Sunday, November 20, 2011

प्रयाण...

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अपथ बनेगा पंथ सहज ही
बन्धु अगर प्रस्थान करो...

क्या चिन्ता है अवरोधों की
यदि गति पर विश्वास तुम्हारा,
नहीं भटकने देगा तुम को
सतत चमकता जो ध्रुव तारा,
कुशल क्षेम भावी पीढ़ी का
चिंतन कर अभियान करो तुम.

फूल मिलेंगे, शूल मिलेंगे
मत बतियाना, मत खिसियाना,
सुरभि चुभन है उनकी अपनी
तुम अपना संकल्प निभाना,
स्वेद रुधिर कर अपना सिंचित
नव-पथ का निर्माण करो तुम.

जो अब तक परिभाषित था वह
अथ-आईटीआई का भूगोल बदल दो,
गीत पुराने हुए बटोही
फिर से उनके बोल बदल दो,
खुले नये आयाम क्षितिज के
ऐसा कुछ अवदान करो तुम.

(विद्यार्थी जीवन में स्वर्गीय कन्हैया लाल जी सेठिया के तालाब किनारे के घर में आना जाना होता था, वहां कुछ गीत/कवितायेँ घटित हुई, जो मैने उनके पास बैठ कर लिख ली थी, उनमें से यह एक है...)

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