Tuesday, March 22, 2011

अतुलजी की गिनती (होली पर)

मुदिताजी-अतुलजी ने मुझे होली के अवसर पर खाने पर बुलाया.

गुजिया बहुत अच्छी बनी थी. मैं भंग की तरंग में था और खाए जा रहा था. लगा कि गुजिया ख़त्म हो गयी.

अतुलजी ने मुदिताजी से कहा, "अरे सुनती हो, प्रोफ़ेसर साहब का पेट क्या गुजिया से ही भरा दोगी. अरे इन्हें सब्जी पूरी आचार चटनी वगेरह भी तो खिलाओ."

मेरी भूख खुल गयी थी. मैं एक के बाद एक पूरी खाए जा रहा था. अतुलजी को मुदिताजी के नाज़ुक हाथों की फ़िक्र हो रही थी, बेलते बेलते कहीं दुखने ना लगे. और बनिये ठहरे, यह बर्बादी भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.

अतुल जी ने कहा, "अरे सुनती हो, प्रोफ़ेसर साहब के लिए एक गरमा गरम पूरी और ले आओ."

मैं ने हाथ हिलाते हुए कहा, "नहीं नहीं रहने दीजिये, मैने पहले से ही पांच पूरी खा ली है."

इतने में अतुल जी ने कहा, "अरे खाईये ना, गिन थोड़े ही रहे हैं. वैसे आप पॉँच नहीं आठ पूरी खा चुके हैं. एक और ले लीजिये, एक और खा लेंगे तो कौन सा फर्क पड़ जायेगा, क्या बिगाड़ जायेगा ?"

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