Monday, July 27, 2009

एक नज़्म : दिल जले आशिक की....(दीवानी सीरीज)


सोचा थोड़ा सा बदलाव हो,मेरे पोस्ट्स के मिजाज़ में.....सदाबहार 'दीवानी सीरीज़' की जानिब आपको ले जाना चाहता हूँ. उम्मीद है आपका प्यार मेरी इस 'बेवकूफी' को भी मिलेगा.

प्यार में तकरार....(बात दीवानी की)

प्यार में तकरार भी होता है, शायर/शायरा होने के नाते आप से ज्यादा कौन जानता है इस बात को. एक बार किसी बात पर हमें दीवानी की नाराज़गी नसीब हो गयी ...कालिज कि मैगजीन में एक ग़ज़ल उसके जानिब से छपी थी :

तुम्हारे आलम से चले जायेंगे हम
कसम खुदा की बहोत याद आएंगे हम.

रहोगे ढूंढ़ते हमें ज़माने में सनम
नजर तुमको ना फिर आयेंगे हम.

माना कि बहोत सताया है हमने तुमको
सताने कि खातिर फिर ना आयेंगे हम.

दोगे आवाज़ जो तड़फ कर हम को
बुलाये से भी ना फिर आयेंगे हम.

ना होगा तुझ से अब कोई शिकवा
तेरे जहान में ना फिर आयेंगे हम.

एक नज़्म : दिल जले आशिक की...(वि)

बहुत तड़फ उठा था मैं इस ग़ज़ल को पढ़ कर. सब कुछ 'upside down' सा लगने लगा था. उसके बिना ज़िन्दगी का तसव्वुर करना भी नागवार लग रहा था.यह जानते हुए कि यह सब बातें बेमानी है. यह नाराज़गी का एक फेज था बस. सारी बेवक्त सायानी हुई गंभीर सोचें मानो ताश के पत्तों के मुआफिक गिरती जा रही थी. एक किशोर की तरह मैं व्याकुल हो रहा था . इस खिंचाव में भी अपना एक लुत्फ़ था [:)]
अधूरेपन का आनंद ही कुछ और होता है.यह उस वक़्त का सच था. आज अपनों के साथ बैठ कर अचानक पुरानी बातें दोहराई जा रही थी, अपने बचपने पर हंसी भी बहुत आ रही थी, मगर जीये हुए उन पलों में एक प्यारी सी कशिश थी. आज भी वो यादें एक खुशनुमा एहसास देती है इससे इनकार करना मेरी हिपोक्रिसी होगा.
हाँ तो आज मुझे कहीं रखी मेरी यह नज़्म फिर से हासिल हुई जिसे आप से शेयर कर रहा हूँ. बस इस दिलजले आशिक की इस नज़्म की सिर्फ हिस्टोरिकल वेल्यु है मेरे लिए और कुछ नहीं. आज मैं भी खुद पर हँसता हूँ सोच कर कि क्या यह नज़्म मेरी कलम की पैदाईश है ?

जब तू ना होगी...............

जब तू ना होगी
ज़िन्दगी महज़
एक सूना सा मकबरा होगी
जिसमें दफ़न चंद यादें
चंद एहसास और थोडी सी
बेवफाई होगी
मुआफ करना गर दिल तेरा
कभी दुखाया हो
बिना वज़ह तुमको
कभी सताया हो
इसीलिए तो ना करते थे
हम इजहारे मोहब्बत
सोचते थे कहीं तेरी भोली सूरत ने
हमें भरमाया हो
कह दिया था जब हमने
अपना हाल-ए-दिल तुझ को
तड़फ तुम्हारे जानिब से
लगने लगी थी कुछ कम हम को
मेरी खामोशी शायद
रहती सताती तुझको
असमंजस की बातें तुम्हे
शायद मिला देती मुझ को
काश मेरा सर पूजन में नहीं
सजदे में झुका होता
मेरा यह दिल तूने
इस कदर ना फूका होता
क्या मिला तुझ को
खेल कर मेरे अरमानों से
जानम कभी ना दिल लगाना
मुझ से दीवानों से
माना कि तुम चली जाओगी
मेरी दुनिया से
हम तो इस दुनिया से चले जायेंगे
आसमान के उस पार खड़े
तुमको मुस्कुराते देख
मुस्कुराएंगे........
तुम बिन जीना भी क्या जीना है
मोहब्बत कि बेदी पर
खुद को न्यौछावर कर जायेंगे
याद आएगा जन्नत में भी
यह रूठना तुम्हारा
तुम किसी और के साथ हो
कैसे होगा हमें गवारा
अप्सराओं को मनाने का तरीका
देवताओं से
सीख कर लौट आयेंगे
अलविदा मेरी साँसों की मालिक
अगले जन्म में तुमको फिर पाएंगे......











No comments:

Post a Comment