Monday, November 21, 2011

बीवी का खौफ...

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ये जो रिश्तों का जंजाल होता है ना, बहुत ही प्यारा होता है और बहुत ही खारा भी होता है, खासकर मियां बीवी..एक छत के नीचे रहते हुए करीब करीब सारे ही इमोशंस जी लेते हैं, मोह-अनुरक्ति, आसक्ति-विरक्ति, मोहब्बत-नफरत, गुस्सा-मेल, रूहानियत-हैवानियत, सलीका-गंद, सौहार्द-षड्यंत्र, विश्वास-धोखा, साँझा-अलगाव, स्वार्थ-परमार्थ, भलाई-बुराई, ख़ुशी-गम, शासन-मातहती, हिंसा-अहिंसा (जाने दीजिये-लम्बी लिस्ट बन जाएगी, आप देख कर बना लीजिये..खुद की हुई है तो अपनी ज़िन्दगी को नहीं तो यारों/पड़ोसियों की) मुझे तो लगता है यह जो शादी है ना, एक मिनिएचर है संसार का...

अब देखिये ना, मेरे एक भाईजी हैं, दोस्त के बड़े भैय्या...बहुत ही हंसमुख और प्रेक्टिकल, समाज-बाज़ार में उन्हें 'जोरू का गुलाम' कहा जाता है. उनके भी अपने सिद्धांत हुआ करते हैं (अमूमन ह़र इंसान ऐसे सिद्धांतों की एक फेहरिस्त लिए घूमता है जिन्हें वह यदा कदा पालन कर के गौरान्वित होता रहता है.) हाँ तो हमारे भाईजी बड़े फलसफाना अन्दाज़ में कहा करते हैं : हाँ हूँ जोरू का गुलाम, अरे अपनी ही जोरू का हूँ, अपनी बेटर-हाफ का हूँ...दूसरे की बीवी का तो नहीं..बात में दम है भाईजी की. उनका ऐसा होना कोई कमजोरी नहीं, समझदारी है...जिसे आप-हम जैसे समझदार ही समझ पाते हैं.

खैर, यह सब तो होता रहेगा...आईये एक किस्से का लुत्फ उठाया जाय.
बादशाह अकबर बीरबल से किन्ही सरकारी मसलों पर मशविरा करते करते बोर हो गया था उस दिन. 'फॉर ए चेंज', बीरबल को बात की चिकौटी काटने
के मकसद से पूछ बैठा, " अरे बीरबल, सुना है तुम अपनी बीवी से बहोत डरते हो."

बीरबल मंद मंद मुस्कुराया, और बोला : "जिल्ले इलाही, मैं ही नहीं सल्तनत का ह़र आदमी अपनी बीवी से डरता है"

अकबर ने बीरबल को मुखातिब होकर कहा, " बीरबल...अपनी खुद की जाती कमजोरी छिपाने के लिए यह जनरल स्टेटमेंट ना दो तो अच्छा होगा. तुम बिना बिना के यह इलज़ाम कर यक पर नहीं लगा सकते."

बीरबल ने कहा, "बादशाह सलामत, कोई बोले या ना बोले मगर मैं जो भी कह रहा हूँ, यह एक कडवा सच है."

अकबर तेश में आ गया और बीरबल को चेलेंज किया, "बीरबल अगर तुम एक हफ्ते में यह साबित नहीं कर पाए तो तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा."
'एज युजुअल' बीरबल ने बीड़ा उठा लिया और तय किया कि इसको साबित करके रहेगा.
बीरबल ने शहर के सभी मर्दों की एक आम सभा बुलाने का फरमान जारी कर दिया. नीयत वक़्त पर सारे मर्द इकठ्ठा हो गए थे. बीरबल ने बारी बारी हरेक से पूछा, "जनाब आप अपनी बीवी से डरते हैं." जवाब मिलता : जी हाँ. और उसके हाथ में एक अंडा देकर बैठा दिया जाता. अकबर बड़ा परीशान साहब, देख रहा था उसकी फौज के जांबाज़ बहादुर तक अंडे लेकर बैठे हैं. घबराहट सी हो रही थी बादशाह के दिल में कि हमारी फौज का एक से एक बहादुर भी अपनी बीवी के सामने भीगी बिल्ली नज़र आ रहा है.

बहुत देर बाद एक हट्टे कट्टे नौजवान की बारी आई और उस से भी यही सवाल पूछा गया. यह नौजवान बाकियों से हट कर था. उसने कहा बीवी से कैसा डरना...उसका क्या खौफ ? अरे उसकी क्या हिम्मत कि मेरे सामने कुछ भी बोल जाये. अकबर ने थोड़ी राहत की साँस ली कि कोई तो मई का लाल सामने आया जिसने इतनी बात कहने का गुर्दा रखा. जब ह़र तरह से उसे परख लिया गया तो उसे बादशाह ने एक काला घोडा इनाम में दिया. घोडा लेकर नौजवान ख़ुशी ख़ुशी अपने घर पहूंचा. उसकी बीवी ने हैरान होते हुए पूछा : सुबह तो तुम पैदल गए थे, अब यह घोडा किसका पकड़ कर लाये हो. नौजवान ने सारा किस्सा उसे बताया...बीवी बोली: तुम्हे तो सारी उम्र अक्ल नहीं आ सकती...अगर इनाम जीता ही था तो दरबार से सफ़ेद घोडा लेकर आते. नौजवान ने कहा: डोंट वरी डीयर, मैं यूँ गया और यूँ आया घोडा बदल कर. अरे बादशाह सलामत बहुत इम्प्रेस्ड है मुझ से.

कुछ देर बाद वह नौजवान घोडा लेकर वापस दरबार में पहूंचा और बीरबल से दरख्वास्त करने लगा : "मेरी बेटर हाफ ..मेरी जान...मेरी बीवी को यह घोडा पसंद नहीं है. आप मेहरबानी कराएँ और मुझे सफ़ेद घोडा दिलवा दें."
बीरबल ने कहा यह घोडा उधर बांध दो और यह अंडा लेकर घर चले जाओ. बादशाह ने इसका कारण पूछा तो बीरबल बोला, "यह नौजवान पहले तो डींग हांक रहा था कि बीवी से नहीं खौफ खाता..जब बीवी ने काले घोड़े की जगह सफ़ेद घोडा लाने को कहा तो यह मुड़ कर उसको जवाब नहीं दे पाया...ना नहीं कह पाया...इनाम में बदले जाने की बात होती है कोई.." बीरबल ने मिस्चिवियस स्माईल के साथ फुसफुसाहट में आगे बताया, "जहाँपनाह इसकी बीवी बड़ी खुबसूरत है...हूर है बिलकुल हूर...उसको यह क्या कोई भी मर्द किसी भी बात के लिए इन्कार नहीं कर सकता."

अकबर बहुत उत्सुक हो गया था. बोला, "यार बीरबल, अगर ऐसी बात है तो हम भी उसे देखना चाहेंगे...मुलाक़ात का इन्तेजाम करो." बीरबल ने कहा, "मैं कल ही उस परी से आपकी मुलाक़ात......" बीरबल की बात को बीच में ही काटते हुए अकबर बोला, "मगर बीरबल एक बात का ख़याल रहे..हमारी बेगम साहिबा को इस की भनक तक ना लगे."

बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, " जहाँपनाह, आप ही अकेले बचे थे..आप भी यह अंडा पकड़ें."

बादशाह अकबर के पास अब झेम्पने और बीरबल को सही मानने के अलावा कोई चारा नहीं था.

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