Tuesday, January 12, 2010

शुभा.:. दूसरी किश्त

नहीं मिलने से ऐसा लगता था दुनिया हमारी उलट गयी हो. मोबाइल फ़ोन उस ज़माने में नहीं होते थे, लैंड लाइन सरकारी फ़ोन होते थे, जो कस्बों में आधे से ज्यादा वक़्त निष्क्रिय रहते थे. फ़ोन का चौंगा बैठक में स्थापित होता था और एक परेलेल घर के मुखिया के कमरे में होता था. फ़ोन होने के कितने आयाम होते थे उपयोगिता के अलावा, जैसे सामाजिक प्रतिष्ठा, घर से होनेवाले संवहन (कम्युनिकेशन) पर मुखिया का नियंतरण, आस पड़ोस के लोगों को रात बेरात इमर्जेंसी में मदद, कोई भी खास खबर किसी के बाबत हो लोगों से पहले खबर हो जाना, मंत्री-एम एल ऐ -एम पी- सरकारी अफसरों से संपर्क. फ़ोन एक दुर्लभ सुविधा होती थी उस समय. फ़ोन गढ़ में भी था और डाक्टर साहब के बंगले पर भी, मगर इस राजसी विलासिता का लाभ बिछडे प्रेमियों को कहाँ. मैं ऊँची दीवारों वाले किलेनुमा गढ़ में प्रकट रूप से पुस्तकों में डूबा हुआ था मगर मन मेरा हर पल- शुभा शुभा पुकारता था. दीवारों पर टंगी देशी विदेशी पेंटिंग्स की नायिकाओं में मुझे शुभा दीखती थी. मूर्तियों में भी चाहे वो वीनस की हो, सीता की या राधा की मुझे बस यही लगता था कि वह शुभा ही है. दादीसा जब भी राधाकिशन की लीला वाले

भजन गाती मुझे लगता उनमें मेरा और शुभा का वर्णन है. उधर डाक्टर साहब के खुले बंगले का हाल भी कुछ ऐसा ही था. शुभा थी साहित्य की विद्यार्थी, समय समय पर कुछ प्रेम प्रसंग पढने के दौरान आ ही जाते थे जिन्हें वह हम दोनों से जोड़ कर खुश होती थी , दुखी होती थी, व्याकुल होती थी, आकुल होती थी, आह्लादित होती थी. कभी कभी अवसाद के रोगी कि तरह गाल पर हाथ रख विचारों में डूब जाना, शून्य में खो जाना, तो कभी मंद मंद मुस्कुराना.....ऐसे ही तो होता है ना आज भी. शुभा भी हर पल मेरी यादों में खोयी रहती थी......लॉन कि नरम घास पर टहलते टहलते वह नोट्स पढ़ती मगर आँखें बाहर कि तरफ ताकती कहीं मैं दिखाई दूँ चलता फिरता. यह बात और थी और उसे भी मालूम थी कि मेरा उसकी गलियों में आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा था.

डाक्टर साहब और ठाकुर साहब के खासमखास नुमायिंदे मेरे आने जाने पर नज़र रखते थे. आप सब ने भी प्रेम किया ही होगा, अगर ना किया हो तो प्रेम-सक्रिय लोगों के राजदार होने का अवसर आपको ज़रूर मिला होगा और यदि कुछ भी नहीं हुआ है आपके साथ तो चलिए अब अपना ज्ञान बढा लीजिये, प्रेम कि तड़फ किसी ना किसी तरहा ' means of communication' खोज ही लेती है. मोहब्बत एक ऐसा व्यक्तिगत आन्दोलन है जिसमें शिरकत करने बहुत ही सयाने और वफादार निस्वार्थ स्वयंसेवक बिना खोजे ही चले आते हैं.....जो काशिद का काम करते हैं, शोक अब्जोर्बेर के रूप में अपनी सेवाएं देते हैं, अपने तन-मन-धन से आपकी प्रेम यात्रा में अपना सहयोग देते हैं. . आपकी प्रेम भरी, तड़फ भरी बकवास सुनने वे अपने कान आपको समर्पित करते हैं.....एक ही सुर में आप अपने प्रेमपात्र कि प्रशंसा और भर्त्सना करते हैं, लेकिन यह श्रोता तटस्थ भाव से सुनते हैं.....रूचि लेकर, यह जानते हुए कि उसकी बात कर आप उसे याद फार्म रहे हैं, सुकून पा रहे हैं....चाहे तारीफ हो या कुछ और. ज़रुरत पड़ने पर बिना अपना निरादर समझे वे आपको मौका भी देंगे अकेले में मिलने का, बस आपको एस्कोर्ट किया और खुद दरकिनार. कवियों, कथाकारों, साहित्यिकों ने प्रेमी प्रेमिका और खलनायकों पर जी भर के अपनी कलम को घुमाया है, मगर ना जाने क्यों, प्रेम यज्ञ के इन पुरोहितों के योगदान में सम्बन्ध में सब मौन रह गए. मुझे मौका मिला तो एक बड़ा सा ग्रन्थ इन के लिए लिखूंगा. हाँ तो ऐसे ही मित्रों का सहयोग हमें भी मिल गया......मेरी चचेरी बहन तेजल और उसका चचेरा भाई रविकांत हमारे लिए ' ब्लू डार्ट' बने थे , हमारे खतों के आदान प्रदान के लिए.
हाँ तो आपस में पत्रों का आदान प्रदान बहुत सुकून देता था. तेजल शुभा के घर के पास गिटार सीखने जाती थी. ऐसे भी तेजल और शुभा में बहुत पटड़ी खाती थी, तेजल उम्र में शुभा से कोई पॉँच साल छोटी थी. वह भी बांगड़ कालेज में अंग्रेजी साहित्य लेकर बीए कर रही थी., इस नाते दोनों की करीबियों को एक और बहाना मिल गया था. रवि का आना जाना हमारे यहाँ लगा ही रहता था, कभी क्रिकेट क्लब के सिलसिले में, तो कभी किसी रिकॉर्ड, केसेट या नाविल के लेने देने के लिए. तेजल मेरे ख़त शुभा तक पहुंचाती और रवि ने संभाल रखा था शुभा के पत्रों को मुझ तक पहुँचने का जिम्मा. मुझे हर दिन रवि के आने का इन्तेज़ार रहता....मेरा अति विशिष्ठ अतिथि हो गया था रवि. उधर तेजल के भाव भी ऊँचाइयों पर थे.....रवि और तेजल, दीदी (शुभा) और भैय्या (मैं) के स्नेह और विश्वाश के पात्र बने हुए थे, उनके अंतर और अहम् का खूब पोषण तो हो ही रहा था, प्रेमकौशल का पूरा प्रशिक्षण भी उनका हो रहा था. कभी कभी तो लगने लगता था कि कहीं तेजल और रवि का भी चक्कर ना चल जाये, माहौल जो प्रेममय हो गया था. दोनों बहुत ही खूबसूरती से अपने काम को अंजाम दे रहे थे. लगातार एक दूसरे की अभिव्यक्ति हम दोनों तक पहुँच जाने से मन एवं प्रेम कि बेल हरी हो रही थी और निरंतर विकासमान थी.
आप से कुछ प्रेम पत्रों को शेयर करने का इच्छुक हूँ ताकि आपकी जानकारी कथानक के विषय में और बढ़ सके.

मेरा एक ख़त शुभा के नाम.......

'S'

यूँ लगता है जैसे मेरी दुनिया तुम में सिमट कर रह गयी हो. हर पल मेरी साँसों में तुम्हारा प्यार लहराता है. जाने अनजाने कुछ भी कहता हूँ महसूस करता हूँ कि तुम्ही को संबोधित कर के कह रहा हूँ. दादीसा कहती है कि अज्जू ! दिन कि शुरुआत करणीजी (हमारी कुलदेवी) के नाम से होनी चाहिए मगर सच कहता हूँ मैं जब भी कोई नाम लेता हूँ , लबों पर बस तुम्हारा ही नाम आता है. सोचों और भावनाओं में केवल तुम ही समा गयी हो. पढने के लिए जब भी किताब खोलता हूँ, सफों पर लिखे हर लफ्ज़ के हिज्जे तुम्हारे नाम के हिज्जे दिखाई देते हैं. कल ही की लो, मैं सार्त्र के अस्तित्ववाद को पढ़ रहा था.....पेज के पेज पलट गया मगर जो मैंने पढ़ा और सोचा वह था कि मेरा अस्तित्व तुम बिन नहीं. किताब में रखी तुम्हारी तस्वीर को जब देखता हूँ एक बार नहीं बार बार तब जा कर कुछ पढ़ पाता हूँ. तुम से मिलने पर जो ताज़गी हासिल होती थी, जो स्फूर्ति मिलती थी वह मुझे बहुत कुछ करने कि ताक़त मुहैय्या कराती थी. आज तुम्हे देखे बिना मैं शक्तिशून्य हो गया हूँ. मुझे लगता है मैं परीक्षा में जब बैठूँगा तो 'answer sheets' में कहीं तुम्हारा नाम, तुम्हारा नाम और सिर्फ तुम्हारे नाम ना लिख दूँ. बीए में युनिवेर्सिटी को टॉप कर 'गोल्ड मैडल' पाया था, इस बार कहीं असफल ना हो जाऊँ. या अलगाव इतना कुछ कर देगा मेरे लिए सोचा नहीं था. कहतें हैं प्यार में इंसान मज़बूत बनता है मगर मैं तो कमज़ोर हो गया हूँ. जुदाई का गम और भविष्य कि चिंताएँ बारी बारी से मुझे सता रहे हैं, तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ ?

मेरे जीसा और तुम्हारे पापा कि जिद्द है कि हमारी राहें अलग अलग हो. येन केन प्रकारेण उनकी कोशिश रहेगी कि मैं किसी ठिकाने की राजकंवरी का हाथ थाम लूँ और तुम्हारा जीवन साथी कोई उच्च कुलीन ब्राहमण पुत्र हो. दोनों का दावा है कि "हमने दुनिया देखी है, समाज नाम कि कोई चीज भी होती है जिसके रिवाजों का पालन करना हम कुलीन लोगों का परम कर्त्तव्य होता है. आखिर समाज का सञ्चालन हमारे जैसे वंश ही करते हैं." मुझे उनके सारे तर्क और विवेचनाएँ लकीर के फ़कीर बनने की एक मनोवृति मात्र लगतें है. तुम्ही बताओ, हम दो व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक दूसरे के होने का फैसला किया है....हम पिछले पांच वर्ष से समझ रहे हैं एक दूसरे को. हम ने अनुभव किया है भगवान ने हमें धरती पर जीवन साथी बनने के लिए भेजा है, ना जाने क्यों हमारे 'अपने' ही परमात्मा की इच्छा के खिलाफ क्यों जाना चाह रहे हैं ? shubha, I am totally confused......क्या होगा हमारा ? हमें जल्द ही कुछ सोचना होगा. दुनिया कि कोई भी ताक़त मुझे अपनी शुभा से जुदा नहीं कर सकती. इसके लिए जो भी करना पड़ेगा मैं करूँगा, बस तुम्हारा साथ मुझे सम्बल देगा. तुम साथ दोगी ना शुभा ?
तुम्हे इतना लिख कर, मैं स्वयम को शांत पा रहा हूँ. अब पढ़ सकूँगा. तुम अपना ख़याल रखना. तुम्हे और मुझे मास्टर्स में अपनी अपनी स्ट्रीम में टोप्पर्स होना है. हमारा प्यार हमें यह पाने की ताक़त देगा. ख़त का जवाब ज़रूर देना. मुझे इन्तेज़ार है मेरी शुभा के हाथों लिखी पाती का.
लव !
'A'

शुभा की पाती मेरे नाम

'A'
तुम्हारा ख़त मानो एक ताज़ा हवा का झोंका हो.पढने से पहले ही मैंने तुम्हारे सन्देश को ह्रदय से लगा लिया था ताकि ह्रदय से निकली हर बात सीधा ह्रदय को स्पर्श कर ले..... और सच में मैंने महसूस कर लिया तुम किस मनस्थिति में हो.
तुमने दिल की हर बात को कागज़ पर उतार दिया है. सोचों में विरोधाभास होना स्वाभाविक है. हम या तो 'consistent' हो सकते हैं, या प्रेम भरे जीवन को जी सकते हैं. धैर्य रखो मेरे 'हिये के हार' ! समय पाकर सब ठीक हो जायेगा. कुछ दिनों के अलगाव को तुम ने पूरी ज़िन्दगी कि जुदाई समझ लिया है. कितनी खुशकिस्मत हूँ मैं कि मुझे तुम सा प्यार करनेवाला महबूब मिला. विरह कि अगन हमें तपा कर सोने से कुंदन बना रही है. हमें फ़िलहाल अपनी परीक्षा की तैय्यारियों की तरफ ध्यान देना है ताकि हम वो पा सकें जो हम ने सोचा है और जिसका जिक्र तुम ने अपने ख़त में किया है. मैं दोहराती हूँ कि M.A.(Philosophy) के टोप्पर का नाम होगा कुंवर अजय सिंह और M.A. (English Literature) में सब से ऊपर होगी कु. शुभा पाण्डेय. जैसे अर्जुन को चिडियां की आँख दिखाई दे रही थी, उस वक़्त, जिसका निशाना उसे साधना था, हमें भी बस अपना यह लक्ष्य दिखाई दे रहा है.

जीसा और पापा जिस पीढी और परिवेश से हैं वे ऐसा ही तो सोचेंगे. परिवर्तन जीवन का नियम है. इन दोनों से कहेंगे हम कि आप अपने रहन सहन और सोचों के सामने आज से चार पीढी पहले के बुजुर्गों को ले आईये.....और देखिये कितना अंतर आ गया है. समय का यह धारा तो लगातार बहता जाता है. देखना दोनों पढ़े लिखे हैं, ज़िन्दगी देखी है....ज़रूर सचाई को अपनाएंगे. फिलहाल हमें इन बातों को लेकर बोझिल नहीं होना चाहिए. यथासमय जो उपयुक्त होगा करेंगे.
तुम्हारे साथ बिताये गए पलों को याद कर मैं हमेशा नयी ताक़त पाती हूँ, तुम्हारे प्रेम, तुम्हारे स्पर्श के सुखद एहसास मुझे स्फूर्ति देते हैं......मैं बहुत अच्छे से परीक्षा की तैय्यारियों में जुटी हुई हूँ. मुझे अच्छा लगा, तुम ने जो कुछ मेरे लिए लिखा. बस यही कहूँगी कि प्रातः का प्रारम्भ प्रभु स्मरण से हो तो, प्रभु तक हमारा सन्देश पहुंचेगा और वह हमें अवश्य मिलाएगा. तुम मेरी प्रेरणा के स्त्रोत हो....तुम अगर मायूसी में डूब गए तो मेरा क्या होगा ? थोड़े दिनों कि बात है, तुम अपनी सारी शक्ति, जो सामने है उस उद्देश्य के लिए झोंक दो.....मुझे बहुत नजदीकी का एहसास होगा.
हाँ मुझे किताब में छुपी तुम्हारी तस्वीर को बार बार नहीं देखना होता, क्यों कि तुम तो मेरे रौं रौं में बसे हो, हर समय मेरे साथ हो.....मेरा जर्रा जर्रा तुम्हे महसूस करता है, कभी मृदु, कभी मादक, कभी प्रेरक. अपना ख़याल रखना, समय पर खाना पीना सेहत के लिए ज़रूरी है, और अच्छी सेहत.....
लव
'S'

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