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सहज प्रेम
वात्सल्य
शौर्य
नमन तुझ को
ऋतंभरा !
उन्नत भाल
अनुपम कपाल
नित्य प्रवाल,
नत मस्तक मैं
ऋतंभरा !
तू काली
महाकाली
सम्बल मेरी
करुणामयी
ऋतंभरा !
ऋतंभरा = सात्विक बुद्धि जो सदैव एक रस रहे.
सहज प्रेम
वात्सल्य
शौर्य
नमन तुझ को
ऋतंभरा !
उन्नत भाल
अनुपम कपाल
नित्य प्रवाल,
नत मस्तक मैं
ऋतंभरा !
तू काली
महाकाली
सम्बल मेरी
करुणामयी
ऋतंभरा !
ऋतंभरा = सात्विक बुद्धि जो सदैव एक रस रहे.
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