आपके मन में सवाल आया होगा : यह बाबाजी कौन ? उनके 'गल्लों दी' बात कहने की क्या कहानी है ?
मेरे पड़ोस में एक सिख परिवार रहता था. बाबाजी उम्र कोई ७० के करीब होगी एक दफा बीमार हो गए. डॉक्टर की राय थी उनको माईल्ड कार्डियक स्ट्रोक हुआ था, कोलेस्ट्रोल का कण्ट्रोल ज़रूरी था.........खाने पीने का परहेज़ ज़रूरी...घी/मख्खन कम खाना...
अब सरदार मिल्खा सिंह भटिंडा वाले खूब खाए खेले, भैंसे थी, मुरबे (खेत) थे, दूध, दही, घी, मख्खन खूब खाया और आदत भी वैसी ही. यह तो बेवक्त रब ने सरदारनी दीपेंदर कौर को अपने पास बुला लिया, बड़ी बहु-बेटे से सरदारजी की नहीं पटी तो आकर लैंड कर गए हैदराबाद में जहां छोटा परमिंदर आईटी कंपनी में लगा हुआ था. हाँ तो सरदार मिल्खा सिंह भटिंडा वाले के खाने पीने पर रोक लग गयी...बहू रुखी रोटियां खिलाने लगी.....दाल में भी तड़का बंद...पराठोंपर मख्खन का क्या काम....सरदारजी अन्दर से परेशान मगर क्या खूब टेक्निक निकाली, मुझे बुला कर पंजाब की बंटवारे की बातें सुनते, कुछ ओरिजिनल जोक-सोक भी...फिर कहते बहू बेटे खूब ख़याल रखतें हैं, पूरा परहेज़ से रखते हैं, बहू क्या है माता का स्वरुप है खूब प्यार से खिलाती है, बेटी कीतरह स्नेह देती है.....बेटा तो कंप्यूटर की तरहा नाप-तोल वाला है...यह पंजाब दी पुत्तरी है..इत्यादि. समय के साथ साथ बहू का सोफ्ट कॉर्नर हो गया ससुर के लिए. एक दिन सरदारजी बोले, बेटा परांठों पर थोड़ा बटर लगा दो अच्छे से और आज तड़का भी थोड़ा तगड़ा लगाना......
छोटी सरदारनी बोली, "बौजी, आप तो पूरे परहेज़गार है, प्रोफ़ेसर साब को परहेज़ पर अच्छा भाषण देते हैं.....यह क्या ?"
बुध सरदार बोला, "ओये कुड़ी, कुछ गल्लें कहने दी होंदी है होर कुच्छ करने दी..
मैं पंजाब दा पुत्तर तू पंजाब दी पुत्तरी यह मद्रासी डॉक्टर की जानदा है..."
मैंने सुना, और मुझे यह जुमला बड़ा अअपील करने लगा.
मेरे पड़ोस में एक सिख परिवार रहता था. बाबाजी उम्र कोई ७० के करीब होगी एक दफा बीमार हो गए. डॉक्टर की राय थी उनको माईल्ड कार्डियक स्ट्रोक हुआ था, कोलेस्ट्रोल का कण्ट्रोल ज़रूरी था.........खाने पीने का परहेज़ ज़रूरी...घी/मख्खन कम खाना...
अब सरदार मिल्खा सिंह भटिंडा वाले खूब खाए खेले, भैंसे थी, मुरबे (खेत) थे, दूध, दही, घी, मख्खन खूब खाया और आदत भी वैसी ही. यह तो बेवक्त रब ने सरदारनी दीपेंदर कौर को अपने पास बुला लिया, बड़ी बहु-बेटे से सरदारजी की नहीं पटी तो आकर लैंड कर गए हैदराबाद में जहां छोटा परमिंदर आईटी कंपनी में लगा हुआ था. हाँ तो सरदार मिल्खा सिंह भटिंडा वाले के खाने पीने पर रोक लग गयी...बहू रुखी रोटियां खिलाने लगी.....दाल में भी तड़का बंद...पराठोंपर मख्खन का क्या काम....सरदारजी अन्दर से परेशान मगर क्या खूब टेक्निक निकाली, मुझे बुला कर पंजाब की बंटवारे की बातें सुनते, कुछ ओरिजिनल जोक-सोक भी...फिर कहते बहू बेटे खूब ख़याल रखतें हैं, पूरा परहेज़ से रखते हैं, बहू क्या है माता का स्वरुप है खूब प्यार से खिलाती है, बेटी कीतरह स्नेह देती है.....बेटा तो कंप्यूटर की तरहा नाप-तोल वाला है...यह पंजाब दी पुत्तरी है..इत्यादि. समय के साथ साथ बहू का सोफ्ट कॉर्नर हो गया ससुर के लिए. एक दिन सरदारजी बोले, बेटा परांठों पर थोड़ा बटर लगा दो अच्छे से और आज तड़का भी थोड़ा तगड़ा लगाना......
छोटी सरदारनी बोली, "बौजी, आप तो पूरे परहेज़गार है, प्रोफ़ेसर साब को परहेज़ पर अच्छा भाषण देते हैं.....यह क्या ?"
बुध सरदार बोला, "ओये कुड़ी, कुछ गल्लें कहने दी होंदी है होर कुच्छ करने दी..
मैं पंजाब दा पुत्तर तू पंजाब दी पुत्तरी यह मद्रासी डॉक्टर की जानदा है..."
मैंने सुना, और मुझे यह जुमला बड़ा अअपील करने लगा.
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