Friday, June 18, 2010

भंगित हृदयों के स्पंदन

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भंगित हृदयों के
स्पंदनों पर
लगते
नहीं
विराम कभी,
नहीं होता
उनसे
प्रवाह
रक्त का
प्रत्युत
अनियंत्रित हो
बहतें हैं
अविरल अश्रु,
विचरण
करती है
प्रियों की स्मृतियाँ
गूंजती है
उनकी प्रतिध्वनियाँ
भितिकाओं के मध्य,
सुन सकता
नहीं
कोई भी
उनके रुदन को
जो रहता है
मौन
रहस्यपूर्ण नयनो के
पार्श्व में.......

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