अमूमन सभी खाविंद अपनी अपनी बीवियों से या तो डरते हैं या डरने का स्वांग करते हैं....क्या होता है इसका मनोविज्ञान इसकी चर्चा फिर कभी. बहरहाल मेरे जिगरी दोस्त मुल्ला नसरुद्दीन भी इस बात का अपवाद नहीं थे. बाहर टाईगर बने घूमते और घर में घुसते ही भीगी बिल्ली. हम सब जानकर भी अनजान बन जाते कि मुल्ला और भाभी का समीकरण कुछ ऐसा सा है याने टाईगर और भीगी बिल्ली सा. मैं कहा करता, "Mulla, tiger is a big cat or cat is a small tiger ?" इस उम्मीद में कि मुल्ला कुछ कहे, कुछ दिल कि बात बताये....अपने 'सुखद' दमत्य जीवन के कुछ सजीव किस्से सुनाये. मुल्ला वैसे तो बहिर्मुखी व्यक्तित्व... किन्तु इस मुआमले में बिलकुल सूम. एक दिन मुल्ला मूड में था, देने लगा स्टेटमेंट :
"अबे प्रोफ़ेसर सुन ! आज तेरी भाभी बेगम साहिबान के घुटने टिका दिए."
मैंने भी communities में जिस तरह फास्ट कमेंट्स पोस्ट्स पर दिए जाते हैं, अपनी टिपण्णी बढा दी :
"वाह ! मेरे टाईगर.... कमाल कर दिया तू ने.....आखिर साबित कर दिखाया कि तू सच्चा मर्द है."
मुल्ला के घनी मूंछ दाढ़ी होने, छः संतान को सफल पैदा करने-जिनमें सभी के चेहरे मुल्ला जैसे हैं (एकाध क्लोन बच्चा पड़ोस में भी देखा गया) के बावजूद मेरे जैसे शिक्षित इन्सान का यह कथन, "कि तू सच्चा मर्द है." थोड़ा अजीब है ना, मगर सोसाइटी में ऐसा ही बिना सोचे कह दिया जाता है, जैसे 'आटा पिसाना', 'उसके सगे पिताजी थे' वगैरह .
हाँ तो नसरुद्दीन बोला, " अमां रहे ना तुम पढ़े लिखे अहमक, क्या हुआ दुनिया-जहान को पढाते हो....अरे बेवकूफ ! वह पलंग के पास जमीन पर घुटनों के बल बैठ झुक कर मुझे कह रही थी-मुल्ला बाहर निकल आओ... वादा करती हूँ कुछ नहीं करुँगी-कुछ नहीं कहूँगी-----बस यार जान बची लाखों पाए."
मैं बेवकूफ कि तरह मुल्ला कि तरफ देख रहा था , और मुल्ला मेरे ड्राइंग रूम में बोन-चाइना के कप से सौसर में चाय ढाल कर जोरों से फूंक मार रहा था.
"अबे प्रोफ़ेसर सुन ! आज तेरी भाभी बेगम साहिबान के घुटने टिका दिए."
मैंने भी communities में जिस तरह फास्ट कमेंट्स पोस्ट्स पर दिए जाते हैं, अपनी टिपण्णी बढा दी :
"वाह ! मेरे टाईगर.... कमाल कर दिया तू ने.....आखिर साबित कर दिखाया कि तू सच्चा मर्द है."
मुल्ला के घनी मूंछ दाढ़ी होने, छः संतान को सफल पैदा करने-जिनमें सभी के चेहरे मुल्ला जैसे हैं (एकाध क्लोन बच्चा पड़ोस में भी देखा गया) के बावजूद मेरे जैसे शिक्षित इन्सान का यह कथन, "कि तू सच्चा मर्द है." थोड़ा अजीब है ना, मगर सोसाइटी में ऐसा ही बिना सोचे कह दिया जाता है, जैसे 'आटा पिसाना', 'उसके सगे पिताजी थे' वगैरह .
हाँ तो नसरुद्दीन बोला, " अमां रहे ना तुम पढ़े लिखे अहमक, क्या हुआ दुनिया-जहान को पढाते हो....अरे बेवकूफ ! वह पलंग के पास जमीन पर घुटनों के बल बैठ झुक कर मुझे कह रही थी-मुल्ला बाहर निकल आओ... वादा करती हूँ कुछ नहीं करुँगी-कुछ नहीं कहूँगी-----बस यार जान बची लाखों पाए."
मैं बेवकूफ कि तरह मुल्ला कि तरफ देख रहा था , और मुल्ला मेरे ड्राइंग रूम में बोन-चाइना के कप से सौसर में चाय ढाल कर जोरों से फूंक मार रहा था.
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