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भीगी पलकों पर
रखे थे
ज्यों ही
अधर,
जन्मों से
बिछुड़े होने के
एहसास
और
उस पल
मिलन का
अमृत,
घुल गए थे
संग संग......
मुंदती पलकों के
स्वप्न
लगे थे
पुकारने
और
झुकती पलकों के
निमंत्रण ने
खिला दिया था
अंग अंग.......
वो झूले सी
पलकें
तन-मन को
झुला कर
मूंद गयी थी
फिर
बिखरा कर
हर ओर
रंग रंग.......
भीगी पलकों पर
रखे थे
ज्यों ही
अधर,
जन्मों से
बिछुड़े होने के
एहसास
और
उस पल
मिलन का
अमृत,
घुल गए थे
संग संग......
मुंदती पलकों के
स्वप्न
लगे थे
पुकारने
और
झुकती पलकों के
निमंत्रण ने
खिला दिया था
अंग अंग.......
वो झूले सी
पलकें
तन-मन को
झुला कर
मूंद गयी थी
फिर
बिखरा कर
हर ओर
रंग रंग.......
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