Sunday, February 14, 2010

प्रेम : एक विधि आत्म साधना की

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(देवी के संशय निर्मूल होने हैं, शिव को उत्तर देने हैं, हाँ उनके उत्तर दर्शन नहीं बस विधियाँ हैं केवल विधियाँ, जिनमें सभी संभावनाओं का समावेश है. ये प्राचीन भी हैं अर्वाचीन भी, शाश्वत हैं ये टेक्निक्स इसलिए प्राचीन हैं और सवेरे के सूर्य के सामने पड़ी ओस कि भांति ताज़ा भी है इसलिए नवीन. मेरा सौभाग्य है कि उनमें से कतिपय को आप से शेयर करते समय स्वयम भी जान सकूँगा. हमें इन विधियों का साक्षात्कार सावचेत मन से करना है, तर्क को कोई स्थान नहीं देकर, विवाद को प्रश्रय नहीं देकर. )
(१)
शिव ने कहा :
देवी !
प्रेम किये जाने के
क्षण में
प्रेम में
करो प्रवेश
ऐसा कि
वही नित्य जीवन हो.....
(२)
अतीत को छोडो
आगत की
चिंताओं से
स्वयम को
मत तोड़ो
नित्य जीवन है
वर्तमान जो है
साश्वत......
(३)
गहरे उतरो ना
प्रेम में
करने विसर्जित
अहंकार को
प्रेम है एक
सहज मार्ग
हो जाओ
तुम भी
प्रेम.....
(३)
जब होते हो
आलिंगन में
हो जाओ
आलिंगन
होते हो जब
चुम्बन में
हो जाओ
चुम्बन
भूल जाओ
स्वयम को
पूर्णतः
कह दो:
"अब मैं नहीं"
है तो केवल प्रेम
बस प्रेम.......
(४)
हो सकता है
घटित
एकत्व
प्रेम ही में केवल
हो जाओ तुम
कृत्य
भूल कर कर्ता को
जब हो तुम
प्रेम में
हो गए हो तुम
अंतर्धान
रह गए हो
बन कर
मात्र एक
ऊर्जा प्रवाहवान......
(५)
प्रेम है
महाद्वार
काम है बीज
प्रेम है पुष्प
बीज हो यदि
निन्दित
पुष्प भी होता है
पतिबन्धित
बन सकता है
बीज
एक पुष्प
बन सकता है
काम भी
प्रेम,
यदि नहीं
होता ऐसा
पंगु है वह,
निन्दित है
पंगुता
ना कि
काम,
खिलाना है
प्रेम को
बन सकेगा वही
सर्वोच्च
आध्यात्म.....

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