ऐसा हुआ था :
वह लड़की थी ना
भाईयों से अंतर रखा जाता था
हर बात में
खाना पीना पहन-ना पढना
व्यवहार और प्यार-सम्मान
सब में दोयम दर्जा,
किशोर अवस्था और वयसंधिकल
हर घटना चरम पर दिखाते थे
मुहांसे हो या कुछ और,
ऐसे में एक साधारण से दिखनेवाले
असाधारण सहपाठी से हो गयी थी
मुलाक़ात....
बातें उसकी देती थी सुकून
ज़ज्बा आगे बढ़ने का
लगा था दोनों को
बने हैं एक दूजे के लिए
खिल गया था उसका तन-मन
आ गया था उसमें अद्भुत आकर्षण
लड़का भी बुन-ता था सपने
लिखता था नज्मे उस को ले के
आँखों में उसके असीम प्रेम था
हर सांस में बस अपनी
प्रियतमा का वुजूद था
आदर्श उस किशोर में
कूट कूट कर समाये थे
साहित्यकार और पत्रकार बन-ने के
ख्याल उसको भाए थे......
फिर आया था एक तूफ़ान :
एक नव-कुबेर का सुपुत्र
कभी विदेशी बाईक और कभी देशी सिडान में
कालेज आता था
पढने से ज्यादा रौब ज़माने में
वक़्त बिताता था
नाभि के नीचे जींस बांधता था
कानों में बाली और हाथों में
मोटी घडियां लगाता था
हाथों में न जाने क्या क्या लटकाता था
जटा उसकी कभी ऋषि मुनियों से होती
कभी हो जाता था गाँधी कि तरह सफाचट
कभी गज़नी के आमिर सा बनता था रोड मैप
तरह तरह का केश विन्यास था
मुंह पर हिंदी-अमेरिकन गालियाँ होती थी
हर सही काम से उसे सन्यास था
बातें उसकी होती थी लच्छेदार
लड़कियों को फंसाने के जानता था कई किरदार
हमारी नायिका भी छोड़
उस पंकज उदास को
साथ हो गयी थी इस dude के
गाड़ियों में घुमाता था
बरिस्ता और डिस्को में ले जाता था
रेव-पार्टीज की वह उसकी संगिनी थी
नयी नयी पैंगे नायिका की अनगिनी थी
हमारा उदास रहा करता था ग़मगीन
कभी पौधों कभी फूलों को देखता था
डूबते सूरज के मंजर में खो जाता था
ना जाने क्यों उसकी एक झलक को तरस जाता था
उस दिन नायिका अर्ध नग्न अवस्था में
शहर के बाहर सड़क किनारे
बेहोशी कि हालत में
फैंकी पाई गयी थी
सुबह कि हेड लाइन ने उसके नशे लेने कि
आदत बताई थी
सहमति से हुआ था या बलात्कार
जो भी हुआ था टूटने के लिए काफी था
बाप के पैसे और रसूख से
बिगडा बेटा आज भी इतरा रहा था
हमारा उदास उस पल
अपनी बिछुडी साथी के भीतरी घावों पर
अपने धीरज और ईमानदारी से
मरहम लगा रहा था.........
मैं कहना चाहता हूँ :
परिवार का व्यवहार किशोरों को
भटका सकता है
कोई भी मतलबी उन्हें अपने
जाल में अटका सकता है
जीवन मूल्यों को जताना बताना ज़रूरी है
नयी पौध को
आजाद खयाली और आज़ादी ज़रूरी है
उसके साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है
पश्चिम से पहले हम ने आंतरिक आज़ादी का
पाठ पढ़ा था और पढाया था
बरसों कि गुलामी और गुलाम सोचों से
हम ने अपने आदर्शों को गंवाया था
आर्थिक उदारता ने बहुत कुछ दिया है
मगर ले लिया है हमारा मौलिक जीवन दर्शन
जिसमें बहुत कुछ है ऐसा जो
हमें एक 'फ्री लाइफ विथ रेस्पोंसिबिलिटी' को
सीखा सकता है
पश्चिम से पूरब को बहुत आगे ले जा सकता है..........
(जताना बताना=सिद्धांत और व्यवहार दोनों से प्रस्तुति करना)
(नयी वेशभूषा के मैं खिलाफ नहीं हूँ, यहाँ सिर्फ 'भैयाजी' के व्यक्तित्व को आपके समक्ष लाने के लिए उसको describe किया है )
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