Saturday, June 5, 2010

सुरक्षा या साथ... (Deewani Series)


लोजिक विषय में आते हैं :deductive and inductive logic. Deductive में 'general' to 'particular' होता है और inductive में 'particular' to 'general' apply करते हैं. .एक दफा एक तर्क शास्त्री कुछ ज्यादा ही तार्किक थे, inference draw कर बैठे , मुल्ला नसरुद्दीन के भी दाढ़ी है और बकरे के भी दाढ़ी है इसलिए हर बकरा मुल्ला नसरुद्दीन है.इन्हें तर्क शास्त्री कहें, पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति कहें, नादान कहें, अनजान कहें या.....

मगर ऐसा होता है जाने या अनजाने मुझ से भी.... मेरी हम दम दीवानी से भी.

वह भी एक फेज था।

सुरक्षा... (दीवानी की कविता)

# # #
गुलमोहर का
फलों से
लदा वृक्ष
पत्ती
एक नहीं
केवल
टहनियां.

जाना
मैने
बिना
पत्तों के भी
फूल
सुरक्षित
रहतें हैं.

हाँ,
वे अपनी
सुरक्षा
करना
स्वयं
जानते हैं।

साथ... (विनेश की रचना)

ऊपर जो कुछ लोजिक या तर्क शस्त्र की बातें लिखी है वे आज आप से शेयर कर रहा हूँ, उसको कैसे कहता यह बातें। कहीं उसके मन को ठेस लग जाती...परन्तु सहयोग भी करना था ताकि एकांगी सोच को वह संतुलन दे सके....

समन्वय और संतुलन... (Vinesh)

प्रकृति की
हर बात में है
समन्वय
और
संतुलन...

गुलमोहर
जैसे होतें हैं
पेड़ कितने
जिनमें फूल
खिले रहतें है
बिना पत्तियों के भी,
रक्षा और सुरक्षा की
बात
बनायीं हुई है
समाज की
वर्षों से....
कांटे भी
देते है
सौन्दर्य फूलों को
साथ सुमनों को....

तुम्हारा इशारा
अगर
नर और नारी के
साथ से है,
मेरी मित्र !
आज के युग में

सुरक्षा की बातें
हो गई है बेमानी,
वह जमाना था
जब
मर्द के बाहु-बल से
होता था शिकार,
होती थी खेतियाँ,
हुआ आविष्कार
जब से पहिये का
बाहु-बल की जगह
ले ली थी
यांत्रिक शक्ति ने
और
मर्द बेचारा हो गया था
एक फालतू स़ी वस्तु
इस सन्दर्भ में....

आज बातें करो
साथ की,
पूरक होने की
एक दूसरे के,
एक सम्पूर्ण सौंदर्य की,
जिसमें
पुरुष और प्रकृति
दोनों हो भागीदार.
अकेला रहना
कोई हल नहीं है
साथ रह सृजन
और
सौहार्द का
क्रम कायम रखना ही
सत्व है
नर-नारी
संबंधों का ;
ना नारी को
लाचारी में
निर्भर होना है
नर पर
और
ना ही नर को
एक बेजरूरत की
चीज बन कर
जीना है संसार में....

कोई किसी से
नहीं है कम
प्रकृति ने दी है
भिन्नता
यह अंतर ही तो
सुन्दरता है
सृष्टि की
एक खिली हुई
रौनक है
दृष्टि की
हमें आवश्यकता है
जोड़ने की
ना कि तोड़ने की
और
ना ही एक हिंसक
होड़ की
जिसके नतीजे
इन्सानियत को
तहज़ीब को...
अध्यात्म को
बना देंगे
कमज़ोर...


गुलमोहर है
बहुत ही सुन्दर
और
विलक्षण,
किन्तु
भरा है उद्यान
बहुतेरे
रंग बिरंगे
वृक्षों और पोधों से
जिन पर
पत्तियां भी है
फूल भी,
लताएँ
लिपटी है पेड़ों से
गुंज रहे हैं भंवरे
कलरव कर रहे हैं पखेरू
बस इस उत्सव को
प्रिये !
जरा देखलो
मन की
आँखों से,
कर लो
आत्मसात...

सुरक्षा चाहिए उसे
जिन्हें डर हो
यहाँ तो
गुंजरित है गीत,
भय-मिश्रित
चिल्लाहटें नहीं,
आनन्द है चहुँ ओर,
निर्मल आनन्द.....
निर्मल आनन्द.....

एक बात और...

पहिये के अविष्कार ने यांत्रिक शक्ति को जन्म दिया, बाहुबल की आवश्यकता पर प्रश्न चिन्ह लग गए.....कालांतर में पुरुष-प्रधान समाज ने क्या क्या षड्यंत्र अपने तथाकथित 'बर्चस्व' को कायम रखने के लिए किये, और प्रतिक्रिया-स्वरुप 'नारी-मुक्ति; आन्दोलन का उद्घोष हुआ.....जो घटनाक्रम के अनुसार एक नैसर्गिक घटना थी, लेकिन वह भी समस्या का हल नहीं था /है....नारी ने पुरुष की 'duplicate copy' बन कर अपनी मौलिकता से हाथ धोना शुरू कर दिया, और मानवता वंचित होने लगी उन सुकोमल भावनातमक 'इनपुट्स' से जो कि उसके खिलने के लिए अत्यावश्यक थे.....इत्यादि.... बहुत स़ी बातें हैं...बहुत से मसले है....बहुत से विचार-विमर्श है....सहमतियाँ और असहमतियां भी है...मगर हर रचना कि अपनी एक सीमा होती है...इसलिए फ़िलहाल इतना ही.

यहाँ जो कुछ लिखा है अर्ध-सत्य है...पूर्ण सत्य अभी तक अप्राप्य है.....कम से कम मुझ को तो....और उसकी शोध का एक पिपासु हूँ.




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