Thursday, March 17, 2011

सफ़र इल्म का : मुल्ला नसरुदीन सीरीज

मुल्ला गाहे बगाहे किसी ना किसी को ले आता हैं मेरे पास, कहते हुए, मासटर बहुत दुखी हैं बेचारा, इसे तुम्हारी मदद की ज़रुरत है. यह मदद कई तरह की होती है, साहिबान, कभी रुपये पैसे की, कभी ज्ञान-घूंट की, कभी खुद के या बच्चों के पढाई लिखाई के बाबत कौन्सेलिंग की, हभी जायज नाजायज रिश्तों की उलझन को सुलझाने की, कभी कहीं सिफारिश करके काम निकलवाने की, कभी कभी टाईम पास भी. उसके पीछे शायद मुल्ला का कोई जाती इंटरेस्ट हो मगर दिखता हमेशा यही हैं कि समाजी मकसद है उनका, दूसरों को सपोर्ट करके उसे सुकून मिलता है वगेरह.
एक दिन मुल्ला मेरे पास किसी नवाबजादे को पकड़ लाये. बहुत ही डिजायनर कपड़े पहने थे, सब कुछ विलायती था, सिवा उनके पार्थिव शरीर के. बात बात में बता गए कि चड्ढी, बनियान, जींस, घड़ी,जुर्राब, जूते सब कुछ विदेशी ब्रांड्स के पहना करते हैं. बता रहे थे, आज ही की लो, जींस केनेथ कोल की पहने थे, टी शर्ट टोमी हिल्फीगर की, घड़ी स्वाच की थी, तो बेल्ट और कलम 'मोंट ब्लो' के...'ऑर्बिट' मार्का अमरीकी च्युंगम चबा रह थे.
नवाबजादे अफताब की अम्मीजान के साथ मरहूम नवाब बदरुद्दीन साहेब की तीसरी शादी थी। उम्र का बड़ा फर्क था दोनों में, मगर नबाब साहेब बेगम साहिबा से बेइन्तहा मोहब्बत करते थे. दरअसल मुन्नी के नाच-गाने और नाजो जखारों से नवाब साहब इतने खुश हुए थे कि बस उसका संगमरमरी हाथ पकड़ कर कह बैठे अब तुम मुन्नी बाई नहीं मुन्नी बेगम हो, फटाफट काजी को बुलाया गया, मेहर की रकम तय हुई , और निकाहनामा तैयार. कोई तीस साल पहले बीस साल की बदनाम मुन्नी मय अपने बेटे के हमेशा के लिए साठ साल के खूसट नवाब बदरुद्दीन की हो गयी थी.

निकाह के बाद मुन्नी बेगम नवाब साहब की कोठी में शिफ्ट हो गयी थी और नन्हा अफताब वहीँ पलने बढ़ने लगा था. बिगड़े रईस नवाब साहब का लाड़ प्यार जो आफताब के लिए कम और मुन्नी को खुश रखने के लिए ज्यादा था, अफताब को बिगाड़ बैठा. तालीम के नाम पर अफताब मियां नैनीताल भेजे गए, वहां से भगाए गए क्योंकि क्लास टेन में आते आते टीचर से इश्क फरमाने लगे थे और भी बहुत कुछ हिंदुस्तान के कानून में वर्जित करने लगे थे. खैर उनकी अल्टीमेट क्वालिफिकेशन कालेज ड्रॉप आउट की हुई. अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े होने के कारण अंग्रेजी की टांग तोड़ लेते थे. मगर वैसे अपनी माँ की तरह मंद बुद्धि और अड़ियल थे. तेज़ रफ़्तार में गाडी चलाना, आये दिन मार पीट करना, घर की चीजों को बेच कर जुआ खेलना, शराब पीना, औरतबाज़ी करना वगेरह उनके शौक हो गए थे. ना जाने कैसे हुआ, घर की नौकरानी नसीबन की बेटी नाजनीन को दिल दे बैठे थे अफताब साहब. अपनी परंपरा को निबाहते हुए, शादी से पहले ही नाजो को माँ बनने के प्रोसेस में ले आये थे हमारे नवाबजादे. यह शादी कुछ मजबूरी थी कुछ ज़रुरत और कुछ बस यूँ ही. खैर आज बतीस वर्षीय नवाबजादा अफताब जमा तीन औलादों के बाप थे.

इस बीच नवाब साहब अल्लाह के प्यारे हुए। धन सम्पति, कारोबार, शेयर होल्डिंग पर अफताब का दखल हो गया. शायद कहीं वर्जित जगह मुल्ला से मुलाक़ात हुई होगी इन जनाब की. आप जानते ही हैं, मुल्ला मेरी संगत में रहते अपनी बातों को मेरे जैसी बातों का रेपर दे कर पेश करने में माहिर हो गया है और इसी तरह की कोई गहरी सलाह उस बेवकूफ नवाबजादे को दे बैठा था मेरा यार मुल्ला नसरुदीन.

हाँ तो मुल्ला ले आया था किसी सन्डे की सुबह अफताब को मेरे यहाँ. परिचय कराया लम्बा चौड़ा. फिर लगा कहने, "मास्टर तुम ही तो कहा करते हो, बड़ा आदमी बनने के लिए स्कूल कोलेज की पढाई होना ज़रूरी नहीं. ज़िन्दगी की यूनिवर्सिटी में इल्म पाना काफी है. इस होनहार नौजवान के पास अल्लाह ताला के करम से सब कुछ है, बस दो ही चीज नहीं है : 'कोमन सेन्स' (सामान्य ज्ञान) और प्रेजेंस ऑफ़ माईंड ( दिमाग के तुरंत हाज़िर होने की खासियत). यह दो ही चीज तो तुम कहते हो इंसान को कामयाबी दिलाती है. मेरे प्यारे दोस्त मासटर, मदद कर मेरे इस दोस्त की, कर दे इंतज़ाम इसके लिए अमरीका में किसी 'ग्रूमिंग और पर्सनालिटी डेवलपमेंट स्कूल' में एक क्रेश कोर्स कराने का. मैं साथ जाऊंगा मेरे इस जिगर के टुकड़े के, दिन रात इसकी देखभाल करूँगा लौट के लिवा लाऊंगा तो यह अमरीका रिटर्नड यंग इंटरप्रेन्योर होगा, देखना इस ग्लोबलाईजेशन और लिबरलायिजेशन के दौर में इस हिन्दुस्तानी नौजवान के कदम चूमेगी कामयाबी. अरे इतने फैले हुए कारोबार का यह इकलोता वारिस कुछ करना चाहता है. मदद कर मासटर, मदद कर. तुम तो कहते हो ना कि मेरा मकसद सब को आगे बढ़ाना है, हौसला अफजाई करना है...ले मौका है, कर ले अपने मन की. मैं तो तुम्हारे लिए खोज खोज कर अपरचुनिटीज ले आता हूँ, आखिर दोस्त हूँ ना तेरा." मुल्ला बात बेबात एहसान जताने में माहिर है.

चाय की चुस्कियों के साथ मैने भरोसा दिलाया मैं ज़रूर मुल्ला के दोस्त की मदद करूँगा, बस थोड़ा वक़्त लगेगा मुझे इनके लिए माकूल बिजिनेस स्कूल खोजने में।

मुल्ला मुझे बताने लगा कि क्यों ना इन्हें ओहायो युनिवेर्सिटी में भेज दिया जाय जहां मैं और मेरा दोस्त राज गेस्ट फेकल्टी है या न्यूयोर्क के 'कार्नेगी इंस्टिट्यूट' में दाखिला दिलाया जाय.

उसके बाद अमेरिका को लेकर बहुत बातें हुई. हम हिन्दुस्तानियों का स्वभाव है, हम चाहे जिस एजेंडे के लिए मिले, हम उस मीटिंग/मुलाक़ात में उस खास विषय को छोड़ बाक़ी सब सायिडी विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, एक दूसरे को इम्प्रेस करने की झूठी सच्ची चेष्टायें करेंगे. स्ट्रीट स्मार्ट अफताब ने इस मुलाक़ात में समझ लिया था कि 'कोमन सेन्स' और 'प्रेजेंस ऑफ़ माईंड' का इल्म अमेरिका से हासिल किया जा सकता है. उसने यह भी सोच लिया था कि मुल्ला को साथ नहीं ले जायेगा क्योंकि मुल्ला 'डबल' ही नहीं 'मल्टीप्ल' क्रोस करने वाला इंसान है, नाजो को ही नहीं दुनिया भर को बता देगा अफताब ने अमेरिका में क्या क्या किया ?

इस बीच सुना कि मुल्ला से अफताब का ब्रेक ऑफ़ हो गया था। ऐसी यारियों का आयुष्य मित्रों बहुत कम होता है. कभी वो साथ नहीं रहते, कभी हम साथ नहीं देते. बस बदलते साथी कार्यक्रम चलता रहता है. हाँ तो अफताब ने इस बात का इंतज़ार करना मुनासिब नहीं समझा कि मैं, मासटर याने प्रोफ़ेसर विनेश सिंह उसके लिए अमेरिका के किसी संस्थान में दाखिले का इंतजाम करूँ. नवाबजादे चल दिये अमेरिका. न्यूयोर्क के 'जे ऍफ़ के' एयर पोर्ट से बाहर आये तो चुंधिया गए हमारे अफताब मियां. इधर उधर भटकने लगे. एक्सेंट की मुश्किल... मियां बता नहीं पाते थे कि उन्हें कहाँ जाना है. फिर भूल भी गए थे एक्जेक्ट नाम उस 'इंस्टी' का जिसका मैने बातों के दौरान जिक्र किया था. इतने में एक टेक्सी रुकी, टेक्सीवाला कोई पाकिस्तानी था. अफताब साहब सवार हो गए 'केब' में. ड्राइवर ने उर्दू में पूछा कहाँ जाना है, अफताब को साँस में साँस आई. मगर भूल गए कि कहाँ जाना है...सिर खुजाने लगे बोले 'डार्लिंग इंस्टिट्यूट' (कार्नेगी भूल गए थे), मंदी का दौर और हमारी हिन्दुस्तानी/पाकिस्तानी माटी का असर॥टेक्सीवाले ने सोचा आज अच्छी मुर्गी फंसी है. वह एक लम्बे सफ़र पर चल निकला, ना जाने कहाँ कहाँ घुमाया मगर 'डार्लिंग इंस्टी' कहाँ ?

दो घंटे बेफजूल घुमाने के बाद उसने नवाबजादे से कहा, "भाई साहब यह इंस्टी तो मिल नहीं रहा. आप वहां किस मकसद से जाना चाह रहे थे." नवाबजादा थोड़ा 'लो' 'फील' करने लगा था, दूसरा मुलुक, अजीब से नज़ारे, कहने लगा, "मैं तो यहाँ 'कोमन सेन्स' और 'प्रेजेंस ऑफ़ माईंड' सीखने आया हूँ." टेक्सीवाला बहुत ही खेला खाया था, उसने समझ लिया, बन्दे को बन्दर बनाया जा सकता है. लगा कहने, "अजी पहले बताते, क्या हुआ जिन्ना नेहरु ने सैंतालिस में लकीर खींच दी, आखिर हैं तो हम एक ही माटी के. अरे मैने भी यह कोर्स किया हुआ है. क्या ज़रुरत है हजारों डालर खर्च करने की. मैं आपको बस एक हज़ार डालर में दोनों बातें सिखा दूंगा. ये ठगते हैं जी हम देशियों को..लाल मुंह वाले बन्दर."

हम हिन्दुतानी-पाकिस्तानी बहुत सयाने होते हैं। हमें हर चीज अन-ओफिसियल करने में फायदे नज़र आते है. जैसे गोम्स 'ताज ग्रुप' के लिए केक बनाता है तो हम ताज होटल से केक ना लेकर सस्ते में गोम्स के किसी अनोफिसिअल चेनल से घटिया केक ले ले लेंगे. गाडी किसी ओथोराईजड सर्विस सेंटर से मरम्मत नहीं करा कर उसी सेंटर के किसी मिस्त्री को पकड़ कर प्राईवेट में 'काम' करा लेंगे. यहाँ भी ऐसा ही हुआ. नवाबजादे बोले,"सिखा दो" टेक्सी वाले ने कहा फीस पेमेंट करो...और अब तक के भाड़े का भी पेमेंट. वसूली के बाद, टेक्सी को किसी सुनसान जगह में रोक कर टेक्सी वाले ने, जिसका नाम जलाल था, ज्ञान देना शुरू किया.

जलाल ने कहा, "आप सीखना चाहते हैं ना 'कोमन सेन्स' ? मुझे एक सवाल का जवाब दीजिये. मेरे खानदान में पॉँच मेम्बर हैं.एक मेरी बीवी है, तीन मेरे बेटे बेटी,बताइए पांचवा कौन है ?"

अफताब साहब बगले झाँकने लगे, पाकिस्तानी जलाल ने मानो कश्मीर का सवाल उठा दिया हो. कहने लगे, "भाई मैं तो नहीं बता सकता इस कठिन सवाल का जवाब. मेहरबानी कर के तुम्ही बताओ."

जलाल ने अपनी जीत का डंका बजाते हुए छाती चौड़ी करके कहा, " अरे पांचवा मैं और कौन ?"
अफताब को लगा कि यही तो साधारण सी बात थी जो उसके दिमाग में नहीं आई थी.

जलाल बोला, " अफताब भाई इसकी को कोमन सेन्स कहते हैं."

अफताब कोमन सेन्स को जानकार बहुत ही खुश हुआ. कहने लगा, "मेरे भाई अब बताओ, प्रेजेंस ऑफ़ माईंड क्या होती है ?"

जलाल ने कहा, " यह भी बताता हूँ, फीस जो ली है मैने। अच्छा जरा इधर आओ, और गाडी के बोनेट पर अपनी हथेली रखो."

आफताब ने पुरानी टोयोटा टेक्सी के बोनेट पर अपनी हथेली रखी. जलाल ने जोर से मुक्का मारने की हरक़त शुरू की थी, कि अफताब ने अपनी हथेली बोनेट के ऊपर से हटा ली.

जलाल बोला, "देखा तुम ने, कहीं चोट ना लग जाये, इसलिए तुम्हारे जेहन ने तुरंत एक्शन ले लिए, हथेली को हटवा दिया, तुम चोट से बच गए, यही प्रेजेंस ऑफ़ माईंड है."

इतने में पुलिस की गाड़ी का सायरन बजा, जलाल भाग लिया. अफताब बस सड़क पर खड़ा रह गया. पुलिस ने जब अफताब को पूछा क्या हुआ ? यहाँ क्यों आया ? उसने बताया वह किस मकसद से आया था और कैसे एक पाकिस्तानी ने उसे इल्म दिया और सामान लेकर चम्पत हो गया. पुलिस ने एअरपोर्ट पर लाकर उसके भारत वापस लौटने की व्यवस्था कर दी. क्योंकि अमेरिका में ऐसे तत्वों का बने रहना वहां के अमन के लिए खतरा साबित हो सकता था.
खैर साहिबान आफताब मियाँ लौट आते हैं अपने मादरे वतन हिंदुस्तान। अब उनके चमचों ने पूछा कि सफ़र कैसा रहा. नवाबजादे बोले, "अमां क्या बात है, कितने फास्ट है अमरीकी और उनसे भी फास्ट हैं हमारे पाकी भाई, बस चंद घड़ियों में सीखा दिया मुझको, कोमन सेन्स और प्रेजेंस ऑफ़ माईंड. चमचों ने कहा मियाँ एक कॉन्फरेंस की जाय, मीडिया वालों को बुलाया जाय और उनसे शेयर किया जाय आपके सफरे इल्म की दास्ताँ आप ही की जुबानी. आप के प्रेक्टिकल तुज़ुर्बे को मीडिया के ज़रिये लोगों तक पहुँचाया जाय ताकि सब को कोमन सेन्स और प्रेजेंस ऑफ़ माईंड आ जाये.

मैं चूँकि कई एक विदेशी रिसाले को बतौर फ्री लांस जर्नलिस्ट रीप्रेजेंट करता हूँ, मुझे भी इस कांफ्रेंस का बुलावा मिला. एक पॉँच सितारा होटल में थी यह प्रेस मीट. स्कोच और मुर्गे शान से सर्व हो रहे थे. कांफ्रेंस में अफताब साहब ने डाइस पर के माइक में अपनी आवाज फूंकी, लगे थे कहने, "मेरी खुशकिस्मती है कि मैं हाल फ़िलहाल अमेरिका से कोमन सेन्स और प्रेजेंस ऑफ़ माईंड का इल्म लेकर लौटा हूँ. आप से शेयर करना चाहता हूँ ताकि मेरे करोड़ों हम-मुल्क लोग इससे फायदा उठा सके."

बिजनेस रिव्यू के सतीश रैना ने पूछा, " अफताब साहब यह कोमन सेन्स क्या होता है ?"
अफताब साहब ने कहा, "जनाब मेरे खानदान में पांच मेम्बरान है. मेरी बीवी, तीन बच्चे और मालूम है कोमन सेन्स बता सकता है पांचवा कौन ?"

रैना ने पूछा, "कौन"

अफताब बोला, " अजी पांचवा है जलाल पाकिस्तानी टेक्सीवाला।"

इकोनोमिक ट्रिब्यून के सोहराब मिस्त्री ने अगला सवाल किया, "भाई बताएं, ये प्रेजेंस ऑफ़ माईंड क्या है."

अफताब ने 'दैनिक शयन' के हरि किशन धींगरा को बुलाया और कहा अब मैं इसका लाइव डेमो देता हूँ.

"मिस्त्री साहेब आप अपनी हथेली मेरे चेहरे पर रखिये और धींगरा साहेब जरा जोर से मुक्का मारिये इस पर. खुद ब खुद प्रेजेंस ऑफ़ माईंड आपके सामने आ जाएगी." फ़रमाया अफताब साहब ने.

मिस्त्री और धींगरा मुफ्त की दारू पीकर धुत थे. उन्होंने वही किया जो कहा गया था. और अफताब दर्द से बिलबिला रहा था, और माँ बहन कर रहा था.

ये सब मेरे बेड टेस्ट में जा रहा था.

मैं खिसक लिया था क्योंकि मैं मेरे अज़ीज़ मुल्ला नसरुदीन को पूरा वाकया सुनांने को बेताब हो रहा था.



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