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मत जला
फजूल में
तीलियाँ
माचिस की
यह आंधी
निगौड़ी
सखी
अँधेरे की
जलाने
नहीं देगी
दिया
एक नन्हा सा,
मिल जाये
इसको
महज़
एक शरारा
बदल देगी उसे
बस चन्द
लम्हात में
आग की
डरावनी
लपटों में,
हर शै
दहशतगर्दी की
शुमार है
फ़ित्रत में
इसके
होने नहीं देगी
बदजात :
अमन
सुकून और
तखलीक*.....
*तखलीक=सृजन
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