Saturday, November 7, 2009

प्रवंचक वय

घूम लिया
बस्ती सारी में
नहीं मिला क्यूँ
मेरा चेहरा...........

भौंके जा रहे हैं
स्वान
गली के
देख देख यह
शक्ल अजानी
समा लिया
प्रतिबिम्ब
दर्पण ने
किंतु प्रश्न
लगा है करने ,
होने लगी
चर्चा-विचर्चा
कौन है यह
अजनबी
चेहरा ?

सोचूं
होकर आकुल
व्याकुल
चुरा लिया
प्रवंचक वय ने
क्यूँ युवक सा
मुखड़ा मेरा........

कहाँ कहाँ
भटकूँ
तलाशता
खोयी हुई
सूरत अपनी को
नहीं सूझता
कुछ भी
मुझको
छाया है
घनघोर
अँधेरा.........

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