हे माँ !
तुम ज्योति रूपा हो
तेरा ध्यान धर
मैं स्वयं को
जागरूक बनाऊं
अंधी मान्यताओं से
मुक्त हो
स्वयं का तम दूर करूँ
मानवता को आलोकित करूँ
एवम चैतन्य बन जाऊँ…….
हे माँ !
तुम लक्ष्मी रूपा हो
धनधान्य का
स्वरुप हो
तेरा ध्यान धर
समृद्धि बढाऊँ
स्वयं की
मानवता की
कृषि, सेवाओं और वस्तुओं के
उत्पादन में ऋजुता से
योगदान करूँ
अपव्यय एवम
व्यर्थ-व्यय से
स्वयं को एवम
मानवता को बचाऊँ ……………
हे माँ !
तुम शक्ति हो
ध्यान तुम्हारा धर
स्वयं को
तन, मन एवम मस्तिष्क से
शक्तिमान बनाऊँ
असहाय का सहायक बनूँ
निर्बल का आलंब बनूँ
अपने बल को
सद्कार्यों में लगाऊँ ………
हे माँ !
तुम दया का रूप हो
करुनामयी हो
प्रेममयी हो
ध्यान तुम्हारा धर
ह्रदय में प्रेम,करुणा
एवम दया के सागर लहराऊँ
प्रेममय हो मैत्री की
अलख जगाऊँ ……………..
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