Monday, June 7, 2010

एक ख्वाब (Deewani Series)

एक दिन उसने मुझे अपने इस ख्वाब के बारे में बताया था:

बात दीवानी के एक ख्वाब की॥

# # #
"पढ़ते पढ़ते
अलसाई स़ी
आँखों में
अचानक
आ गई थी
नींद....
तब मैं
समंदर की
सतह से
ला रही थी
सीपें
बिन कर !
ढूंढ
रही थी
उनमें
मोतियों को.

आँख खुली
तब जाना
वह
मैं नहीं,
मेरी
परछाईं थी
जो
झांक रही थी
जलधि की
गहरायी में
और
पहुँच रही थी
सागर की
सतह तक
समंदर की
तह तक........"

उपहार जीवन की मणि मुक्ताओं का...(विनेश)

(मैं बना था नया नया 'लेक्चरार', रोमांटिक होने की जगह दे डाला था एक भाषण 'स्वपन विज्ञानं' के 'basics' पर :)


# # #
स्वप्न है
हमारी अपनी
रचनाएँ
जिनके
निर्माण की
पृष्ठभूमि में
होती है
हमारी निजता.....

यह हैं प्रतीक
हमारी
सृजनात्मक
शक्ति का
जो रहती है
सुसुप्त
प्रत्येक
व्यक्ति में......

स्वप्न ही
सत्य है
एक मात्र
जीवन का
क्योंकि
वही स्थिति है
मात्र
जिसमें हम होतें हैं
कर्ता
और
दृष्टा दोनों
देख पाते हैं
स्वयं को
नाना उपक्रमों
नाना सोचों
नाना प्रस्तुतियों
नाना प्रवर्तियों में
लीन..
बिना किसी
लाग-लपेट के....

स्वप्न है
नयनों में बसा
एक संसार
जिसे हम
रचतें हैं
स्वयं ही
और
बिताते हैं
कुछ पल
साथ स्वयं के
यह पल जो
चुरातें हैं हम
जीवन के
अनन्त पलों से
और
जी लेते हैं
एक और जीवन.........

प्रिये !
गहरा जल था
द्योतक
तुम्हारे
अवचेतन की
अनजानी
गहराईयों का
और
गोता लगाना
तुम्हारा
था प्रतीक
झांकने का
अपने
अंतर्मन में;
सीपों में
मोतियों की
तलाश
थी तुम्हारी
स्वयं द्वारा
खोज स्वयं की
बस नहीं देखा था
तुमने
न जाने क्यों
मणियों को,
मोतियों को
सतह पर
बिखरे रत्नों को.....

शायद कुछ
सुन्दर विचार
आनेवाले हैं
तुम्हारे
मस्तिष्क में....
सतत रहे
यह शोध
स्वयं की
संभव है
पहुँच सको
गंतव्य को,
एवम हो जाये
प्राप्य
उपहार
जीवन की
मणि मुक्ताओं का.....


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