Sunday, November 29, 2009

तेरे मयखाने में.: मेरे मयखाने में .......

अंजुरी से पीता हूँ मय
रक्खा क्या है पैमाने में
दिल से पिला ऐ साकी
आया तेरे मयखाने में.

गम नहीं सुकूं ले के आया हूँ
खिज़ा नहीं बहार ले के आया हूँ
दिल से झूम ले साकी
है जश्न तेरे मयखाने में .

नशा नहीं कुछ और है यह
गुनाह नहीं कुछ और है यह
आ गले लग जा साकी
वस्ल अपना तेरे मयखाने में.

मंदिर है मस्जिद है यह
पूजा ओ इबादात है यह
सजदे में झुक जा साकी
है खुदा भी तेरे मयखाने में.

रूह से खींचती है मय
जिस्म से रिसती है मय
रौं रौं में घुली है मय
मय मय है तेरे मयखाने में.

धुन बन गयी है नयी
नगमा भी है नया यह
साज़ सब बजने लगे
महफ़िल तेरे मयखाने में.

मर के होना है दफ़न
ख़ाक में मिल जाना है
लहद बन जाये मेरी
साकी तेरे मयखाने में।

.......और साकी ने प्यार से देखा, उसकी नज़रों ने कहा :

मयकश तेरा यूँ आना,अब मेरे मयखाने में
बन बैठा इक अफसाना ,अब मेरे मयखाने में

जिस्मों की सुराही से,छलके है मय रूह की
नज़रें बनी पैमाना, अब मेरे मयखाने में

मय रूहों की खिंचती है,रूहों में ही ढलती है
रों रों हुआ रिन्दाना, अब मेरे मयखाने में

वस्ल तेरा,तेरी साक़ी का ,कुछ ऐसा हुआ जानम
ले थम गया ज़माना ,अब मेरे मयखाने में

तार बज उठे हैं दिल के ,सांसें हुई झंकारित
लब गा रहे तराना , सुन मेरे मयखाने में

सजदे में झुकी साक़ी,ये उसकी इबादत है
तुझको खुदा है माना , अब मेरे मयखाने में

मदहोश हुई है साक़ी,कैसा मिला ये मयकश
दिल हो गए दीवाने ,अब मेरे मयखाने में

मयकश हुआ है साक़ी,साक़ी भी अब है मयकश
बदला है यूँ फ़साना, अब मेरे मयखाने में ........

और इस तरह यह जुगलबंदी एक बार के लिए पूरी हुई.......

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