Friday, July 10, 2009

यह पल ना जाने फिर कब आएगा…….

बागवान !
मत तौड
फूल को
यह तो
खुद-बखुद
कुम्हला जायेगा
मुस्कुराने दे इसे
चन्द और लम्हात
यह पल
ना जाने
फिर कब आएगा…….

रे निर्मोही पुजारी !
आज तो
पूजा के थाल को
रीता ही ले जा
बस सुन जा
सच बात को
जो नहीं बताई थी
पहले
किसी ने
तुझ को……

जहाँ तपे
साधक
वही
काशी है
जहाँ
गिरता है
फूल
वही
प्रभु के चरण है
किसी भी नाश से क्या
प्रसन्न हो सकता है
अविनाशी……

बागवान !
मत तौड
फूल को
यह तो
खुद-बखुद
कुम्हला जायेगा
मुस्कुराने दे इसे
चन्द और लम्हात
यह पल
ना जाने
फिर कब आएगा…….

जो मारते हैं
निर्मम प्राणी
वे पुनः आते हैं
काँटे बन कर
ना ही
खिल सकते हैं
ना ही
मुस्कुरा पाते हैं वो
कहाँ ऐसा
भाग्य
उनका कि
झर पाए
संग फूलों के
उन्हें तो
अपने पाप कर्मों का
फल होता है
भुगतना…….

पगले !
फिर पश्चाताप करने से
कैसे छूटेगा
लाख चौरासी का बंधन
जाग ऐ सोये मानव !
जगाले ज्योत
चैतन्य की
इस रात का तिमिर
भाग जायेगा………..

बागवान !
मत तौड
फूल को
यह तो
खुद-बखुद
कुम्हला जायेगा
मुस्कुराने दे इसे
चन्द और लम्हात
यह पल
ना जाने
फिर कब आएगा…….


( एक मनीषी के सद्वचनों से प्रेरित)

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