Wednesday, March 9, 2011

निशब्द आंसू: बिंदु बिंदु विचार

* हमारा प्रेम एक अलग नस्ल का था, तभी तो हम बोलने से ज्यादा मौन को महत्त्व देते थे. घंटों निकल जाते हुसैनसागर के पास किसी बेंच पर बैठे हाथों में हाथ लिए..बिना कुछ बोले सुने.

* तुम आँखों को देख कर मेरे मन के भाव समझ जाती थी. मेरे होंठों के हिलने के साथ ही मेरा मंतव्य तुम भांप लेती थी. अरे कभी कभी तो ऐसा होता था, मन में कुछ आया और तुम ने बता दिया,क्या सोच रह हूँ मैं. ऐसा ही कुछ मेरे पर लागू होता था तुम्हारे मुत्तल्लिक. कहा करती थी तुम मुझ को "विन,स्पंदनों की भाषा का तुज़ुर्बा बस तुम्हारा साथ मिलने पर हुआ, कितना शोर था दुनिया में, तुम आये तो लगा हरसू मौन है शांति है..शीतलता है..सुकून है. मौन ने मुझे स्वयं तक लौटने में मदद की है. मत कहो कुछ भी, बस आँखों में झांकलो, मन में मेरे लिए अपार प्रेम के इज़हार ले आओ, समझ लूंगी मैं, और मेरा जवाब तुम पढ़ लेना मेरी आँखों में, मेरे चेहरे पर, मेरे रौं रौं से प्रकट होते स्पंदनों में." समझ लेते थे ना, हम एक दूजे के वायिब्स को.

* अचानक एक दौर ऐसा आया कि तुम्हारी आस्था शब्दों में बढ गयी। ना जाने तुम्हे शब्दों से क्यों इतना प्रेम हो गया था. दोष नहीं था तुम्हारा, हमारी पसंद और प्राथमिकताएं बदलती जो रहती है. मैं नहीं बोलता तो तुम कहती, "तुम 'ऐसा' बोल सकते थे." मैं कुछ बोलता तो तुम कहने लगती, "तुम ऐसा नहीं ऐसा बोल सकते थे." कभी कभी तो तुम कहा करती, "देखो वह ऐसा बोलता है और तुम ?" या "मैं तो ऐसा बोलती हूँ और तुम॥?"

# मेरे लिए तुम्हारी ख़ुशी सर्वोपरि थी. तुम जिस बात से खुश होती मैं बोलने लगा. और आदतन भूलने भी लगा..अब शब्दों की एक नयी लड़ाई शुरू हो गयी...तुम कहती, "तुम ने उस दिन ऐसा कहा था, और आज बिकुल उसके उलट कह रहे हो." या "तुम तो मेरा मन रखने के लिए उपरी शब्द कह देते हो." या "तुम्हारे दिल में कुछ और, जुबान पर कुछ और होता है." एक दौर ऐसा आया तुम मुझे झूठा और फरेबी समझने लगी.

# सच कहूँ मुझे भी लगने लगा, मैं अव्वल दर्जे का झूठा इंसान हूँ, जो अपने शब्दों के रस में भिगो कर ना जाने क्या क्या परोसता रहता हूँ, तुम्हे भी और दुनिया को भी. मैने इतना अधिक पढ़ा और गुना था कि मेरे पास शब्दों का एक विशाल भण्डार जमा हो गया था. हर मौके के लिए, हर बात को साबित करने के लिए मेरे पास शब्द थे...और उस पर तुर्रा यह कि मेरे अकाट्य तर्क जो उस क्षण वह साबित कर सकते थे, जो भी मैं सोचता और समझता होता.

# और तो और मैं औरों के शब्दों के भी निर्वचन अपनी सहूलियत के अनुसार करने लगा। कोई कुछ भी कहे, मुझे शब्दों को उस रूप में सुनना और समझना था जो मैं चाहता होता.

* एक शब्दबाज़ के रूप में मेरी प्रसिद्धि फैलने लगी थी. दूर दूर से लोग मुझसे जानने आते कब क्या कहा जाय. कई उद्योगपतियों और राजनेताओं के भाषण मैं लिखने लगा. बॉलीवुड की कई फिल्मों में मुझे डायलोग लिखने का काम बिना मांगे मिलने लगा. मेरा एक एक शब्द असरदार होता था. प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए मैने एक संवादों वाली किताब लिख डाली, जो बहुत स़ी देशी विदेशी भाषाओँ में अनुदित हुई और जिसके कई संस्करण निकले..आज एक मल्टी नॅशनल पब्लिशिंग हॉउस ने उसके कापी राईट खरीदने का ऑफर दिया है, मेरे शब्दों के मदारीपने का अगला जादू उनके न्यूयोर्क ऑफिस में सीईओ के सर पर चढ़ कर बोलेनेवला है..देखना तुम भी, क्योंकि तुम मेरी हर खबर पर नज़र जो रखती हो.

* जब से मुझे नाना प्रकार के प्रायोजित तरीकों से 'आई लव यू' के तीन अल्फाज़ बोलने में महारत हासिल हुई है, मैने कभी भी मुड़ कर नहीं देखा. दुनियां के सबसे बड़े इस झूठ ने मेरे दिन और रातें कितनी रंगीन बना दी है इसको मैं एक आत्म कथानुमा बेस्ट सेलर नाविल के रूप में बाजार में उतारनेवाला हूँ.

* हाँ तुम तो चल दी हो मेरी इस शब्द बाज़ी के कारण मेरी ज़िन्दगी से, बस समझ लो तुम्हारी यादों , तुम्हारे ज़ज्बातों , तुम्हारे मेरे साथ को शब्द देकर मैं बहुत ही दिल छूने वाली नज्मे, गजले और नगमे लिख रहा हूँ..और सब उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं.

* हाँ अभी भी किसी कोने में बैठकर मैं निशब्द आंसू बहाता हूँ...काश कोई आये मेरे करीब मेरे शब्दों के लिए नहीं मेरे मौन के लिए.

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