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चक्षु हीन
सोचे
स्वकल्पना में
छवि यदि
प्रकाश की,
पहुँच सकता है
वह अनेकों
सत्य प्रतीत होते
परिणामों पर,
किन्तु होंगे वे
मात्र
अनुमान...
शांत सरोवर में
छवि
शशि की
नहीं बन जाती
स्वयं शशांक,
एक है विद्यमान
किन्तु
द्वितीय
मात्र
अनुमान...
लगा कर
छलांग कोई
सरोवर में
नहीं
पकड़ पायेगा
चाँद को,
हो जाएगी
खंडित विकीर्ण
छवि उसकी,
और हो जाएगी
कठिन
उसकी
पहचान...
समझाओ ना
निगौड़े
मन को
ना बनाये
छवियाँ,
यह क्रम होगा
बस करते जाना
उत्पन्न
उर्मियाँ और तरंगें,
हो कर
वस्तुस्थिति से
अनजान...
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