Monday, March 14, 2011

बिंदु बिंदु विचार : खेल प्रेम का...

  • प्रेम का खेल बड़ा अजीब होता है. शोख अदाएं जैसे कि शर्माना, सताना,रूठना, मनाना, झूठे सच्चे वायदे, खुद के 'बायो डाटा' का बार बार वर्णन प्रतिपादन, बिना वज़ह मुस्कुराना, रातों की नींद उडाये रहना, अलसाए अलसाए से रहना, ख़ुशी से पागल हो जाना इत्यादि...प्रेम के खेल में 'कोमन' चाहे पात्र बदलते हों अथवा आवृति.
  • बात उस ज़माने की करते है जरा, जब मोबाईल फ़ोन तो क्या लैंड लाइन तक उपलब्ध ना होती थी. प्रेमी जन इशारों इशारों में बातें किया करते थे. कोई कोई ज्यादा प्रोग्रेसिव हुए तो 'लेटर्स' का आदान प्रदान नाना विधि कर लिया करते थे...कभी महबूब महबूबा के घर में पत्थर से लपेट कर अपनी लिखावट भेज दिया करते थे, तो कभी महबूबा के घर की धाई माँ मोहवश या लालचवश 'बाईसा' के पैगाम 'बन्ना' तक पहुंचा दिया करती थी, कभी कभी यह शुभ कार्य अध्यापक-अध्यापिकाओं के सौजन्य से संपन्न होता था. कहने का मतलब 'कम्युनेकेशन' बहुत कठिन होता था.
  • भाषा सम्बन्धी बात को लें तो उस समय 'आर्चिज' 'हालमार्क' के रेडीमेड इश्किया मज़मून वाले कार्ड्स नहीं मिला करते थे, प्रेमियों को अपने खतों के 'कंटेंट्स' को तड़का देने यहाँ वहां से इश्किया शेर-ओ-शायरी खोज के निकालनी होती थी. अजी, और तो और ये पत्र भी लिखवाये जाते थे.
  • कुछ शिक्षा की 'कमी' थी, कुछ 'यथावश्यक' दीक्षा का 'अभाव', प्रेम का इज़हार बहुत मुश्किल हो जाता था. हाँ फ़िल्मी गाने कुछ मदद कर सकते थे मगर हमारे ज़माने में ज्यादातर गाने रोने रुलाने वाले होते थे, याने आदर्श प्यार, प्रेम में तड़फना, अपने प्रेमी/प्रेमिका के किसी और के हो जाने पर दुआ करना, ज़ालिम ज़माने को कोसना, जुदाई में मरने की घोषणा कर देना, इसलिए प्रेम में दर्द की शिरकत कुछ ज्यादा ही रहती थी.
  • आइये उस ज़माने के कुछ जुमले/शेर/शायरी आप से शेयर की जाय : "रोशनी चाँद से होती है सितारों से नहीं, मोहब्बत एक से होती है हजारों से नहीं." प्रेमी लिखता था :"लिखता हूँ ख़त खून से स्याही मत समझना, मर रहा हूँ तेरी याद में, जिंदा मत समझना. इसका जवाब प्रेमिका देती थी : "लिखते हो ख़त खून से क्या स्याही मिलती नहीं, मर रहे हो मेरी याद में, क्या दूसरी मिलती नहीं." कोई कोई अपने ख़त में लिखता :"सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट जे उसूलों से, सुगंध आ नहीं सकती कभी कागजा के फूलों से." और जवाब होता था, "सुगंध आ सकती है गर कागज़ में चमेली का तेल हो, सच्चाई छुप सकती है अगर आपस में मेल हो." 'मेरे दिल के राजा', 'मेरी प्यारी रानी' जैसे सामंती संबोधन प्रचलित थे, जवांदिल लोग बिना ताज के 'राजा' 'रानी' बने फिरते थे.
  • हाँ तो ऐसे में प्रेम एक बहुत ही सीक्रेट गतिविधि हुआ करता था. इशारों में बहुत कुछ कहा सुना जाता था. और कुछ प्रेम तो बस नियत समय पर एक दूजे को देखने मात्र से सम्पादित हो जाते थे. कालांतर में ज़ालिम ज़माना प्रेमियों को जुदा कर देता था. एक समय के बाद ट्रेन बस में अधेड़ प्रेमी कि मुलाक़ात रजोनिवृति के करीब पहुंची विवाहित हो चुकी प्रेमिका से होती थी, बस आँखों आँखों में देख कर मानो प्रेम अध्याय का उपसंहार कर दिया जाता था.
  • अक्सर प्रेम बड़ा गहरा होता था. साथी बदलना कभी कभी मुश्किल मगर ज्यादातर केसों में नामुमकिन होता था. वफ़ा की यही तो परिभाषा होती थी.
  • मैने तो भई कई प्रेम झेले हैं. अनेकों असफल प्रेम कहानियों का हीरो यह 'मासटर' रहा है. जाति , धर्म, वर्ग और वर्ण से परे तक हमारे प्रेम का फैलाव रहा है. खैर ये सब कहानियाँ फिर कभी अभी तो लालायित हूँ एक हाल ही घटना आप से शेयर करने के लिए.
  • एक नवयौवना ने 'एन आर आई' कोटा से एक मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में 'एम बी ए' में प्रवेश लिया. मेरा दुर्भाग्य या सौभाग्य, मैं वहां गेस्ट फेकल्टी था. 'मनोविज्ञान' और ' 'बिहेवेरियल साईंस' पढाता था मैं. ना जाने बालिका को क्या मन में आया, मुझे अपने तौर पर प्रोपोज कर डाला उसने, मेरे घर के पाते पर डाक से उसका एक ख़त मिला, जिसमें लिखा था-"मैं आपके ज्ञान और मेधा से इम्प्रेस्ड हूँ, मुझे आपसे सिर्फ आपसे प्रेम हो गया है, आप ही मेरे स्वप्न पुरुष हैं. मैने आपकी सब रचनाएँ पढ़ी है...आपके पास हेड भी है हर्ट भी. आई लव यू".
  • मन में मेरे भी लड्डू फूट रहे थे, मगर तथाकथित इज्ज़त का डर...कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं के भाव और उसके ऊपर पुराने खट्टे मीठे अनुभव. मैने तो भाई साहब, उनको यह समझा कर अपना पीछा छुड़ाया,अरे मैं आपके पिताश्री कि उम्र का हूँ...मुझे तुम अंकल नहीं तो बस भैय्या कह सकती हो, सैंया बनने की क्वालिफिकेशन अब हमारी नहीं रही. या कहिये कि हम ओवर एज जो हो गए थे.
  • वे हर्ट हुई थी मगर उनकी यह हर्ट मोमेंट्री थी, वो कोई पुराने ज़माने की प्रेमार्थी नारी नहीं कि टूट जाये..आंसू बहाए...और गाये - मेरा सुन्दर सपना बीत गया. वह तो आज की नारी थी जो गलती से एक बूढ़े प्रोफेसर से इम्प्रेस हो गयी थी, शायद 'चीनी कम', 'लम्हे' 'जोग्गेर्स पार्क' या 'दिल तो बच्चा है' का फौरी असर था, जो यह रिस्की काम कर बैठी थी या कुछ 'लीक से हटकर करने का' विद्रोही ज़ज्बा रहा होगा उसका. खैर उस ने सब भूला कर नोर्मलसी अख्तियार कर ली थी. मैं भी इस चेप्टर को भूला चुका था.
  • मोहतरमा कोई पुराने ज़माने की प्रेम करनेवाली थोड़ी ही थी. वह तो खूब दाने बिखेरती, कबूतर इक्कट्ठे होते जाते. उनके जलवे केम्पस में प्रसिद्धि पा चुके थे.
  • एक दिन का वाकया है. इसी फरबरी के दूसरे सप्ताह की बात है. मेरे भतीजे ने उत्कट इच्छा कि आर्चिज की दूकान से कुछ कार्ड्स और गिफ्ट चुनने में 'काकासा' याने मैं उसकी मदद करूँ. दरअसल भतीजा राम काकासा से अपने इस प्रोजेक्ट को फायनेंस कराना चाहते थे, और मुझे फंसाने का यह उनका मोडर्न तरीका था. मुझे अपने भतीजे से बहुत स्नेह है, इसलिए सब जानते हुए भी उसकी फरमाईस का केयर करना मुझे बहुत सुखा देता है.
  • हाँ तो जनाब, हम आर्चिज गेलरी में हैं..कार्ड्स, टेडी बीयर्स, सोफ्ट टॉयज, म्यूजिक सीडीज, असली नकली फूलों के गुलदस्ते, पोरसेलिन का बहम करते मेड इन चाईना के फिगर्स/पुतले इत्यादि देख रहे हैं. मौसम बहुत खुशगवार है, वेलेंटायिन डे आने को हैं, किशोर किशोरियां बड़ी तादाद में गेलरी में छाये हुए हैं...घस घिस कर या घसीट कर बोलने वाली हिंदी अंग्रेजी के जुमले सुनाई पड़ रहे हैं. चाचा भतीजा दोनों ही खुश.
  • अचानक देखता हूँ वह 'ऍन. आर. आई. ' मोहतरमा वहां दिखाई दे रही है. काली जींस, काला टॉप... कानों में बड़े बड़े गोलाकार बाले..क़हर ढ़ा रही है. खूबसूरत जो थी, शोख और चंचल भी...ऊपर से अंग्रेजी का अमेरिकन एक्सेंट....हाथ में लिए थी दो मोटी सी किताबें. मैने कनखियों से किताबों के नाम पढ़े : एक थी 'ओटोबायोग्राफी ऑफ़ एरिक क्लेप्टन' और दूसरी थी दीपक चोपड़ा की 'एजलेस बोडी टाइमलेस माईंड' भतीजा राम उसे देखे ही जा रहे हैं और मैं उसके बुद्धिजीवी विचारशील और गंभीर होने की प्रतीक उन दोनो किताबों को...सायकोलोजी के साथ साथ बायोलोजी भी कम कर रही थी. मुझे तो लगने लगा था एक सुन्दर शरीर में एक सुन्दर दिल और मेघावी मस्तिष्क रहता है....एक गाना भी कानों में गूंजने लगा था, 'ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन.
  • सच कहूँ, मैं तो भूल ही गया था कि मैं एक बूढा प्रोफ़ेसर हूँ, किसी रियासत के भूतपूर्व शासक परिवार से हूँ...जगह जगह लोग मुझे जानते और पहचानते हैं...बस उसका जादू मेरे सर पर भी चढ़ कर बोलने लगा. आखिर दिल तो बच्चा है जी.
  • भतीजा मुझे रकीब नज़र आने लगा था. मेरे अन्दर तलत महमूद, रफ़ी, महेंदर कपूर, मुकेश तरह तरह के प्रेम गीत गा रहे थे. हेमंत दा और पंचम भी हावी होते जा रहे थे. जवाब भी तुरंत सुरैय्या, लताजी, सुमन कल्यानपुर, आशाजी के सुरों में मिलते जा रहे थे. कल्पना का संसार कितना सुहाना होता है और हकीक़त को कैसे लील लेता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उस समय कि मेरी स्थिति थी. मुझे ना जाने क्यों लगने लगा था मेरे किशोरावस्था के दिन लौट आये हैं, तरह तरह की तस्वीरें में बना रहा था मिटा रहा था.
  • इतने में सुना कि मोहतरमा कह रही थी सेल्स एक्जेक्युटिव से, "Don't you have the cards, you know...जिनमें लिखा हो, "I love you....I love you only.....you are the only one in my life." (क्या तुम्हारे पास ऐसे कार्ड्स हैं, जिनमें लिखा हो, मैं तुम से प्रेम करती हूँ...मैं सिर्फ तुम से प्रेम करती हूँ...तुम ही हो एक मेरी ज़िन्दगी में.)सेल्स एक्जेक्युटिव ने कहा, "यस मेम वी हेव देट." (हाँ मेम हमारे पास ऐसे कार्ड्स हैं)
  • मोहतरमा कह रही थी, "ओके पेक टेन कार्ड्स फॉर मी. गिव में डिफरेंट कार्ड्स विद द सेम मेसेज. यु सी आई हेव तो सेंड दीज टू डिफरेंट ड्यूड्स, हर्री अप प्लीज़, मुझे जाना है यू नो" (मेरे लिए दस कार्ड पेक करना. देखो सारे कार्ड अलग अलग डिजाईन के हो हाँ सन्देश बस एक हो, याने वही हो जो मैने तुम्हे कहा, मुझे अलग अलग छैल-छाबीलों को भेजने हैं. जरा जल्दी करना.)
  • मुझे होश आ गया था...मेरे बच्चे दिल-ओ-दिमाग पर फिर से एक गंभीर प्रोफेसर का मुलम्मा चढ़ गया था.
  • तुलसीदास जी की यह पंक्तियाँ अब मेरे कानों में फुसफुसा रही थी, " अब लौ नसेनी अब ना नसैहो." अब तक नाश (समय, श्रम इत्यादि) किया अब नहीं करूँगा.
  • एक जुआरी की तरह मैं प्रोमिज कर रहा था, " अब कभी भी मेरे ह्रदय उद्यान में प्रेम की कोंपलें नहीं फूटने दूंगा." देखिये कब तक बनी रहती है यह प्रतिज्ञा.
(मानेंगे नहीं आप मगर कथानक काल्पनिक है, किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता महज़ संजोग होगा.)

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