अभी कुछ देर पहिले एक मित्र से सामाजिक स्वीकृति पर विचारों का आदान प्रदान हो रहा था.....समाज का एक चित्र उभरा जेहन में.....पेश-ए-खिदमत है.
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स्वर्ण पिंजर में
मखमली आसन पर
सप्रेम विराजित
अंगूर और अनारदानों का
भोज करते हुए
मिठु को उसने सिखाया
"राम राम"..... "राधे श्याम ."
बाहर एक फटेहाल
सूरदास
भूख-प्यास से ग्रसित
ठण्ड में ठिठुरता
मर गया था
जपते जपते:
"राम राम"..... "राधेश्याम ."
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