Friday, January 22, 2010

आबशार....

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बागों में छाई
बसंत बहार
मस्ती की डोली
मौसम कहार
मनुआ भिगोये
प्रेम फुहार
तन है तपता
ऐ गुलरुखसार
मंज़र है रोशन
फैला अनवार
आज है अपना
रोज़-ए-शुमार
नहीं है कोई
चरोनाचार
बस तुम पर
मेरा मदार
रूह-ओ-जिस्म
तुन्दरफ़्तार
बुझा दे प्यास
मेरे आबशार !
बुझा दे प्यास
मेरे आबशार !

(गुलरुखसार=सुन्दर , अनवार= प्रकाश, रोज़-ए-शुमार=क़यामत का दिन,चारोनाचार=विवशतापूर्वक,मदार=निर्भरता,तुन्दरफ़्तार= वेगवान/rapid-fast, आबशार=झरना)

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