Tuesday, January 26, 2010

थी अपूरित मेरी आशा.........

# # #
हुई पूर्ण मेरी
साधना
थी अपूरित
मेरी आशा,
किये थे
योग ध्यान सारे
पढ़ी थी
शास्त्रों की
प्रचलित भाषा
थी अपूरित
मेरी आशा....

स्तोत्र सब
कंठस्थ थे
सूत्र
मानो
हृदयस्थ थे
ज्ञान ने
घेरा था
अहम् को
होती रही
हताशा,
थी अपूरित
मेरी आशा......

शब्द जाल
बुनता रहा
नित्य
पुष्प
चुनता रहा
पूजा अर्चना में
स्तुतियों को
कहता और
सुनता रहा
डगमगाते
कदम
कहते
मन नहीं
विकाशा,
थी अपूरित
मेरी आशा....

स्वयम में
झाँका नहीं
बाह्य में
उलझा रहा
असमंजस में
था सदैव
कहने को
सुलझा हुआ
आशा की
बातें करता था
घेरे थी मुझे
निराशा,
थी अपूरित
मेरी आशा....

प्रेम में
खोया नहीं
अपनी नींद
सोया नहीं
जागना
क्या जागना
करुणा से
रोया नहीं
पाखंड के संग
डग मिला
चलती रही
प्रत्याशा
थी अपूरित
मेरी आशा........

मोह भंग हुआ
जग से
तिमिर
छंट गया था
मग से
प्रेम के
प्रादुर्भाव ने
थी बदली हर
परिभाषा,
गिर गयी थी
मित्रों ! सारी
आशा और निराशा
थी अपूरित
मेरी आशा ....

(एक साधक से हुई वार्ता पर आधारित)

No comments:

Post a Comment