Monday, November 21, 2011

मुल्ला और चांदनी रात..

मासटर की संगत में मुल्ला बिगड़ गया. वह भी अध्यात्म की बातें करने लगा. बड़ी चर्चा करता कभी कुण्डलिनी, कभी ध्यान, कभी पुनर्जन्म, कभी जीवन-मृत्यु के रहस्य...स्वर्ग-नर्क ना जाने क्या क्या..मुल्ला की प्रेयसी बड़ी परेशान....सब समय यही...अरे प्रेम की बात का तो मौका ही नहीं आये, गूढ़ चर्चा में ही सारा वक़्त गुजर जाये. सारी की सारी रात गुज़र जाये...एक दिन दोनों दरिया किनारे बैठे हैं...मौसम सुहाना..फिजा रंगीन, सूरज ढल चुका...पूनम का चाँद निकल रहा. ऐसा मौका और मासटर का जिगरी मुल्ला चूक जाये...हो गया शुरू...छेड दी फिर अध्यात्मिक चर्चा. प्रेयसी ऊब चुकी ...पूनम की प्यारी प्यारी रात और फिर वही अध्यात्म.

आखिर उसने कहा : "नसरू आज तो बकवास बन्द करो." मगर नसरुदीन ना सुने.....वह तो अपनी फलसफाना चर्चा में मशगूल...भाषण देता रहा...तक़रीर करता गया..प्रेयसी बेचारी ने कई दफा कोशिश की मगर मुल्ला कि चोंच बन्द ही ना हो. ह़र बार हारी बेचारी...आखिर में मुआमला झगडे तक पहुँच गया...और झगडा होते ही अध्यात्म ख़त्म..मुल्ला अपनी औकात पर आ गया....बहुत ही एक्साईट हो कर मुल्ला बोला, " जो मैं कहे जा रहा हूँ, वह क्या बकवास है ? क्या तुम मुझे अव्वल नंबर का गधा समझती हो ? "

प्रेयसी मिमियाई, " गधा तो नहीं समझती तुम को, तभी तो कहती हूँ भगवान के लिए रेंकना बन्द करो..और आदमी की तरह बीहेव करो "

कौन बताये मुल्ला को कि आदमी कैसे बीहेव करता है और गधा कैसे काश ऐसा भी कोई अध्यात्म होता.


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