* * *
हुआ है
घटित
अरण्य के
प्रांगण में
महोत्सव...
कर रही है
नृत्य
चहुँ ओर
सुगंधमय
सुमधुर
पवन...
गा रहे हैं
पंछी
मधुर रागिनियाँ
प्रेम उमंग की.....
नाच रही है
सूरज की
सोनल किरणें....
पीपल पे
झूल रही है
ताम्रवर्ण
कोंपलें....
गुन्जार
कर रहे हैं
खिलती कलियों के
कानों में
तरसते
मतवाले
भंवरे....
भर रहे हैं
उड़ान
हरियल तोते
चोंचों में लिए
माणिक
अनार दानों के.....
चौकड़ियाँ
भर रहे हैं
चंचल
हरिन-हरिनियाँ
दबाये
मुंह में
हरी दूर्वा को.....
मांड रहा है
रंगीला चैत्र
वन-उपवन की
हथेलियों में
सुरंगी
मेहंदी.........
रुपहली रातों में
छेड़ें है
किसी ने
बांसुरी पर
गीत
प्रीत के.......
सुन सुन
बिलख रही है
धरा.......
आहें
भर रहा है
नील निरभ्र
गगन....
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