मुल्ला नसरुद्दीन उस ज़माने में कुंवारा था ...अरे नहीं... शादीशुदा नहीं था, उसको ना जाने क्या सूझी, एक तोती पाल ली. तोती को उसने फ़िल्मी गाने और ग़ज़लें सीखा दी थी. तोती बहुत ही मीठी आवाज़ में गाती थी, मसलन "जादूगर सैयां छोड़ो मोरी बहियाँ", "प्यार हुआ इकरार हुआ ", "लट उलझी सुलझा जा रे बालम" वगैरह. तोती ने मुल्ला के अकेलेपन को आबाद कर दिया था. मुल्ला तोती के इस इश्किया अन्दाज़ से बहुत इतराए रहता था. जब भी मेरे पास आता कहता, "अमां मासटर, तू भी कोई तोती या तोता पाल ले, दिनरात अकेला रहता है..दिल बहल जायेगा."
पहले तो मुझे लगा था, आफत है यह सब.... मगर मेरे एक साथी, प्रोफेसर पंडित एल। एन. वाजपेयी (लोटन नाथ वाजपेयी), जो सरयू पारीय ब्राहमण और संस्कृत के एच.ओ. ड़ी थे, एक दिन मय पिंजरे एक तोता ले आये मेरे यहाँ, लगे कहने, "श्रीमान विनेश जी, मैं साल भर के लिए डेपुटेसन पर बेंकोक विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने जा रहा हूँ, यह मेरा तोता 'मीठू' अत्यंत ही संस्कारवान है, गीता के श्लोक और मानस कि चौपाईयां बोलने में दक्ष है." वाजपेयी जी जो कुछ भी करते थे, ऐसा दिखा देते थे कि दूसरों कि भलाई के लिए कर रहे हैं और नाना प्रकार की संस्कृत उक्तियों से उसे समर्थित भी किया करते थे, संस्कृत के विद्वान जो ठहरे...उस पर कुलीन ब्राहमण...करेला और नीम चढ़ा. आगे उवाच हुआ उनका, " भाई हमने तो पढ़ा है -अष्ठादश पुरानेसु व्यासस्य वचनयम द्वयं, परोपकार पुन्याय, पापाय परपीड़नाम--इसी परोपकार कि भावना से वशीभूत होकर हम यह पंडित मीठू आपको देना चाहते हैं...आपकी विचार शुद्धि हेतु...यद्यपि लल्ला की माताजी अर्थात हमारी पंडितायन ने कहा था कि विनेशजी अभारतीय संस्कारों वाले हैं, विधर्मियों में उनकी उठ बैठ है...अपने मीठू को मत छोड़ो वहां, इसका चालचलन बिगाड़ जायेगा. किन्तु हमें आप और आपके चरित्र पर पूर्ण विश्वास है. सूर्यवंशी क्षत्रिय है आप ...मीठू आपको संस्कारित करके अपना ब्राहमण धर्म निभा सकेगा." खड़े चमच वाली चाय का गिलास सुडक कर और मेरे सिर पर एहसान का बोझा डाल कर पंडितजी तोते को पिंजरे सहित मेरे यहाँ छोड़ गए थे पंडितजी.
कोई हफ्ता भर बाद देखता हूँ कि उर्दू के प्रोफेसर जनाब शौकत अली "मजबूर" चले आ रहे हैं....उनके दोनों हाथ आगे हैं और कुछ पकड़ा हुआ है, जिसमें जुम्बिश हो रही है. करीब आया तो पाया कि जनाब "मजबूर" साहब अपने हाथों में एक तोता लिए है. फरमाने लगे शौकत मियाँ, " विनेश मियाँ हम जा रहे हैं ढाका कोई बारह महीनों के लिए, वहां उर्दू पढ़ाएंगे......बेगम बोली है- विनेश मियाँ अपनों जैसे है...मीठू मियाँ को उनके पास छोड़ दीजिये...आप तो जानते ही हैं कि हम उनकी किसी बात से इनकार नहीं कर सकते. सोचा चलो खुद ही पहूंचा आते हैं मीठू मियाँ को आपके दौलतखाने पर." हलुवे का नाश्ता दबा कर ठूंसते हुए मजबूर मियां मिमिया रहे थे, " बहुत ही नेक तोता है मियाँ, कुरआन शरीफ की आयतें बोलता है...नमाज़ी है." मैने कहा, "सो तो है, मगर पिंजरा ?" लगे कहने, "बेगम ने कहा था आते वक़्त बाज़ार से थोड़ा ग़ोश्त लेते आना कीमे के कोफ्ते बनाउंगी, मैने सोचा आपके यहाँ तो एक पिंजरा है ही, मैने कल्लू कबाड़ी को पकड़ा दिया और पैसे ले लिए जो भी दिए उसने...."
खैर मैं ठहरा बहुत ही उदार विचारों वाला पढ़ा लिखा जन्तु, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे या और इस से भी अच्छे आपसी रिश्तों का हिमायती। मैने कहा, "कोई बात नहीं, हम सब इस मुल्क में जैसे हिन्दू-मुसलमान साथ रहते हैं, वैसे ही पंडित मीठू और मीठू मियाँ संग संग एक ही पिंजरे में बसर कर लेंगे." दरअसल..... मैं दोनों तोतों को एक ही पिंजरे में रख कर एक मिसाल कायम करना चाहता था, जैसे कि हर बुद्धिजीवी का अरमान होता है और आधे अधूरे प्रयास भी करता है. तो जनाब प्रोफेस्सर शौकत तोते को छोड़ कर चले गए...
मैने पंडित मीठू को समझाया, भई हमारी हिन्दू संस्कृति बहुत महान है, हमारी सहिष्णुता और उदारता विश्व में अद्वितीय है, गैरों को गले लगाना हमारी खासियत है॥आज से मीठू मियाँ आपके साथ आप ही के पिंजरे में रहेंगे। स्वभाव के अनुसार मीठू पंडित मान गए और मीठू मियाँ ने भी सोचा सब सुविधाओं से लदा है पिंजरा.... धर्म निरपेक्षता का वातावरण भी है..... लुत्फ़ ही रहेगा. बुद्धिजीवी मासटर है ऊपर से खैरख्वाह, जो हर वक़्त माइनोरिटी की ही हिमायत करेगा. खैर, दोनों ही तोते सुकून से एक ही पिंजरे में रहने लगे, जैसे इमरजेंसी के समय कट्टर हिंदूवादी और कट्टर मुस्लिमपंथी नेता एक ही जेल में बड़े प्रेम से रहा करते थे. मीठू पंडित कभी "हर हर महादेव" बोलता, कभी "राम राम", कभी "हरि ॐ तत्सत" और मीठू मियां भी "अल्लाह-ओ-अकब्बर" "या अल्लाह इलिल्लाह, मुहम्मद उर्सिल्लाह" का कलमा पढ़ते. दोनों ही तोते निहायत धार्मिक, अपने अपने जप-तप में लगे रहते..खाना पीना दोनों को अपने मूल मालिकों से अच्छा मिलता ही था. इस तरहा दोनों की बल्ले बल्ले थी.
आप तो जानते ही हैं कि मुल्ला कभी भी कोई परमानेंट काम नहीं करता था । उन दिनों मुल्ला बेरोज़गारी के रोज़गार में था. नौकरी के इश्तेहार देख कर अर्जियां डालते रहता था. एक दिन किसी मल्टी नेशनल कंपनी से इंटरव्यू का पैगाम आ गया. रेल से यात्रा थी, भाडाखर्चा कंपनी से मिलना था, मुल्ला ने उसके साथ जोड़ते हुए, आसपास में रहने वाले रिश्तेदारों का मुआयना करने का भी प्रोग्राम बना लिया था. कुल मिलाकर मुल्ला को कोई एक हफ्ता बाहिर गाँव रहना था. बाकी तो सब ठीक था, बस मुश्किल थी तो एक कि मुल्ला की गैरहाजरी में उसकी तोती कहाँ रहेगी ? आप सब जानते ही हैं, मैं तो मुल्ला के हर मर्ज़ कि दवा हूँ, मुल्ला ले आये तोती को...और लगे कहने, "मास्टर सोचता हूँ तोती को तेरे पास छोड़ जाऊँ...तेरा भी मन लगा रहेगा और तेरे दोनों तोतों का भी... उसके बाद मुल्ला ने मेरे कान में कहा, "हाँ बहुत दिन से तोती हेलेन पर फिल्माए गानों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही है, सोचता हूँ दोनों तोतों की सोहबत में कुछ संभल जाएगी....समझे ना मासटर." मैं समझूं उससे पहले ही मुल्ला तोती को पिंजरे में घुसा चुका था.
पिंजरे में दो मर्द तोते और एक औरत तोती आबाद थे। तोती को इम्प्रेस करने के चक्कर में मीठू पंडित और मीठू मियाँ कुछ ज्यादा ही शरीफ बने जा रहे थे...पंडित 'राम राम' जप रहा था, और मियां अल्लाह ताला को याद किये जा रहा था. तोती को अपना इन्सल्ट महसूस हुआ. मेनका बन कर तोती अपनी अदाएं दिखाने लगी.....बड़े गहरे गहरे प्रेम गीत गाने लगी.....मसलन 'पीया तू अब तो आजा', 'रात नशीली है बुझ गए दिए' जैसे. तोते आखिर तोते ही.....मीठू पंडित कहने लगा, "मेरी भक्ति से प्रसन्न हो कर प्रभु ने मेरे जीवन साथी के रूप में तोती को भेजा है. तोती मेरी है, मेरा उस पर पहला अधिकार है." मीठू मियाँ लगे कहने, " शर्म करो पंडित, तुम्हारे यहाँ ऐसा कोई इंतज़ाम नहीं है कि जप तप के बाद हूर मिले...अरे तुम्हारे ऋषि मुनि तो जन्म जन्म में साधु बने रहते हैं....बल्कि तुम्हारे यहाँ तो साधु सन्यासियों का तप भंग करने ऐसी अप्सराएँ आती रही है...और तुम लोगों को अपने पर काबू रखते हुए उन से दूर रहने की हिदायत दी जाती है." मियाँ आगे कह रहा था, " दरअसल खुदा ने मेरी दुआ कुबूल फरमाई है, मेरे जैसे नमाज़ी से खुश होकर उसने तोती को मेरे लिए भेजा है." अब पंडित तोता कहता है तोती मेरी है, प्रभु का दिया वरदान है और मियाँ तोता कहता है कि तोती खुदा का उसके लिए भेजा तोहफा है. दोनों ही अपना अपना धर्म ईमान भूल कर लड़ने लगे.....साम्प्रदायिक दंगा सा हो गया पिंजरे में.....तोती को भी अपनी इज्ज़त कि पर्वाह होने लगी, रोमांस अलग बात है, 'प्रक्टिकल' कुछ और, पंडित और मियाँ दोनों की नज़रों में उसे कुत्सित भावनाएं दिखाई दे रही थी.
दोनों तोते एक दूसरे पर टूट पड़े और तोती के लिए लड़ने लगे, लहुलुहान कर दिया था एक दूजे को. निहायत ही जाती मसला मज़हबी जूनून बन गया था...पिंजरे में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया था.....बात तोती की थी, अपनी खुदगर्जी की थी, और दोनों ही तोते ईश्वर और अल्लाह की दुहाई देते हुए , एक दूजे पर वार कर रहे थे. दोनों ही इतने हिंसक हो गए थे कि लड़ते लड़ते मर गए. तोतों का तो यह हस्र हुआ, मगर तोती ने कहा,"देखो, ईश्वर और अल्लाह ने कुछ ऐसा किया कि पाखंडी मर गए.".तोती ने सर्वशक्तिमान ईश्वर का .....पाक परवरदिगार खुदा का शुक्रिया अदा किया क्योंकि तोती की इज्ज़त जो बच गयी थी. तोती ने यह भी तय किया था कि अब वह फ़िल्मी नगमे नहीं गाएगी, भजन और सूफी गाने गाएगी. मैने दोनों फोत हुए तोतों का विधिवत अंतिम संस्कार किया. अनूप जलोटा-अनुराधा पोडवाल के भजन और नुसरत फ़तेह अली खान साब- आबिदा परवीन बेगम के सूफी नगमे/कव्वालियाँ, मैं तोती को सुनाने लगा था ताकि उसमें 'बेसिक' 'चेंज' आये. मुझे डर था कि तोती अगर मुल्ला के सिखाये नगमे गाती रही तो मैं बिगड़ जाऊंगा......इंसान ही तो हूँ....गुनाहों और गलतियों को पुतला.
पहले तो मुझे लगा था, आफत है यह सब.... मगर मेरे एक साथी, प्रोफेसर पंडित एल। एन. वाजपेयी (लोटन नाथ वाजपेयी), जो सरयू पारीय ब्राहमण और संस्कृत के एच.ओ. ड़ी थे, एक दिन मय पिंजरे एक तोता ले आये मेरे यहाँ, लगे कहने, "श्रीमान विनेश जी, मैं साल भर के लिए डेपुटेसन पर बेंकोक विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने जा रहा हूँ, यह मेरा तोता 'मीठू' अत्यंत ही संस्कारवान है, गीता के श्लोक और मानस कि चौपाईयां बोलने में दक्ष है." वाजपेयी जी जो कुछ भी करते थे, ऐसा दिखा देते थे कि दूसरों कि भलाई के लिए कर रहे हैं और नाना प्रकार की संस्कृत उक्तियों से उसे समर्थित भी किया करते थे, संस्कृत के विद्वान जो ठहरे...उस पर कुलीन ब्राहमण...करेला और नीम चढ़ा. आगे उवाच हुआ उनका, " भाई हमने तो पढ़ा है -अष्ठादश पुरानेसु व्यासस्य वचनयम द्वयं, परोपकार पुन्याय, पापाय परपीड़नाम--इसी परोपकार कि भावना से वशीभूत होकर हम यह पंडित मीठू आपको देना चाहते हैं...आपकी विचार शुद्धि हेतु...यद्यपि लल्ला की माताजी अर्थात हमारी पंडितायन ने कहा था कि विनेशजी अभारतीय संस्कारों वाले हैं, विधर्मियों में उनकी उठ बैठ है...अपने मीठू को मत छोड़ो वहां, इसका चालचलन बिगाड़ जायेगा. किन्तु हमें आप और आपके चरित्र पर पूर्ण विश्वास है. सूर्यवंशी क्षत्रिय है आप ...मीठू आपको संस्कारित करके अपना ब्राहमण धर्म निभा सकेगा." खड़े चमच वाली चाय का गिलास सुडक कर और मेरे सिर पर एहसान का बोझा डाल कर पंडितजी तोते को पिंजरे सहित मेरे यहाँ छोड़ गए थे पंडितजी.
कोई हफ्ता भर बाद देखता हूँ कि उर्दू के प्रोफेसर जनाब शौकत अली "मजबूर" चले आ रहे हैं....उनके दोनों हाथ आगे हैं और कुछ पकड़ा हुआ है, जिसमें जुम्बिश हो रही है. करीब आया तो पाया कि जनाब "मजबूर" साहब अपने हाथों में एक तोता लिए है. फरमाने लगे शौकत मियाँ, " विनेश मियाँ हम जा रहे हैं ढाका कोई बारह महीनों के लिए, वहां उर्दू पढ़ाएंगे......बेगम बोली है- विनेश मियाँ अपनों जैसे है...मीठू मियाँ को उनके पास छोड़ दीजिये...आप तो जानते ही हैं कि हम उनकी किसी बात से इनकार नहीं कर सकते. सोचा चलो खुद ही पहूंचा आते हैं मीठू मियाँ को आपके दौलतखाने पर." हलुवे का नाश्ता दबा कर ठूंसते हुए मजबूर मियां मिमिया रहे थे, " बहुत ही नेक तोता है मियाँ, कुरआन शरीफ की आयतें बोलता है...नमाज़ी है." मैने कहा, "सो तो है, मगर पिंजरा ?" लगे कहने, "बेगम ने कहा था आते वक़्त बाज़ार से थोड़ा ग़ोश्त लेते आना कीमे के कोफ्ते बनाउंगी, मैने सोचा आपके यहाँ तो एक पिंजरा है ही, मैने कल्लू कबाड़ी को पकड़ा दिया और पैसे ले लिए जो भी दिए उसने...."
खैर मैं ठहरा बहुत ही उदार विचारों वाला पढ़ा लिखा जन्तु, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे या और इस से भी अच्छे आपसी रिश्तों का हिमायती। मैने कहा, "कोई बात नहीं, हम सब इस मुल्क में जैसे हिन्दू-मुसलमान साथ रहते हैं, वैसे ही पंडित मीठू और मीठू मियाँ संग संग एक ही पिंजरे में बसर कर लेंगे." दरअसल..... मैं दोनों तोतों को एक ही पिंजरे में रख कर एक मिसाल कायम करना चाहता था, जैसे कि हर बुद्धिजीवी का अरमान होता है और आधे अधूरे प्रयास भी करता है. तो जनाब प्रोफेस्सर शौकत तोते को छोड़ कर चले गए...
मैने पंडित मीठू को समझाया, भई हमारी हिन्दू संस्कृति बहुत महान है, हमारी सहिष्णुता और उदारता विश्व में अद्वितीय है, गैरों को गले लगाना हमारी खासियत है॥आज से मीठू मियाँ आपके साथ आप ही के पिंजरे में रहेंगे। स्वभाव के अनुसार मीठू पंडित मान गए और मीठू मियाँ ने भी सोचा सब सुविधाओं से लदा है पिंजरा.... धर्म निरपेक्षता का वातावरण भी है..... लुत्फ़ ही रहेगा. बुद्धिजीवी मासटर है ऊपर से खैरख्वाह, जो हर वक़्त माइनोरिटी की ही हिमायत करेगा. खैर, दोनों ही तोते सुकून से एक ही पिंजरे में रहने लगे, जैसे इमरजेंसी के समय कट्टर हिंदूवादी और कट्टर मुस्लिमपंथी नेता एक ही जेल में बड़े प्रेम से रहा करते थे. मीठू पंडित कभी "हर हर महादेव" बोलता, कभी "राम राम", कभी "हरि ॐ तत्सत" और मीठू मियां भी "अल्लाह-ओ-अकब्बर" "या अल्लाह इलिल्लाह, मुहम्मद उर्सिल्लाह" का कलमा पढ़ते. दोनों ही तोते निहायत धार्मिक, अपने अपने जप-तप में लगे रहते..खाना पीना दोनों को अपने मूल मालिकों से अच्छा मिलता ही था. इस तरहा दोनों की बल्ले बल्ले थी.
आप तो जानते ही हैं कि मुल्ला कभी भी कोई परमानेंट काम नहीं करता था । उन दिनों मुल्ला बेरोज़गारी के रोज़गार में था. नौकरी के इश्तेहार देख कर अर्जियां डालते रहता था. एक दिन किसी मल्टी नेशनल कंपनी से इंटरव्यू का पैगाम आ गया. रेल से यात्रा थी, भाडाखर्चा कंपनी से मिलना था, मुल्ला ने उसके साथ जोड़ते हुए, आसपास में रहने वाले रिश्तेदारों का मुआयना करने का भी प्रोग्राम बना लिया था. कुल मिलाकर मुल्ला को कोई एक हफ्ता बाहिर गाँव रहना था. बाकी तो सब ठीक था, बस मुश्किल थी तो एक कि मुल्ला की गैरहाजरी में उसकी तोती कहाँ रहेगी ? आप सब जानते ही हैं, मैं तो मुल्ला के हर मर्ज़ कि दवा हूँ, मुल्ला ले आये तोती को...और लगे कहने, "मास्टर सोचता हूँ तोती को तेरे पास छोड़ जाऊँ...तेरा भी मन लगा रहेगा और तेरे दोनों तोतों का भी... उसके बाद मुल्ला ने मेरे कान में कहा, "हाँ बहुत दिन से तोती हेलेन पर फिल्माए गानों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही है, सोचता हूँ दोनों तोतों की सोहबत में कुछ संभल जाएगी....समझे ना मासटर." मैं समझूं उससे पहले ही मुल्ला तोती को पिंजरे में घुसा चुका था.
पिंजरे में दो मर्द तोते और एक औरत तोती आबाद थे। तोती को इम्प्रेस करने के चक्कर में मीठू पंडित और मीठू मियाँ कुछ ज्यादा ही शरीफ बने जा रहे थे...पंडित 'राम राम' जप रहा था, और मियां अल्लाह ताला को याद किये जा रहा था. तोती को अपना इन्सल्ट महसूस हुआ. मेनका बन कर तोती अपनी अदाएं दिखाने लगी.....बड़े गहरे गहरे प्रेम गीत गाने लगी.....मसलन 'पीया तू अब तो आजा', 'रात नशीली है बुझ गए दिए' जैसे. तोते आखिर तोते ही.....मीठू पंडित कहने लगा, "मेरी भक्ति से प्रसन्न हो कर प्रभु ने मेरे जीवन साथी के रूप में तोती को भेजा है. तोती मेरी है, मेरा उस पर पहला अधिकार है." मीठू मियाँ लगे कहने, " शर्म करो पंडित, तुम्हारे यहाँ ऐसा कोई इंतज़ाम नहीं है कि जप तप के बाद हूर मिले...अरे तुम्हारे ऋषि मुनि तो जन्म जन्म में साधु बने रहते हैं....बल्कि तुम्हारे यहाँ तो साधु सन्यासियों का तप भंग करने ऐसी अप्सराएँ आती रही है...और तुम लोगों को अपने पर काबू रखते हुए उन से दूर रहने की हिदायत दी जाती है." मियाँ आगे कह रहा था, " दरअसल खुदा ने मेरी दुआ कुबूल फरमाई है, मेरे जैसे नमाज़ी से खुश होकर उसने तोती को मेरे लिए भेजा है." अब पंडित तोता कहता है तोती मेरी है, प्रभु का दिया वरदान है और मियाँ तोता कहता है कि तोती खुदा का उसके लिए भेजा तोहफा है. दोनों ही अपना अपना धर्म ईमान भूल कर लड़ने लगे.....साम्प्रदायिक दंगा सा हो गया पिंजरे में.....तोती को भी अपनी इज्ज़त कि पर्वाह होने लगी, रोमांस अलग बात है, 'प्रक्टिकल' कुछ और, पंडित और मियाँ दोनों की नज़रों में उसे कुत्सित भावनाएं दिखाई दे रही थी.
दोनों तोते एक दूसरे पर टूट पड़े और तोती के लिए लड़ने लगे, लहुलुहान कर दिया था एक दूजे को. निहायत ही जाती मसला मज़हबी जूनून बन गया था...पिंजरे में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया था.....बात तोती की थी, अपनी खुदगर्जी की थी, और दोनों ही तोते ईश्वर और अल्लाह की दुहाई देते हुए , एक दूजे पर वार कर रहे थे. दोनों ही इतने हिंसक हो गए थे कि लड़ते लड़ते मर गए. तोतों का तो यह हस्र हुआ, मगर तोती ने कहा,"देखो, ईश्वर और अल्लाह ने कुछ ऐसा किया कि पाखंडी मर गए.".तोती ने सर्वशक्तिमान ईश्वर का .....पाक परवरदिगार खुदा का शुक्रिया अदा किया क्योंकि तोती की इज्ज़त जो बच गयी थी. तोती ने यह भी तय किया था कि अब वह फ़िल्मी नगमे नहीं गाएगी, भजन और सूफी गाने गाएगी. मैने दोनों फोत हुए तोतों का विधिवत अंतिम संस्कार किया. अनूप जलोटा-अनुराधा पोडवाल के भजन और नुसरत फ़तेह अली खान साब- आबिदा परवीन बेगम के सूफी नगमे/कव्वालियाँ, मैं तोती को सुनाने लगा था ताकि उसमें 'बेसिक' 'चेंज' आये. मुझे डर था कि तोती अगर मुल्ला के सिखाये नगमे गाती रही तो मैं बिगड़ जाऊंगा......इंसान ही तो हूँ....गुनाहों और गलतियों को पुतला.
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