Saturday, November 12, 2011

असमंजस...


# # #
देखे
कान्हा
कालिंदी तीर
रानी राधा,
सोये हैं गोविंदा
संग
सत्यभामा,
द्वारिका प्रासाद मांही,
अरे अघाती नहीं
क्यों
रुकमणी
करते बखान
निशि-दिन
संग छलिया के
होने का ?

कैसी है
भीगी भीगी रतिया
कैसी है यह
शीतल बयार,
कैसा है
यह मादक बसंत
बता ना
कान्हा
है क्या यह
समय कोई
करवट से
उठ
चले जाने का ?

निहारूं मैं
अपलक तुझ को
खुले हैं
नयन,
हूँ मै तल्लीन,
स्वप्न है तो
सच क्या है,
है ना यह
असमंजस
दीवाना
बना देने का ?

अरे तू
तो है यहाँ
गया भी
नहीं,
अरे तू यहाँ नहीं
गया है
कहाँ,
माना कि तू
चला जो गया
आभास फिर क्यों है
यहीं कहीं
तेरे
हो जाने का ?

No comments:

Post a Comment