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कुदरत के
करिश्मों की
बातें
अकूत
फलक से
ललाट पर
बादलों की
भभूत.........
जोगी सागर ने
धूनी
रमायी थी
खुद को
जलाकर
बारिश
बनायीं थी.....
तरसी थी
धरती
बरसा था
गगन
बुझी थी
यूँ
विरहन की
अगन.......
(आशु प्रस्तुति)
कुदरत के
करिश्मों की
बातें
अकूत
फलक से
ललाट पर
बादलों की
भभूत.........
जोगी सागर ने
धूनी
रमायी थी
खुद को
जलाकर
बारिश
बनायीं थी.....
तरसी थी
धरती
बरसा था
गगन
बुझी थी
यूँ
विरहन की
अगन.......
(आशु प्रस्तुति)
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