Monday, July 27, 2009

मुल्ला के 'logical interpretations'

मुल्ला नसरुद्दीन भी अपने स्वार्थ और अहम् के अनुसार धर्म और नैतिकता कि व्याख्या करनेवालों में से हैं. विश्वबंधुत्व के भाव की वज़ह से धनाधन विलायती चीजों का इस्तेमाल करते हैं....मेरे हर दोस्त से जो विदेश से लौट-ता है या आता जाता है, मुल्ला की फरमाईश पर परफ्यूम,कपडे, चोकलेट्स, इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स, स्कोच, इन्नर वेअर्स और कुछ उट पटांग चीजे जिनका यहाँ जिक्र करना शालीनता के नाते उचित नहीं होगा, नसरुद्दीन को बतौर गिफ्ट लाकर चढाता है. हाँ रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में 'दस्तरखान से हमाम-ओ-संडास' तक मुल्ला एक दम देशी है. नमाज़ के मुआमले में, रोजा रखने की बात में अपने अकाट्य तर्कों को रख कर या बहाना बना मुल्ला खिसक जाते हैं, मगर बच्चे पैदा करने के मुआमले में बिलकुल मज़हबी फरमान को मानते हैं. तभी तो कुल मिलाकर १७ जिंदा औलादें हैं अपनी तीनों बीवियों से. दो को तो तलक दे चुके, अब एक बीवी १७ बच्चे, छोटा घर, कम आमदनी, क़र्ज़ कि अर्थव्यवस्था, मगर फज़ुलखर्ची......मुल्ला का दिमाग खुराफाती.
मैं अपने काम के सिलसिले में दूसरे शहर जा कर बस गया था . एक दफा किसी कांफ्रेंस के सिलसिले में मुल्ला के शहर में चला आया. नेचुरली, अपने जिगरी दोस्त के घर बुलाये बिन बुलाये मिलने जाना लाजिमी था....मॉल से थोडी टोफियाँ और बिस्किट्स , मिठाई दूकान से लड्डू उठाये और पहुँच गया मुल्ला के घर.

भाभीजान 'as usual' थोडी तुनकायी सी, थोडी खीजी सी थी...घर कि हालत और बिन बुलाये मेहमान का चले आना, मगर मेरे चेहरे पर स्नेह के भाव देख कर और हाथों में बड़े बड़े पेकेट देख कर उनका थोड़ा ह्रदय परिवर्तन हुआ, मेरा स्वागत किया गया. मैंने देखा फटेहाल घर में सिर्फ दो बच्चे उछल कूद कर रहे थे.....एक अलमारी से कूद रहा था तो दूसरा सोफे पर रॉक-न-रोल कर रहा था.....मुल्ला ने तुंरत अपनी फटी लुंगी को बदल कर पयजामा कुरता पहना. रस्मी दुआ सलाम हुई, यारों के गिले शिकवे हुए, हम से तो अच्छे तुम रहे जैसी बातें हुई....मैं पूछ बैठा , "अमां मुल्ला तुम्हारे तो १७ बच्चे हैं, यहाँ तो बस दो ही दिखाई दे रहे हैं, बाकि १५ कहाँ है......?"
मुल्ला बोला आजकल मैं थोड़ा तरक्की-पसंद हो गया हूँ. परिवार-नियोजन वालों कि बातों पर अमल करने लगा हूँ. वोह बहोत बातें कहते हैं उनमें से एक यह भी तो है, "एक या दो बच्चे, होते हैं घर में अच्छे." इसलिए मैंने बाकियों को पड़ोसियों के घर भेज दिया है.
मैंने सर पकड़ लिया, मुल्ला कि हाजिरजवाबी और अवसरवादिता को देख कर.

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