have a feeling of
"I am"
When fulfilling someone's
Orders in the name of
Love, faith or compassion
He feels,
"I have some worth."
He has no meaning of
His own
Somebody else has to give this.
His worth
His meaning
His life
All are borrowed.
Others give us a toy
A toy called Ego
They support Ego
They praise ego
They nourish ego
If you follow their dictates
You are respected
If you donot follow
You will be disrespected
This way they punish your EGO
Keeping it satrved
You cannot live
Without a center
So this false center
THE EGO
To maintain this
You are ready to fulfill
All their demands
Rational...Irrational.
Drop this
False entity
called 'THE EGO'
Dropping this is
Half the work
And other half is
To be aware of
'THE TRUE SELF.'
The EGO is created thing
This is rootless
This has to die
The true SELF existed
Before you were born
And shall exist
After you would go
Just realize the
Difference of False and True
Just assimilate the
Difference of EGO and SELF.
Thursday, November 12, 2009
Touch......
***
When you
Take my hand
In your hand
With love and care
My hand becomes
Alive
My whole consciousness
Becomes focused
On my hand.
I become aware of
My hand....
My hand
Throbs with
New life
It pulsates with
Something
Which was not there
Just a moment before.
Just a moment before
I was completely
Oblivious of
My hand
Now there is
So much
My whole body has
Disappeared
Only and only
My hand is there.......
When you
Take my hand
In your hand
With love and care
My hand becomes
Alive
My whole consciousness
Becomes focused
On my hand.
I become aware of
My hand....
My hand
Throbs with
New life
It pulsates with
Something
Which was not there
Just a moment before.
Just a moment before
I was completely
Oblivious of
My hand
Now there is
So much
My whole body has
Disappeared
Only and only
My hand is there.......
Wednesday, November 11, 2009
बात जड़ की.........
.........
बिना सीखने
से ही
आ जाता है
हमें
करना
'लीकलकोलिये'
जो होते हैं
जड़
वर्णमाला की.......
कहतें हैं
निरर्थक
इनको
जो
समझते हैं
सृष्टि को
बिना मूल की
अमरबेल.....
बिना सीखने
से ही
आ जाता है
हमें
करना
'लीकलकोलिये'
जो होते हैं
जड़
वर्णमाला की.......
कहतें हैं
निरर्थक
इनको
जो
समझते हैं
सृष्टि को
बिना मूल की
अमरबेल.....
Monday, November 9, 2009
मनोकामना : मेरी भावना
........
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
क्या काम जलन घृणा का है
खेल यह सब तृष्णा का है
इस तिमिर को रोशन कर दे जो
उस प्रेम के दीप जलाएं हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
दर्द अन्य का समझ सकें
परहर्ष को अपना बूझ सकें
संवेदनशील बनें हम सब
ऐसा मानस अपनाएं हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
यशगान पिपासा हो ना हमें
पद की भी लिप्सा हो ना हमें
निज कर्म करें फल ना सोचें
गीता दर्शन ले आयें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
मैत्री की प्रबल भावना हो
सौहार्द स्नेह प्रभावना हो
मिलजुल के रहें आनन्द करे
ऐसा जीवन जी पायें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
वो लेता है देता ही नहीं
कृतज्ञ कभी होता ही नहीं
अवसर उसने तो दिया हमें
बस बात यही कर पायें हम .
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
मिथ्या आडम्बर को छोडें
अस्तित्व किसी का ना तोडें
हृदय भाव सम्मान करें
दुश्मन को गले लगायें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
दंश नहीं देना हम को
लेकिन फुफकार ज़रूरी है
आक्रामकता है एक कायरता
प्रभो! क्षमा वीर बन पायें हम .
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
क्या काम जलन घृणा का है
खेल यह सब तृष्णा का है
इस तिमिर को रोशन कर दे जो
उस प्रेम के दीप जलाएं हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
दर्द अन्य का समझ सकें
परहर्ष को अपना बूझ सकें
संवेदनशील बनें हम सब
ऐसा मानस अपनाएं हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
यशगान पिपासा हो ना हमें
पद की भी लिप्सा हो ना हमें
निज कर्म करें फल ना सोचें
गीता दर्शन ले आयें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
मैत्री की प्रबल भावना हो
सौहार्द स्नेह प्रभावना हो
मिलजुल के रहें आनन्द करे
ऐसा जीवन जी पायें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
वो लेता है देता ही नहीं
कृतज्ञ कभी होता ही नहीं
अवसर उसने तो दिया हमें
बस बात यही कर पायें हम .
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
मिथ्या आडम्बर को छोडें
अस्तित्व किसी का ना तोडें
हृदय भाव सम्मान करें
दुश्मन को गले लगायें हम.
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
दंश नहीं देना हम को
लेकिन फुफकार ज़रूरी है
आक्रामकता है एक कायरता
प्रभो! क्षमा वीर बन पायें हम .
जीवन के चमन में ऐ यारों
खुशियों के फूल खिलाएं हम
हरियाली चहुँ और रहे
कोई गुलशन एक लगायें हम.
यौवन......(आशु रचना )
....
एक कदम
आगे
दो कदम
पीछे
टेढी मेढ़ी चाल
हाल हुए
बेहाल
जरा खुद को
संभाल..........
यौवन का
जोश
गवां देता जब
होश
नौ दिन
चले
अढाई कोस ........
एक कदम
आगे
दो कदम
पीछे
टेढी मेढ़ी चाल
हाल हुए
बेहाल
जरा खुद को
संभाल..........
यौवन का
जोश
गवां देता जब
होश
नौ दिन
चले
अढाई कोस ........
Sunday, November 8, 2009
होगा साकार तुम्हारा सपना.....
...
पीपल की
घनी छाँव
मिल गयी
क्रोधी सूरज
क्या कर लेगा ?
घड़ी दो घड़ी
तप लेगा वह
तप कर फिर वह
शीतल होगा.........
क्यों बने
कठपुतली
समय की
सुख दुःख
अपनी राह
चलेंगे
सत्य कि ज्योति
जलाये रखना
स्वतः
समस्त कारज
संवरेंगे......
जब जब
धरती प्यासी होगी
मेघ गगन का
सागर होगा
जब जब बढेगा
कुटुंब कंस का
किसना आकर
हाज़िर होगा.......
क्यों डिगता
विवेक तुम्हारा
विश्वाश स्वयम में
कायम रखना
दृढ निश्चय यदि
रहे तुम्हारा
होगा साकार
तुम्हारा सपना.........
पीपल की
घनी छाँव
मिल गयी
क्रोधी सूरज
क्या कर लेगा ?
घड़ी दो घड़ी
तप लेगा वह
तप कर फिर वह
शीतल होगा.........
क्यों बने
कठपुतली
समय की
सुख दुःख
अपनी राह
चलेंगे
सत्य कि ज्योति
जलाये रखना
स्वतः
समस्त कारज
संवरेंगे......
जब जब
धरती प्यासी होगी
मेघ गगन का
सागर होगा
जब जब बढेगा
कुटुंब कंस का
किसना आकर
हाज़िर होगा.......
क्यों डिगता
विवेक तुम्हारा
विश्वाश स्वयम में
कायम रखना
दृढ निश्चय यदि
रहे तुम्हारा
होगा साकार
तुम्हारा सपना.........
Saturday, November 7, 2009
कुछ छोटी कवितायें .....
(१)
कर डालो निर्मूल....
ऋण अगन दुश्मन का
शेष अवशेष तनिक
बढेगा अपरम्पार
कर डालो निर्मूल सम्पूर्ण
यही उचित व्यवहार.....
(दुश्मन तभी समाप्त होता है जब दिल से दुश्मनी ख़त्म होती है)
(२)
कर डालो निर्मूल....
ऋण अगन दुश्मन का
शेष अवशेष तनिक
बढेगा अपरम्पार
कर डालो निर्मूल सम्पूर्ण
यही उचित व्यवहार.....
(दुश्मन तभी समाप्त होता है जब दिल से दुश्मनी ख़त्म होती है)
(२)
नथ औ कुर्सी
फर्क बस इतना है
नथ औ कुर्सी में
उसको उतारा जाता है
इससे उतारा जाता है...........
(३)
नथ औ कुर्सी में
उसको उतारा जाता है
इससे उतारा जाता है...........
(३)
कोमल जमीं-नाजुक आसमान
ना बरसा
अंतर के घन को
नयनों की राह से
पिघल ना जाये कहीं
यह कोमल जमीं
यह नाजुक आसमां.......
(४)
अंतर के घन को
नयनों की राह से
पिघल ना जाये कहीं
यह कोमल जमीं
यह नाजुक आसमां.......
(४)
स्पर्श
...
स्पर्श तुम्हारा पाकर
तार वीणा के जी गए
संगीत की सुरा को
हम रों रों से पी गए........
(५)
स्पर्श तुम्हारा पाकर
तार वीणा के जी गए
संगीत की सुरा को
हम रों रों से पी गए........
(५)
नौटंकी का साधु
नौटंकी में
बने 'गुप्ता'
साधु एक
टनटना नंदन,
फूंकी बीडी
जमाई दारू
जोर से बोले
अलख निरंजन !
(६)
उम्मीद-ऐ-वस्ल
उम्मीद-ऐ-वस्ल
दूरवालों की
हुआ करती है....
महसूस-ओ-एहसास का
सब खेल है सारा
अपनी हर इक साँस
तेरी पनाहों में
हुआ करती है......
(७)
भय
छूने सितारे
हुआ था अग्रसर
भय था गहन
मिली ना धरा
ना ही गगन.
_____________________
मुल्ला : अटक गया......
गुप्ता : ना रे लटक गया.....
_______________________
(८)
बने 'गुप्ता'
साधु एक
टनटना नंदन,
फूंकी बीडी
जमाई दारू
जोर से बोले
अलख निरंजन !
(६)
उम्मीद-ऐ-वस्ल
उम्मीद-ऐ-वस्ल
दूरवालों की
हुआ करती है....
महसूस-ओ-एहसास का
सब खेल है सारा
अपनी हर इक साँस
तेरी पनाहों में
हुआ करती है......
(७)
भय
छूने सितारे
हुआ था अग्रसर
भय था गहन
मिली ना धरा
ना ही गगन.
_____________________
मुल्ला : अटक गया......
गुप्ता : ना रे लटक गया.....
_______________________
(८)
मत खेल
मत खेल
जोश में
लहराती
लरज़ती
जुल्फों से मेरी
होश में रह
ऐ ! जानेमन
यह विग है
उतर ना जाये कहीं.......
(९)
बतीसी
ना गूंजी थी
हंसी उनकी
खामोशी थी
फिजाओं में
खोयी-खोयी सी
अदाएं थी
बोसा था
कोमल-कोमल सा...
बिसरा गए थे वो
लगाना
बतीसी अपनी.....
जोश में
लहराती
लरज़ती
जुल्फों से मेरी
होश में रह
ऐ ! जानेमन
यह विग है
उतर ना जाये कहीं.......
(९)
बतीसी
ना गूंजी थी
हंसी उनकी
खामोशी थी
फिजाओं में
खोयी-खोयी सी
अदाएं थी
बोसा था
कोमल-कोमल सा...
बिसरा गए थे वो
लगाना
बतीसी अपनी.....
प्रवंचक वय
घूम लिया
बस्ती सारी में
नहीं मिला क्यूँ
मेरा चेहरा...........
भौंके जा रहे हैं
स्वान
गली के
देख देख यह
शक्ल अजानी
समा लिया
प्रतिबिम्ब
दर्पण ने
किंतु प्रश्न
लगा है करने ,
होने लगी
चर्चा-विचर्चा
कौन है यह
अजनबी
चेहरा ?
सोचूं
होकर आकुल
व्याकुल
चुरा लिया
प्रवंचक वय ने
क्यूँ युवक सा
मुखड़ा मेरा........
कहाँ कहाँ
भटकूँ
तलाशता
खोयी हुई
सूरत अपनी को
नहीं सूझता
कुछ भी
मुझको
छाया है
घनघोर
अँधेरा.........
बस्ती सारी में
नहीं मिला क्यूँ
मेरा चेहरा...........
भौंके जा रहे हैं
स्वान
गली के
देख देख यह
शक्ल अजानी
समा लिया
प्रतिबिम्ब
दर्पण ने
किंतु प्रश्न
लगा है करने ,
होने लगी
चर्चा-विचर्चा
कौन है यह
अजनबी
चेहरा ?
सोचूं
होकर आकुल
व्याकुल
चुरा लिया
प्रवंचक वय ने
क्यूँ युवक सा
मुखड़ा मेरा........
कहाँ कहाँ
भटकूँ
तलाशता
खोयी हुई
सूरत अपनी को
नहीं सूझता
कुछ भी
मुझको
छाया है
घनघोर
अँधेरा.........
Friday, November 6, 2009
अंतर्मन (आशु रचना)
.......
मेघ गरज कर बरस गए हैं
भीगा भीगा सा अंतर्मन
स्पर्श प्रिये यूँ पाकर तेरा
प्रफुल्लित मेरा यह तन.
नयी कोंपले खिल आई है
सौंधी सौंधी महक लिए
मस्ती ऐसी छाई मुझ पे
चरण बढ़ रहे बहक लिए.
सर्वत्र छवि देखूं मैं तेरी
श्वास नयन सब में तू है
वाणी में है बात तुम्हारी
चिंतन में हर पल तू है.
भंग तपस्या करने मेरी
तू बन अप्सरा थी आई
रंग में मेरे रंग गयी तू तो
अपनी हस्ती बिसरायी.
बात वही अंदाज़ अलग है
क्रिया वही उद्देश्य अलग है
गिरते हैं वो हम उठते हैं
सोये हैं वो हम सजग हैं.
दृष्टि प्रकाशित ज्ञान-पुंज से
चित्त आलोकित भाव कुंज से
अंतर है यह सब अनुभव का
आनन्दित मन मधुर गुंज से.
प्रक्रिया एक है श्वास-निश्वास की
ऊर्जा एक विकास विनाश की
भेद प्रिये बस है चेतन का
ऋतु एक है हास परिहास की.
जोड़ हो सकता दो अंकों का
घटाव भी होता उन अंकों का
विभाजन हेतु वही संख्याएं
गुणन भी होता उन्ही अंकों का.
मिलन विनष्टि हेतु हो जाता
मिलन प्रेम सेतु बन जाता
मिलन प्रभु बिम्ब हो जाता
मिलन शांति केतु बन जाता.
सत्य-असत्य अज्ञात भ्रम है
असमंजस जीवन का एक क्रम है
वृतुल संपूर्ण ही प्रेम जनित है
शून्य अवस्था परम गणित है .
घटित जो होता वो संयोग है
पल प्रत्येक नया प्रयोग है
निर्भर करता कैसे ले हम
हर घटना एक सुयोग है.
(गुंज=पक्षियों का कलरव)
मेघ गरज कर बरस गए हैं
भीगा भीगा सा अंतर्मन
स्पर्श प्रिये यूँ पाकर तेरा
प्रफुल्लित मेरा यह तन.
नयी कोंपले खिल आई है
सौंधी सौंधी महक लिए
मस्ती ऐसी छाई मुझ पे
चरण बढ़ रहे बहक लिए.
सर्वत्र छवि देखूं मैं तेरी
श्वास नयन सब में तू है
वाणी में है बात तुम्हारी
चिंतन में हर पल तू है.
भंग तपस्या करने मेरी
तू बन अप्सरा थी आई
रंग में मेरे रंग गयी तू तो
अपनी हस्ती बिसरायी.
बात वही अंदाज़ अलग है
क्रिया वही उद्देश्य अलग है
गिरते हैं वो हम उठते हैं
सोये हैं वो हम सजग हैं.
दृष्टि प्रकाशित ज्ञान-पुंज से
चित्त आलोकित भाव कुंज से
अंतर है यह सब अनुभव का
आनन्दित मन मधुर गुंज से.
प्रक्रिया एक है श्वास-निश्वास की
ऊर्जा एक विकास विनाश की
भेद प्रिये बस है चेतन का
ऋतु एक है हास परिहास की.
जोड़ हो सकता दो अंकों का
घटाव भी होता उन अंकों का
विभाजन हेतु वही संख्याएं
गुणन भी होता उन्ही अंकों का.
मिलन विनष्टि हेतु हो जाता
मिलन प्रेम सेतु बन जाता
मिलन प्रभु बिम्ब हो जाता
मिलन शांति केतु बन जाता.
सत्य-असत्य अज्ञात भ्रम है
असमंजस जीवन का एक क्रम है
वृतुल संपूर्ण ही प्रेम जनित है
शून्य अवस्था परम गणित है .
घटित जो होता वो संयोग है
पल प्रत्येक नया प्रयोग है
निर्भर करता कैसे ले हम
हर घटना एक सुयोग है.
(गुंज=पक्षियों का कलरव)
Wednesday, November 4, 2009
मनुज........(Ashu Post)
...
मनु
जब कहते हैं
मानव को,
पुकारते हो
बार बार
क्यों
मुझे
मनुज कह कर......
मैं
मनुष्य की ही तो
संतान हूँ
किसी चौपाये
अथवा
कीड़े की नहीं
क्या तुम्हारी
दीठ ने भी
पीठ
मोड़ ली है ?
आकाशवाणी हुई
तुम्हे
मनुज कह कर
स्मरण दिलाया
जा रहा है
सृजन का
संस्कार का
संवेदना का
और
यह भी बताया
जा रहा है
तुम हो परिणाम
मिलन का
एक मानव और
मानवी के
जो
हुआ था इसी
धरा पर
कभी ना समझो
स्वयम्भू
प्रभु
इस तन को
इस मन को
जिसे
बनाना है
मानव
दानव या
परमात्मा
तुझको......
मनु
जब कहते हैं
मानव को,
पुकारते हो
बार बार
क्यों
मुझे
मनुज कह कर......
मैं
मनुष्य की ही तो
संतान हूँ
किसी चौपाये
अथवा
कीड़े की नहीं
क्या तुम्हारी
दीठ ने भी
पीठ
मोड़ ली है ?
आकाशवाणी हुई
तुम्हे
मनुज कह कर
स्मरण दिलाया
जा रहा है
सृजन का
संस्कार का
संवेदना का
और
यह भी बताया
जा रहा है
तुम हो परिणाम
मिलन का
एक मानव और
मानवी के
जो
हुआ था इसी
धरा पर
कभी ना समझो
स्वयम्भू
प्रभु
इस तन को
इस मन को
जिसे
बनाना है
मानव
दानव या
परमात्मा
तुझको......
Monday, November 2, 2009
Scribbling--4.
.......
When the master told
Don't take
Lonliness and Aloneness
As synonymous,
As usual I discarded
The essence......
Began looking for
Holes in his saying
Confused I was
No answers to
My biased curiosity
More I think
More my brain is burdened
I went back to him
He smiled
He spoke :
Visualize two situations
Positive and Negative
Meditate on them
You may get answer
This is your question
This needs your answer
Your answer only
To satisfy your inner.........
Lonliness is negative
I am missing something
Aloneness is positive
I have found something........
When two lonlinesses meet
In the begining
In the honeymoon days
Both are dreamers
Dreamers remain excited
Excitement disappears
Emerges again the reality
That both were lonely
That both are lonely.........
When two lonlinesses meet
There cannot be any joy
They are not two
They are multiples
Even one lonliness is enough
To create hell
And when two meet
There are multiple hells.........
The lonlinesses
Become mirror to each other
There are reflections of
Miseries, wounds, frustrations
Boredoms of each other
How can this blossom in a
Beautiful loving relationship ?
When meets two meditators
There is friendliness
There is love
There is compassion
As both have tasted
The nectar of
Positive aloneness
Both are capable of enjoying
Their aloneness
The other is not needed
Now they relate
As they have to share
They have so much to share
This is not out of greed
This not out of need
This is out of abundance
This is out of overflowing joy.........
(Yah gyan bhi churaya hua hai.....jaise madhumakhkhi phoolon se shahad churati hai.....bas aapse yah madhu share kar raha hun aur khushi pa raha hun.)
When the master told
Don't take
Lonliness and Aloneness
As synonymous,
As usual I discarded
The essence......
Began looking for
Holes in his saying
Confused I was
No answers to
My biased curiosity
More I think
More my brain is burdened
I went back to him
He smiled
He spoke :
Visualize two situations
Positive and Negative
Meditate on them
You may get answer
This is your question
This needs your answer
Your answer only
To satisfy your inner.........
Lonliness is negative
I am missing something
Aloneness is positive
I have found something........
When two lonlinesses meet
In the begining
In the honeymoon days
Both are dreamers
Dreamers remain excited
Excitement disappears
Emerges again the reality
That both were lonely
That both are lonely.........
When two lonlinesses meet
There cannot be any joy
They are not two
They are multiples
Even one lonliness is enough
To create hell
And when two meet
There are multiple hells.........
The lonlinesses
Become mirror to each other
There are reflections of
Miseries, wounds, frustrations
Boredoms of each other
How can this blossom in a
Beautiful loving relationship ?
When meets two meditators
There is friendliness
There is love
There is compassion
As both have tasted
The nectar of
Positive aloneness
Both are capable of enjoying
Their aloneness
The other is not needed
Now they relate
As they have to share
They have so much to share
This is not out of greed
This not out of need
This is out of abundance
This is out of overflowing joy.........
(Yah gyan bhi churaya hua hai.....jaise madhumakhkhi phoolon se shahad churati hai.....bas aapse yah madhu share kar raha hun aur khushi pa raha hun.)
Sunday, November 1, 2009
एक नज़्म : बिना उन्वान.
उम्मीद होती
वस्ल की उनके,
जो होते दूर हैं हम से
निगाहों में
बसे हैं वो
इक रंगीं सुरूर जैसे.....
महसूस करो जाना
सनम को इन हवाओं में
एहसास प्रीतम के
बसे हैं इन फिजाओं में
तस्वीर-ऐ-यार हर लम्हा
छुपी है इन निगाहों में
सो गए हैं हम खोकर
उनकी इन पनाहों में है
ऐ सूरज ! क्यों सताते हो
हमें रहने दो बाहों में.....
हिज्र की बात को छोडो
वस्ल के राग न गाओ
मूंद लो नयन अब अपने
सनम को पास में पाओ....
वस्ल की उनके,
जो होते दूर हैं हम से
निगाहों में
बसे हैं वो
इक रंगीं सुरूर जैसे.....
महसूस करो जाना
सनम को इन हवाओं में
एहसास प्रीतम के
बसे हैं इन फिजाओं में
तस्वीर-ऐ-यार हर लम्हा
छुपी है इन निगाहों में
सो गए हैं हम खोकर
उनकी इन पनाहों में है
ऐ सूरज ! क्यों सताते हो
हमें रहने दो बाहों में.....
हिज्र की बात को छोडो
वस्ल के राग न गाओ
मूंद लो नयन अब अपने
सनम को पास में पाओ....
किस्से गुप्ता और मुल्ला के........
बड़े दिन हुए किस्सा कहे हुए. दो दिन से कुलबुलाहट हो रही थी की कुछ कहा जाय..... कहानी-किस्सों-कविताओं के बारे में आप जानते ही हैं कि पढने सुननेवाले से कहीं ज्यादा लुत्फ़ हम जैसे शौकिया किस्सागो लोगों को आता है, जब चार छः लोग तारीफ के कुछ शब्द कह डालते हैं. .....कभी कभी तो रूटीन प्रशंसा भी साहित्य अकादेमी पुरस्कार जैसी लगती है, जब बिना पढ़े भी कुछ लोग हमारे लिखे में कुछ पा जाने का नाटक करते हैं. गंभीर से गंभीर बात हास्य-व्यंग के माध्यम से कही जा सकती है, मगर सर धुन ने का जी करता है जब कुछ पाठक लेखक महाशय को भांड या मसखरा समझ, ज़बरदस्ती हा-ही कर लेते हैं, मगर रचना में छुपे पैगाम को आत्मसात करने का प्रयास तक नहीं करते. भगवान भला करे ऑरकुट का कई एक आईकोन भी मुहैय्या करा दिए.....बस कुंजी दबाते रहिये....आपकी हंसी का फुहारा लेखक के अंतर या गलतफहमी को भिगो देगा. ऐसे लम्हों में ग़ालिब के 'सद-वचन' जेहन में बरबस चले आते हैं, "हमें मालूम थी जन्नत की हकीक़त, दिल को बहलाने के खातिर ग़ालिब यह ख़याल अच्छा है."
हालाँकि हमारे 'शफक' पर बहुत ही ज़हीन और दिलदार लिखने वाले पढ़नेवाले हैं.....मैं तो जनरल बात कर रहा हूँ।
जैसे दवाओं के निर्माता चूहों पर अपनी दवाओं का परीक्षण करके बाज़ार में उतारते हैं, इस कलमकार ने भी अपनी रचनाओं को बाज़ार में भेजने से पहले कई दफा अपने अज़ीज़ दोस्तों मुल्ला नसरुद्दीन और गुप्ताजी की मदद ली है. चाय नाश्ते पर या बाइट्स-ड्रिंक पर महफ़िल जुटती है , मासटर बकता है, मुल्ला और गुप्ता कभी जागरूकता से, कभी तंद्रा में, कभी निद्रा में सुनते है और अपनी बहुमूल्य राय किस्सा, नज़्म या ग़ज़ल पर देते हैं. मासटर उनकी प्रतिक्रियाओं को विचरता है और तदुपरांत रचना को फाईनल शेप दे देता है.
शनिवार का दिन है आज. ऐसी ही महफ़िल जमी है कब से...मगर ना जाने कुछ ऐसा हुआ है कि मुल्ला कभी prejudiced होता है तो कभी मेरी रचना गुप्ता के preoccupations की शिकार हो जाती है सुबह से ही बात नहीं बन रही है. आप तो जानते ही हैं ऐसे जमावडों में प्रोडक्ट से ज्यादा बाय-प्रोडक्ट तैयार होते हैं. मुल्ला और गुप्ता ने इस दौरान लागर बियर के सुरूर में या कहें कि चाय कि चुस्ती में कुछ गप्पे हांकी थी जिसे किस्सा बना कर अनछाना ही आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ......उम्मीद है आप
हमेशा कि तरहा मुझे बर्दाश्त करेंगे।
किस्सों के कंटेंट्स बासी है जैसे कि पहले के किस्सों के, बस इन्हें नए सिरे से छौंका है आपके लिए ..........शायद पसंद आये ना आये......'ओल्ड वाईन इन न्यू बोटल' समझ कर मुल्ला और गुप्ता को मुआफ कर देना..... उनकी हौसला अफजाई करना.....ताकि भविष्य में उनका उदय भी आपकी प्रशंसा पाकर अच्छे किस्सागोवों और कवियों के रूप में हो. प्रेरणा और प्रोत्साहन इन्सान को बहुत ऊँचा उठा सकते हैं....जीरो से हीरो बना सकते हैं......
और हाँ , मैं भी आजकल जरा 'लो फील' कर रहा हूँ, मुझे भी आपकी पीठ थप-थपायी की ज़रुरत है....मुझे निराश ना करियो.....
हालाँकि हमारे 'शफक' पर बहुत ही ज़हीन और दिलदार लिखने वाले पढ़नेवाले हैं.....मैं तो जनरल बात कर रहा हूँ।
जैसे दवाओं के निर्माता चूहों पर अपनी दवाओं का परीक्षण करके बाज़ार में उतारते हैं, इस कलमकार ने भी अपनी रचनाओं को बाज़ार में भेजने से पहले कई दफा अपने अज़ीज़ दोस्तों मुल्ला नसरुद्दीन और गुप्ताजी की मदद ली है. चाय नाश्ते पर या बाइट्स-ड्रिंक पर महफ़िल जुटती है , मासटर बकता है, मुल्ला और गुप्ता कभी जागरूकता से, कभी तंद्रा में, कभी निद्रा में सुनते है और अपनी बहुमूल्य राय किस्सा, नज़्म या ग़ज़ल पर देते हैं. मासटर उनकी प्रतिक्रियाओं को विचरता है और तदुपरांत रचना को फाईनल शेप दे देता है.
शनिवार का दिन है आज. ऐसी ही महफ़िल जमी है कब से...मगर ना जाने कुछ ऐसा हुआ है कि मुल्ला कभी prejudiced होता है तो कभी मेरी रचना गुप्ता के preoccupations की शिकार हो जाती है सुबह से ही बात नहीं बन रही है. आप तो जानते ही हैं ऐसे जमावडों में प्रोडक्ट से ज्यादा बाय-प्रोडक्ट तैयार होते हैं. मुल्ला और गुप्ता ने इस दौरान लागर बियर के सुरूर में या कहें कि चाय कि चुस्ती में कुछ गप्पे हांकी थी जिसे किस्सा बना कर अनछाना ही आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ......उम्मीद है आप
हमेशा कि तरहा मुझे बर्दाश्त करेंगे।
किस्सों के कंटेंट्स बासी है जैसे कि पहले के किस्सों के, बस इन्हें नए सिरे से छौंका है आपके लिए ..........शायद पसंद आये ना आये......'ओल्ड वाईन इन न्यू बोटल' समझ कर मुल्ला और गुप्ता को मुआफ कर देना..... उनकी हौसला अफजाई करना.....ताकि भविष्य में उनका उदय भी आपकी प्रशंसा पाकर अच्छे किस्सागोवों और कवियों के रूप में हो. प्रेरणा और प्रोत्साहन इन्सान को बहुत ऊँचा उठा सकते हैं....जीरो से हीरो बना सकते हैं......
और हाँ , मैं भी आजकल जरा 'लो फील' कर रहा हूँ, मुझे भी आपकी पीठ थप-थपायी की ज़रुरत है....मुझे निराश ना करियो.....
बयान गुप्ताजी का
एक दफा गुप्ती मायके चली गयी.....रूठ कर.....मुझे सुखी दाम्पत्य जीवन के सूत्र बताकर अपना वक़्त मत जाया करियेगा....मैंने 'शोभा डे' की पुस्तक 'स्पाउस' हा हिंदी अनुवाद पढ़ लिया है. अब आप से क्या छुपाना, गुप्ती का इंटर-फेअर जरा बढ़ने लगा था.....मान लिया- मैंने प्राथमिक तक शिक्षा पाई है.....और गुप्ती ने राजनीति शास्त्र और इतिहास में एम.ए किया है.....पति तो मैं ही हूँ ना ....अब बार बार वो पब्लिकली मुझे ड़ीफाई करने लगी....आखिर मेरी भी कोई इमेज है मासटर.....आप भी सुनिए जरा और बताइए इस में मेरा क्या दोष.....मेरे भी तो अपने नोर्म है एक पति के रूप में भी, एक मानव के रूप में भी....और आप जानते ही हैं मैं कारण अकारण कितना व्यथित रहता हूँ.....मेरा मूड आजकल कितना ऑफ रहता है.
उस दिन मैं बाज़ार से सब्जी खरीद कर लौट रहा था. देखा कि हमारे पारिवारिक मित्र शर्माजी का नौकर रामू मेरे घर से चला आ रहा है....मुडा तुडा सा उदास सा.......मानो कुछ ऐसा हुआ हो जो नहीं होना चाहिए....
रामू ने मुझे रस्मी नमस्ते तक नहीं की मुल्ला तो मेरा माथा ठनका, ज़रूर कुछ अनहोनी हुई है, रामू के चेहरे पर यूँ कभी बारह नहीं बजे देखे थे मैनें। रामू को उदास देख कर सोचने लगा मैं कि शर्मा परिवार पर क्या गुजरेगी जब रामू को मेरे घर से इतना व्यथित हुआ आया देखेगा वह परिवार. ना जाने शर्मा जी मुझ से पुरानी उधार का तकादा कर बैठे...मेरे बच्चों के लिए मांग कर लायी शर्मा के बच्चों कि पाठ्य-पुस्तकें लौटानी पड़े....शर्मा मेरी आलोचना दुनिया भर में करता फिरे....मेरे घर से रामू उदास होकर निकला....इसमें मेरी बीवी का ही दोष होगा....क्या समझती है वो अपने आपको...इत्यादि इत्यादि दुश्विचार मेरे मस्तिष्क में घुमड़ने लगे.
मेरे बगल से चौधरी गुज़रा उस ने भी पूछ लिया- "अरे रामू आज उदास क्यों है....सब ठीक ठाक तो.....श्रीमती शमा का बर्ताव तो ठीक है."
रामूवा दबी जुबान से बोला ,"भईया आज तो गुप्ताजी के यहाँ से बड़े बेज्जत होकर लौटे हैं." मेरी तो बांछे खिल गयी- क्या अधिकार था श्रीमती सावित्री गुप्ता MA (Pol Sc & History) को रमुआ कि इज्ज़त पर हाथ डालने की, लुटने के लिए क्या मेरी इज्ज़त कम पड़ गयी- मुझे पॉइंट मिल गया था....चौधरी ने भी तसदीक कर दी थी. रही सही कसर मासटर ! कपूर ने पूरी कर दी जो चौधरी को कंपनी दे रहा था. लगा कहने, "गुप्ते सब कुछ तुम्हारी कमजोरी के कारण हो रहा है....हम तो पहले ही कहते थे मत कर शादी इतनी पढ़ी लिखी से.....घर बिगाड़ देगी....मगर तू तो ठहरा लालची कहने लगा घर की तहजीब सुधर जायेगी.....बच्चों के संस्कार सुधरेंगे....पढ़ लिख कर कुछ बन जायेंगे....उनके बाज़ार भाव बढ़ जायेंगे.....आखिर परिवार के विकास के लिए ही तो आदमी जीता है. अब भी चेत गुप्ता, रस्सियाँ कस ले....मर्द बन नहीं तो आज रामू कि बेज्जती हुई है, कल हमारी और चौधरी की होगी " कपूर मेरे मुंह में आदतन अपने शब्द घुसा रहा था, भड़का रहा था, मैं भी भड़क रहा था क्योंकि मुझे सूट कर रहा था. सब बोले जा रहे थे....रामू चुप....खैर मैने चौधरी और कपूर से कन्नी काटी और रामू को मेरे साथ चलने का इशारा किया.....
रामू से पूछा था मैने-"क्या हो गया ?"
रामू बोला- "साहब हमारे पड़ोसी के यहाँ गैस सिलेंडर ख़त्म हो गया. हमारी भाभीजी ( श्रीमती शर्मा) ने शेखी बघार दी की चुटकी में व्यवस्था हो जायेगी और मुझे आपके यहाँ गैस सिलेंडर लाने भेज दिया. आपके वाली भाभीजी ने कहा की हमारा सिलेंडर जो लगा हुआ है ख़त्म होने को है और जो घर में रखा है उसकी दरकार होगी....बुकिंग भी लम्बी चल रही है.भाई साब के यहाँ ज़रुरत होती तो देना ही होता. अब परोपकार के लिए कैसे खुद को संकट में डाला जाय. जाओ कह दो भाभीजी ने कहा की सिलेंडर नहीं होगा. साहब बड़े अरमान से हमारी भाभीजी ने हमें आपके यहाँ भेजा था...यहाँ हमारी इज्ज़त का फालूदा हुआ और वहां पडोसन के सामने हमारी मालकिन का, हम तो कहीं के ना रहे."
रामुवा टीवी सीरियल देखते देखते बहुत भावुक और dialoguebaz हो गया था.....श्रीमती शर्मा भी खुद को कभी तुलसी तो कभी पारवती समझने लगी थी.....शर्मा परिवार की संस्कृति में सतही भावुकता विद्यमान थी। खैर, रामू 'हर्ट' हुआ था, वह शर्माजी के यहाँ से काम छोड़ सकता था, और शर्मा भाभी शर्माजी को तलाक तक दे सकती थी की कैसे दोस्त रखते हो.....या डिप्रेसन में आ सकती थी कि एक पडोसन के लिए सिलेंडर कि व्यवस्था नहीं कर पाई. बहुत ही दूरगामी परिणाम हो सकते थे इस बात के. किन्तु इस से ज्यादा मुझे अपनी अथॉरिटी का चैलेन्ज होना सता रहा था. मैं आगे और रामुवा पीछे पीछे आशा के दीपक जलाये हुए कि गुप्ती को डांट मिलेगी, रामुवा को सिलेंडर, शर्मा भाभी की इज्ज़त की रक्षा,समस्त आदर्शों का रखाव.
रास्ते में मैने प्रोस और कोंस सोचे और पाया कि सावित्री का कहना वाजिब था, मगर मेरी अथॉरिटी.....?
रामुवा को लिए मैं घर के दरवाज़े पर पहूंचा. कहा सावित्री से, "तुम्हारी यह मजाल कि रामू जो मेरे लंगोटिए शर्माजी का वफादार सेवक है, को इस तरहा इन्कार कर देना.....जानती हो इसके नतीजे क्या क्या हो सकते हैं, तुम्हारे कहने से रामू का दिल टूट सकता है वह दरभंगा लोट सकता है, शर्माजी का तलाक हो सकता है या भाभी डिप्रेसन में आ सकती है, पढ़ी लिखी हो मगर जानती नहीं कि 'ए फ्रेंड इन नीड इस ए फ्रेंड इन डीड'......हिम्मत कैसे हो गयी इतने गंभीर परिणामों को दरकिनार रखते हुए तुम्हे रामू से सिलेंडर के लिए इन्कार करने की."
रामू के चेहरे पर ओज आ रहा था.....उसे सात्विक आनंद्जनित प्रकाश एवम हर्ष कि प्राप्ति हो रही थी.
कह रहा था--"हमें मालूम था भैय्या ही न्याय करेंगे.....आखिर भैय्या कि बराबरी कहाँ ? हमारी मलकानी हमेशा ही कहती है सयाना हो तो गुप्ताजी जैसा, सब आगे पीछे कि सोच कर करता है....दुनिया देखी है.....किस बात को किस तरीके से कहा जाय अच्छी तरह जानता है।"
मुझे आत्मतोष हो रहा था रामू के बेन सुन कर. सावित्री की बोलती बंद हो गयी थी.
मैने सोचा भाई मुल्ला और मासटर कि सिलेंडर देने से तीन बातें होगी. एक मेरे घर में खाना कैसे बनेगा. दो शर्मा सिलेंडर कि कीमत उधार में एडजस्ट कर लेगा तीन शर्मा भाभी यदा कदा फिर सिलेंडर मँगाने लगेगी.
मैने कहा -"रामू इस घर का मुखिया कौन ?"
रामू बोला, "भैय्या आप."
मैने कहा, "भाभीजी को हाँ या ना कहने का अधिकार है रामू ?"
रामू बोला, "कतई नहीं."
मैने पूछा, "रामू मैं समझदार हूँ या बेवकूफ ?"
रामू बोला, "भैय्या बिलकुल समझदार."
मैने कहा, "मेरी जगह तुम होते तो क्या करते."
रामू बोला, "सिलेंडर नहीं देता."
मैने कहा," रामू में तुम से सहमत हूँ. जाओ शर्मा भाभी को जैसे तैसे समझाओ मेरे भाई सिलेंडर नहीं हो सकता."
कन्फ्यूज्ड सा रमुआ महाप्रस्थान कर गया गुप्ता खाणे से.
मैं भगवान को कह रहा था, "चाय बनाओ." और वो थी कि रूठ गयी थी, अपना सामान पेक कर रही थी. अब बताओ मेरी क्या गलती थी.....घर के मुखिया के नाते मैने मुआमले को ठीक से डील किया तब भी सावित्री रूठ गयी. भई 'ना' कहने का अधिकार मेरा, बात तरीके से कहना मुझे आता है उसे नहीं. और इतने बड़े बड़े हादसों की आशंका, नाज़ुक मसलों को समझदारी से निपटाया जाता है.
(मुल्ला गुप्ता की गिलास भर रहा था और मैं अपनी कविताओं के बारे में सोच रहा था.)
उस दिन मैं बाज़ार से सब्जी खरीद कर लौट रहा था. देखा कि हमारे पारिवारिक मित्र शर्माजी का नौकर रामू मेरे घर से चला आ रहा है....मुडा तुडा सा उदास सा.......मानो कुछ ऐसा हुआ हो जो नहीं होना चाहिए....
रामू ने मुझे रस्मी नमस्ते तक नहीं की मुल्ला तो मेरा माथा ठनका, ज़रूर कुछ अनहोनी हुई है, रामू के चेहरे पर यूँ कभी बारह नहीं बजे देखे थे मैनें। रामू को उदास देख कर सोचने लगा मैं कि शर्मा परिवार पर क्या गुजरेगी जब रामू को मेरे घर से इतना व्यथित हुआ आया देखेगा वह परिवार. ना जाने शर्मा जी मुझ से पुरानी उधार का तकादा कर बैठे...मेरे बच्चों के लिए मांग कर लायी शर्मा के बच्चों कि पाठ्य-पुस्तकें लौटानी पड़े....शर्मा मेरी आलोचना दुनिया भर में करता फिरे....मेरे घर से रामू उदास होकर निकला....इसमें मेरी बीवी का ही दोष होगा....क्या समझती है वो अपने आपको...इत्यादि इत्यादि दुश्विचार मेरे मस्तिष्क में घुमड़ने लगे.
मेरे बगल से चौधरी गुज़रा उस ने भी पूछ लिया- "अरे रामू आज उदास क्यों है....सब ठीक ठाक तो.....श्रीमती शमा का बर्ताव तो ठीक है."
रामूवा दबी जुबान से बोला ,"भईया आज तो गुप्ताजी के यहाँ से बड़े बेज्जत होकर लौटे हैं." मेरी तो बांछे खिल गयी- क्या अधिकार था श्रीमती सावित्री गुप्ता MA (Pol Sc & History) को रमुआ कि इज्ज़त पर हाथ डालने की, लुटने के लिए क्या मेरी इज्ज़त कम पड़ गयी- मुझे पॉइंट मिल गया था....चौधरी ने भी तसदीक कर दी थी. रही सही कसर मासटर ! कपूर ने पूरी कर दी जो चौधरी को कंपनी दे रहा था. लगा कहने, "गुप्ते सब कुछ तुम्हारी कमजोरी के कारण हो रहा है....हम तो पहले ही कहते थे मत कर शादी इतनी पढ़ी लिखी से.....घर बिगाड़ देगी....मगर तू तो ठहरा लालची कहने लगा घर की तहजीब सुधर जायेगी.....बच्चों के संस्कार सुधरेंगे....पढ़ लिख कर कुछ बन जायेंगे....उनके बाज़ार भाव बढ़ जायेंगे.....आखिर परिवार के विकास के लिए ही तो आदमी जीता है. अब भी चेत गुप्ता, रस्सियाँ कस ले....मर्द बन नहीं तो आज रामू कि बेज्जती हुई है, कल हमारी और चौधरी की होगी " कपूर मेरे मुंह में आदतन अपने शब्द घुसा रहा था, भड़का रहा था, मैं भी भड़क रहा था क्योंकि मुझे सूट कर रहा था. सब बोले जा रहे थे....रामू चुप....खैर मैने चौधरी और कपूर से कन्नी काटी और रामू को मेरे साथ चलने का इशारा किया.....
रामू से पूछा था मैने-"क्या हो गया ?"
रामू बोला- "साहब हमारे पड़ोसी के यहाँ गैस सिलेंडर ख़त्म हो गया. हमारी भाभीजी ( श्रीमती शर्मा) ने शेखी बघार दी की चुटकी में व्यवस्था हो जायेगी और मुझे आपके यहाँ गैस सिलेंडर लाने भेज दिया. आपके वाली भाभीजी ने कहा की हमारा सिलेंडर जो लगा हुआ है ख़त्म होने को है और जो घर में रखा है उसकी दरकार होगी....बुकिंग भी लम्बी चल रही है.भाई साब के यहाँ ज़रुरत होती तो देना ही होता. अब परोपकार के लिए कैसे खुद को संकट में डाला जाय. जाओ कह दो भाभीजी ने कहा की सिलेंडर नहीं होगा. साहब बड़े अरमान से हमारी भाभीजी ने हमें आपके यहाँ भेजा था...यहाँ हमारी इज्ज़त का फालूदा हुआ और वहां पडोसन के सामने हमारी मालकिन का, हम तो कहीं के ना रहे."
रामुवा टीवी सीरियल देखते देखते बहुत भावुक और dialoguebaz हो गया था.....श्रीमती शर्मा भी खुद को कभी तुलसी तो कभी पारवती समझने लगी थी.....शर्मा परिवार की संस्कृति में सतही भावुकता विद्यमान थी। खैर, रामू 'हर्ट' हुआ था, वह शर्माजी के यहाँ से काम छोड़ सकता था, और शर्मा भाभी शर्माजी को तलाक तक दे सकती थी की कैसे दोस्त रखते हो.....या डिप्रेसन में आ सकती थी कि एक पडोसन के लिए सिलेंडर कि व्यवस्था नहीं कर पाई. बहुत ही दूरगामी परिणाम हो सकते थे इस बात के. किन्तु इस से ज्यादा मुझे अपनी अथॉरिटी का चैलेन्ज होना सता रहा था. मैं आगे और रामुवा पीछे पीछे आशा के दीपक जलाये हुए कि गुप्ती को डांट मिलेगी, रामुवा को सिलेंडर, शर्मा भाभी की इज्ज़त की रक्षा,समस्त आदर्शों का रखाव.
रास्ते में मैने प्रोस और कोंस सोचे और पाया कि सावित्री का कहना वाजिब था, मगर मेरी अथॉरिटी.....?
रामुवा को लिए मैं घर के दरवाज़े पर पहूंचा. कहा सावित्री से, "तुम्हारी यह मजाल कि रामू जो मेरे लंगोटिए शर्माजी का वफादार सेवक है, को इस तरहा इन्कार कर देना.....जानती हो इसके नतीजे क्या क्या हो सकते हैं, तुम्हारे कहने से रामू का दिल टूट सकता है वह दरभंगा लोट सकता है, शर्माजी का तलाक हो सकता है या भाभी डिप्रेसन में आ सकती है, पढ़ी लिखी हो मगर जानती नहीं कि 'ए फ्रेंड इन नीड इस ए फ्रेंड इन डीड'......हिम्मत कैसे हो गयी इतने गंभीर परिणामों को दरकिनार रखते हुए तुम्हे रामू से सिलेंडर के लिए इन्कार करने की."
रामू के चेहरे पर ओज आ रहा था.....उसे सात्विक आनंद्जनित प्रकाश एवम हर्ष कि प्राप्ति हो रही थी.
कह रहा था--"हमें मालूम था भैय्या ही न्याय करेंगे.....आखिर भैय्या कि बराबरी कहाँ ? हमारी मलकानी हमेशा ही कहती है सयाना हो तो गुप्ताजी जैसा, सब आगे पीछे कि सोच कर करता है....दुनिया देखी है.....किस बात को किस तरीके से कहा जाय अच्छी तरह जानता है।"
मुझे आत्मतोष हो रहा था रामू के बेन सुन कर. सावित्री की बोलती बंद हो गयी थी.
मैने सोचा भाई मुल्ला और मासटर कि सिलेंडर देने से तीन बातें होगी. एक मेरे घर में खाना कैसे बनेगा. दो शर्मा सिलेंडर कि कीमत उधार में एडजस्ट कर लेगा तीन शर्मा भाभी यदा कदा फिर सिलेंडर मँगाने लगेगी.
मैने कहा -"रामू इस घर का मुखिया कौन ?"
रामू बोला, "भैय्या आप."
मैने कहा, "भाभीजी को हाँ या ना कहने का अधिकार है रामू ?"
रामू बोला, "कतई नहीं."
मैने पूछा, "रामू मैं समझदार हूँ या बेवकूफ ?"
रामू बोला, "भैय्या बिलकुल समझदार."
मैने कहा, "मेरी जगह तुम होते तो क्या करते."
रामू बोला, "सिलेंडर नहीं देता."
मैने कहा," रामू में तुम से सहमत हूँ. जाओ शर्मा भाभी को जैसे तैसे समझाओ मेरे भाई सिलेंडर नहीं हो सकता."
कन्फ्यूज्ड सा रमुआ महाप्रस्थान कर गया गुप्ता खाणे से.
मैं भगवान को कह रहा था, "चाय बनाओ." और वो थी कि रूठ गयी थी, अपना सामान पेक कर रही थी. अब बताओ मेरी क्या गलती थी.....घर के मुखिया के नाते मैने मुआमले को ठीक से डील किया तब भी सावित्री रूठ गयी. भई 'ना' कहने का अधिकार मेरा, बात तरीके से कहना मुझे आता है उसे नहीं. और इतने बड़े बड़े हादसों की आशंका, नाज़ुक मसलों को समझदारी से निपटाया जाता है.
(मुल्ला गुप्ता की गिलास भर रहा था और मैं अपनी कविताओं के बारे में सोच रहा था.)
Scribbling-2.........
...
PrejudicesCrop
Immediate interpretations
So quick
Happens this
There is
No time to
Ponder over them.......
One understands only
Which one wishes to understand
Which one can understand
BUT Alas !
That is not understanding at all
Just moving and wandering
In circles.........
One has to be
More aware
So that
Bloody prejudices
Don't interfere >
Old and gathered ideas
Don't come in >
One doesn't jump on conclusions.....
With prejudices
One goes on
Repeating old junk
That one knows already
It gives momentary comfort
BUT alas !
One cannot see anything new
OR
One will see something
That is not there
At all.....
Prejudice is
Preoccupation,
Preoccupation is
Pride,
Preoccupation is
Past,
Preoccupation is
Peeping and looking through
Colored eyes..........
Preoccupied mind is
A dull mind
Preoccupied mind is
A borrowed mind.........
Unoccupied mind is
Fresh
Intelligent
Radiant
And one of the base
For meditation.........
Let us drop
Preoccupations
Let great emptiness arise
Let awareness happen
AND
Let us recognize our SELF..
Scribbling-3..........
...
Intellect is a memory system
For collecting information......
Intellect goes through
Ready-made answers
The answers provided by
Others-parents, teachers,leaders
Rule books
Even intellectuals use them to
Justify their misdeeds
They are parrots
They are mechanical beings
They are HMV (His Master's Voice) records
The I.Q. test is really a
M.Q test : Memory Quotient test
Not a Intelligence Quotient Test.
Intelligence is spontaneity
Intelligence is ability to respond
Intelligence is awareness
Intelligence is love
Intelligence is joy
Intelligence bring freedom
Freedom from conditioning
Freedom from rule books
Freedom from stupidity.......
Unintelligent person behaves
According to readymade answers
According to rule books-scriptures
Which he carries on his back
He is afraid of depending on himself
Unintelligent person disrespects himself
And poses to respects others
He lives in conflicts of mind and confusions
Intelligent person depends on
His own insight
He trusts is
Own being
He loves himself
He respects himself
AND he loves and respect others.......
Even surrender is achieved
Through intelligence
Surrender is to see
You are not separate from existence
Surrender is surrendering to oneself
Only idiots cannot surrender
As they have inflated EGOs
As they live on intellect
NOT on intelligence
And therefore they are never in peace
Intelligence>Surrender>Enlightenment........
Just live totally
Live intelligently
Live in harmony
Live in awareness
AND everything follows
Beautifully............
(Yah gyan churaya hua hai.....jaise madhumakhkhi phoolon se shahad churati hai.....bas aapse yah madhu share kar raha hun aur khushi pa raha hun.)
Intellect is a memory system
For collecting information......
Intellect goes through
Ready-made answers
The answers provided by
Others-parents, teachers,leaders
Rule books
Even intellectuals use them to
Justify their misdeeds
They are parrots
They are mechanical beings
They are HMV (His Master's Voice) records
The I.Q. test is really a
M.Q test : Memory Quotient test
Not a Intelligence Quotient Test.
Intelligence is spontaneity
Intelligence is ability to respond
Intelligence is awareness
Intelligence is love
Intelligence is joy
Intelligence bring freedom
Freedom from conditioning
Freedom from rule books
Freedom from stupidity.......
Unintelligent person behaves
According to readymade answers
According to rule books-scriptures
Which he carries on his back
He is afraid of depending on himself
Unintelligent person disrespects himself
And poses to respects others
He lives in conflicts of mind and confusions
Intelligent person depends on
His own insight
He trusts is
Own being
He loves himself
He respects himself
AND he loves and respect others.......
Even surrender is achieved
Through intelligence
Surrender is to see
You are not separate from existence
Surrender is surrendering to oneself
Only idiots cannot surrender
As they have inflated EGOs
As they live on intellect
NOT on intelligence
And therefore they are never in peace
Intelligence>Surrender>Enlightenme
Just live totally
Live intelligently
Live in harmony
Live in awareness
AND everything follows
Beautifully............
(Yah gyan churaya hua hai.....jaise madhumakhkhi phoolon se shahad churati hai.....bas aapse yah madhu share kar raha hun aur khushi pa raha hun.)
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