फूल...(दीवानी)
अमेरिका में साया होने वाली एक उर्दू/हिंदी मैगज़ीन में उसका यह कलाम पब्लिश हुआ है, उसकी सहेली ने मुझे भेजा है. आप से शेयर करना लाज़मी है क्योंकि आप सब मेरे हमराज़ और हमदर्द हैं.
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"फूल तुम
क्यों
मुस्कुराते हो
हर सुबह
जीने का
लाते हो
उत्साह !
फूल तुम
क्यों
मुरझा जाते हो
संध्या
समय
निढाल
होने को.
क्या तुम भी
औरत की तरह
दिन भर की
थकन से
हो जाते हो
निढाल.
क्या सच !
तुम वही औरत
तो नहीं
जिसे
हर सुबह
मुस्कुराना पड़ता है
बरबस."
तुलना मूल्यांकन एवम विश्लेषण (विनेश)
प्रत्युत्तर जो मेरे चिंतन में है, कुछ इस प्रकार है:
# # #
प्रिये !
होगा तुम्हारी स्मृति में
आज भी विद्यमान
वह उद्यान का
घटना क्रम
जब फूलों के
सौंदर्य एवम सौरभ से
आनंदित हो
अनायास
तुम पूछ बैठी थी
"कहाँ है
इस फूल की
सुगंध?"
विश्लेषण के
उस प्रयास में
छिन्न भिन्न
कर डाला था
हम ने
उस पुष्प को
तोड़ते हुए
एक एक पंखुड़ी को,
सब बिखर गया था
तब भी बिखरी थी
महक
लेकिन
पा नहीं सके थे
पृथक से
उस
भीनी भीनी
लुभावनी
मनभावन
सुवास को
जो नासिकाओं के मार्ग
समा रही थी
हम में
और थी
प्रसारित
संपूर्ण उद्यान में,
क्या हुआ जो
नयन तुम्हारे
और मेरे
ना देख
पा रहे थे
प्रकृति के उस
सुन्दरतम
रहस्य को.
आज पुनः
तुम कर रही हो
तुलना
अपने जीवन की
उसी पुष्प से
जिसकी
सुगंध
और
उसके स्रोत को
लाख विश्लेषण के
पश्चात भी
नहीं पा सके थे
हम;
या तो
हम कर सकते हैं
विश्लेषण
एवम
तुलनात्मक मूल्यांकन
अथवा
जी सकते हैं
सम्पूर्ण समग्र जीवन,
जो परे है
समस्त
तुलनाओं से
समस्त
मूल्यांकनों से
समत
विश्लेषणों से......
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