Sunday, March 1, 2009

जज्बा-ए-कबूलियत : मोल

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न जाने
किस धुन में
बेचे जा रहा हूँ
बिन-मोल
गीत
चहकते,
नगमे
महकते,
अफसाने
ख़ुशी के,
सपने
सलोने से…

मजबूरी में
खुश होने की
कम खर्च में,
खरीदे
जा रहे हैं
जिनको
पढनेवाले
बड़ी शिद्दत से,
ज़िन्दगी में
जिनके
ख्वाबों के सिवा
कोई सुकून
जो नहीं....

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