Saturday, July 25, 2009

नव-निर्माण

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देखा गया है :

वो अपने आपको बहुत
कंजर्वेटिव कहते थे,
परम्पराएँ और रीतीरवाज
समाये थे रग रग में उनके,
हुआ करता था
प्रिय विषय उनके
करना चर्चा
पड़ोसियों, रिश्तेदारों या
असंबंधित लोगों के बाबत भी :
क्या पहनना चाहिए उन्हें?
कैसे रहना चाहिए उन्हें ?
अरेंज्ड मैरिज़ ही होती है अच्छी लव मैरिज से,
जो बच्चे माँ बाप की बात का
नहीं अनुसरण करते
बंद कर अपनी आँखें
होते हैं वे बिगड़ी औलादें,
चरित्रहीनता है
मैत्री पुरुष और नारी की,
गुनाह है
अधर्म है
खाना रेस्तरां में,
पढना विदेश जाकर
अपमान है
स्वदेश का,
बेहतर है देशी आयुर्वेदिक यूनानी इलाज़
एलॉपथी से,
लूटते हैं डाक्टर आजकल के,
बकवास है ब्यूटी पार्लर और जिम,
बिगाड़ती है
फेमिना,सावी, गुड हॉउस कीपिंग, कॉस्मोपोलिटन
इत्यादि पत्रिकाएं
घर की औरतों और लड़कियों को,
घातक है सेहत के लिए
जींस पहनना,
साड़ी है सब से उत्तम परिधान,
रहना होगा बहुओं को सर ढक कर,
करना होगा निर्वाह घूँघट परंपरा का,
नहीं है वाजीब बहुओं का शूट पहनना,
वेस्टरन्स ?????
ना बाबा ना ...
बहुओं के लिए क्या
नहीं माकूल बेटियों के खातिर भी,
बिगाड़ते हैं बच्चों को
टेलीविजन के कार्टून प्रोग्राम
डिज़नी, सिंचैन,कित्रेक्सू और पोगो,
हमारी संस्कृति है बस
रोटी सब्जी दाल चावल खाना ही,
पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, चिप्स है सब विदेशी
और षडयंत्र है हमें नष्ट करने के,
गद्दार है हर इंसान
मज़हब विशेष को मानने वाला,
और एक 'दूसरे धर्म' ने
कर रखा है आवाहन
लेने गिरफ्त में हमारे लोगों को
पश्चिम से मिले धन के बूते पर,
बचाना है हमें
अपने लोगों को इस आत्मिक विनाश से,
पढना चाहिए सिर्फ हमें अपने शास्त्रों को
जेहन में जहर भरता है विदेशी साहित्य
बाहर की फिल्में सीखती है हमें
हिंसा और कामवासना,
करना बहिष्कार उनका है
बचाना खुदको,
संगीत पश्चिम का है बिलकुल कान-फाड़ू
हमें बस करना है रसास्वादन हिन्दुस्तानी मोसिकी का,
ना जाने ऐसे कई अर्ध-सत्य
या अर्ध-झूठ
बिना इल्म के
कहे जाते हैं,
क्योंकि अंधे खंडन में
नहीं करना होता परिश्रम और
विवेकपूर्ण मंडन नहीं होता
बात उनके वश की..........

कैसे कैसे होतें है ये लोग :
जेहमत नहीं उठाना चाहते
ज्यादातर लोग जानने सोचने की,
नहीं उठा सकते जोखिम
बदलाव को स्वीकारने की,
यथास्थिति को बना के रखना देता है आराम उनको,
बिना उठा-पटक के लगता है अच्छा बस 'राम राम' उनको,
कहते हैं : अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम
दास मलूका कह गए सब के दाता राम,
बेमतलब के ये पंगे बनाते हैं उनको कुछ विशेष
बिना कुछ जाने बिना कुछ किये
दे देतें हैं हम उन्हें महत्व अशेष,
कुछ लोग होतें है वाकई जानकार
लेकिन रखते हैं अपनी सोचों के दरवाज़े ढांप कर,
आग्रहों के होकर वशीभूत सच्चाईयों को ठुकराते है
कुंठाओं में पल शांत-चित्त हिंसक बन जाते हैं,
भूतकाल में जीने वाले ये लोग वर्तमान को नकारते हैं
सब कुछ समझते हुए भी बस पुराने को स्वीकारतें हैं,
एक भीड़ सी हो जाती है तैयार
जिसमें कुछ पहली तरह के और
कुछ दूसरी तरह के अधकचरे बन्दे होते हैं
अपनी समझ को इन बुद्धिशाली-बलशाली लोगों के पास
रख कर गिरवी स्वयं को धन्य समझते हैं,
अपनी संस्कृति के उत्थान और देशभक्ति के नाम
ना जाने क्यों अपनी रोटियां सेकते हैं...........

तो क्या करें :

पश्चिम का अन्धानुकरण गैर-वाजिब है
अपनी साबित हुई बुराईयों से चिपका रहना भी
कहाँ वाजिब है.........
हमें हर बात को भावना से अधिक विवेक से देखना होगा
मानवता में आये बदलावों को स्वीकारना होगा
कुछ बातें होती हैं बेमानी .....बस बदलाव कि प्रक्रिया का हिस्सा
ना जाने क्यों कुंठित लोग अपने घर सब कुछ करते हुए
दूसरों कि ज़िन्दगी में क्यों लगाते हैं घिस्सा
नयी पौध परम्पराओं के नाम कुछ बातों को मान सकती है
बशर्ते कि उन्हें बताया जाये तर्कसंगत आधार
हमें बनाना है नया भारत
बंद करो यह पुराने का बेसुरा राग और अँधा प्रचार
हमें करना है सृजन ज्ञान विज्ञान और आर्थिक साधनों का
एक समृद्ध देश में अध्यात्म कि भावनाओं का
मज़हब फिरकों को हमें निजी चुनाव समझना होगा
खाने पीने और पौशाक के मसलों को साधारण समझना होगा
जड़ कि बातों पर देकर ध्यान हमें देश को आगे बढ़ाना होगा
दोस्तों ! हमें अपने भारत को फिर से एक ताक़त बनाना होगा ..............


(यह रचना भी 'ओब्सेर्वेशन सीरीज़ से है )






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