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Baaten Vinesh Ki
Monday, January 25, 2010
पवन....
$ $ $
मदमस्त
पवन ने
छूकर
तुम को
आहिस्ता से
छुआ था
मुझ को......
एहसास
तुम्हारे
महसूस
हुए थे,
अंतर की
गहरायी में
नैसर्गिक सा
प्रिये !
खिलखिलाते हुए
पाया था
तुझको.....
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मुल्ला नसरुद्दीन और पजेसिवनेस
बस एक नज़र ही काफी है........
नाज़ुक......
मौन.......
थी अपूरित मेरी आशा.........
पवन....
मुलाकात ना हुई
आबशार....
पलकें..........
लिंगरिंग' (Lingering)..........
बसंत......(आशु रचना )
फूट आयी है कोंपलें .......(आशु रचना)
घाव.....(आशु रचना)
Scribblings : Journey
शुभा..:. पहली किश्त)
शुभा.:. दूसरी किश्त
शुभा : तीसरी किश्त
शुभा : चौथी किश्त
शुभा : पांचवी किश्त : वह कौन ?
शुभा : छठी किश्त : शिवांगी
शुभा सातवीं किश्त : मैं ही मुजरिम मैं ही मुंसिफ......
शुभा :बच्चे : कुतर्क ( ?) शिवांगी के (आठवीं किश्त)
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Padhta hun, padhata hun, khud ki khoz ke safar men hun.
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