Saturday, November 12, 2011

मासटर का गंजापन...(बकौल मुल्ला नसरुदीन)


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दोस्त से बढ़कर दुश्मन कोई नहीं हो सकता. यह मेरा दोस्त मुल्ला नसरुदीन है ना वह बहुत प्यारा है, मगर बेसिकली बहुत अजीब इंसान है. जब भी अपना उल्लू सीधा नहीं होता, हर्ट हो जाता है और बहुत ही वीयर्ड तरीके से रीएक्ट करने लगता है.
अब उस दिन की ही बात लीजिये, मुल्ला को किसी दावत में जाना था, बोला : मासटर अपना नया वाला सूट, कमीज, घड़ी और कफ-लिंक्स मुझे दो ना, तेरा दोस्त जब गेदरिंग में अच्छा लगेगा तो तेरा ही सीना चौड़ा होगा.सभी कहेंगे, देखो मुल्ला कितना स्मार्ट लग रहा है, आखिर दोस्त किसका है,मासटर का. उसकी बातों में सिवा मुझे पटाने के, और कुछ नज़र नहीं आ रहा था, मैं उसकी बातें सुन कर मुस्कुरा रहा था. मुल्ला ने मेरे ही घर मेरे ही नौकर दुलाल से चाय बनवाकर मुझे पिलाई, मेरे पुरखों पर एहसान कर डाला..बोला मुल्ला, "अमां मासटर हम तो तुम्हारा कितना ख़याल करते हैं, जब भी आते हैं चाय-नाश्ता करवा देते हैं तुम को, नहीं तो तुम खडूस सिर्फ किताबों में ही डूबे रहो और कुछ ना खाओ. मेरे जेहनी होने, दिलदार होने, अच्छा दोस्त होने के बखान कर रहा था मुल्ला. अब वह लम्हा भी आ गया जो आईस ब्रेकिंग वाला था.दरसल मैं मुल्ला को अपने कपड़े और असेसरीज उधार देकर कई बार नुकसान उठा चुका था. मसलन मुल्ला मेरे कपड़े..बाहर से सालन दाल वगेरह गिरा कर ख़राब कर देते हैं और अन्दर... मासल्लाह पसीने की बू जो गुलाब कत्तई नहीं होती. अरे जनाब एक दफा तो मेरी 'ओमेगा' की बेटरी बदल डाली मुल्ला ने, शायद बेच दी थी ओने पौने में.

खैर इस बार मैने तय कर लिया था, मुल्ला के बहकावे में नहीं आऊंगा. नहीं दूंगा जो कुछ मुल्ला ने माँगा.मैने हिम्मत जुटा कर मुल्ला को कह ही दिया, "मुल्ला मैने गए कल से यह उसूल अपनाया है कि अपनी कोई भी चीज इस्तेमाल के लिए दोस्तों को उधार नहीं दूंगा. तुम मेरे दोस्त हो यार, जिगरी दोस्त मुझे मेरे उसूल को निबाहने में मदद करो ना"
मुल्ला अन्दर अन्दर बिलबिला रहा था, उबल रहा था. मगर बहुत ही सलीके से बोला, "अमां यार, कौन लाट साब की दावत है, हम वो काली वाली अचकन पहिन कर चले जावेंगे, चमरौधी जूतियाँ भी बड़े दिनों से नहीं पहनी इस बहाने उन पर भी पलिस हो जाएगी. कोई बात नहीं दोस्त, उसूल के तुम पक्के हो और निबाह भी सकते हो क्योंकि तेरे दोस्त हम जैसे लोग हैं."
मुल्ला ने फिर कहा, "यार, सूट वगेरह ना दो, जरा हाथ तंग है , एक लाल नोट (हज़ार वाला) अगर दे सको तो मुझे अच्छा लगेगा." तो साहेब किसी तरह पॉँच सौ देकर जान छुड़ाई.

शाम को दावत थी. और दूसरे दिन ही मुल्ला के करिश्मे सामने आ गए. टाक ऑफ़ दी टाउन हो गया था साहेब हमारा गंजा होना. (बालों के मुआमले में हम जरा हेव-बीन्स है.याने कभी हमारे बाल हुआ करते थे). हाँ तो हुआ यह कि मुल्ला ने बड़े प्यार से चार छह लोगों को मेरे गंजेपन का राज खूब रस लेकर सुना दिया. एक जनाब बता रहे थे, मुल्ला ने क्या कहा.

अजी साहेब यह अपना मासटर है ना, बड़ा इश्कबाज़ बन्दा है. सभी को अटरेक्ट कर लेता है, चाहे आठ की हो या के साठ की. आँखों और जुबाँ पर जादू है जनाब और कुछ हो या ना हो...और यहाँ मुल्ला बहुत ही नटखट हल्की हंसी हंस लेता था. हाँ तो मुल्ला ने कहा था, "जनाब जानते हैं आप,कोई ज़माने में मासटर के भी खूब बाल हुआ करते थे..बुरा हो मुए इश्क का, अधेड़ होने पर मुल्ला दो औरतों के फेरे में पड़ गए. एक उनसे बड़ी याने कोई ५८ साल की थी और क्या कहें दूसरी बस २८ की. मासटर दोनों से ही अलग अलग मिला करते. बड़े वाली को महसूस होता मासटर उस से जवान है, बस उसके काले वाले बाल निकाल देती.ताकि बलेंसिंग हो सके.... और छोटी का आलम यह कि, उसे मासटर के सफ़ेद बाल देख कर लगता, क्या करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया. सो जनाब वह चुन चुन कर मासटर के सफ़ेद बाल निकाल देती थी. इस काले सफ़ेद के चक्कर में मेरा जिगरी दोस्त मासटर गंजा हो गया.....और अब समझाने से क्या होगा भाईजान, कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे.मुल्ला कंसर्न्ड होने वाला पोसज बना कर कोई स्टार्टर कुतरने लगते या किसी ड्रिंक पर हाथ मुंह आजमाने लगते.

इस तरह मुल्ला हम से हमारी उसूल परस्ती का बदला ले रहे थे....और मैं मुल्ला के लोजिकल स्टोरी मेकिंग के स्किल पर अपना सर पीट रहा था.

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