Sunday, February 15, 2009

एक प्रश्न महा सती सीता मैया से ...


स्वपन में
दर्शन हुए थे
सीता माता के
वही दृश्य था
राजा राम ने
गर्भवती सीता को
अपनी अर्धांगिनी सीता को
हर स्थिति में
साथ देनेवाली साथिन को
दे दिया था गृह निष्कासन
और मार्ग में
मिल गया था उन्हें
मुझ सा पथिक
यक्ष का शिष्य
अति जिज्ञासु
प्रश्न करने को हर क्षण आतुर.

पूछा था मैने:
मैय्या !
आश्चर्य है
घोर आश्चर्य !
इन्ही श्री राम ने
तुम से पाणिग्रहण
अभियान में जाने की यात्रा में
किया था उद्धार अहल्या का
करके घोषित
उसे निष्कलंक और निष्पाप…..
देते हुए परिचय अपनी
उदार दृष्टि का

और आज वे ही लंका विजेता
महाबली रावन के संहारक
भारत सम्राट
दे रहे हैं दंड
होकर भयाक्रांत लोकोपवाद से
अपनी धर्मं-पत्नी को
स्वयं द्वारा निर्धारित
सफल अग्नि परीक्षा के उपरांत भी…..
ऐसा क्यों हो रहा है, मैय्या ?

अश्रुपूरित नयनों
और मलिन भाव-भंगिमा के साथ
महान नारी महासती सीता ने कहा था :
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे !"

स्वपन भंग हो गया था;
पुरुष मनोविज्ञान के विश्लेषण
पर दिया हुआ व्याख्यान शायद
अवचेतन में मेरे समाहित था
तभी तो देखा था अनदेखे को
सुना था अनकहे को……….
अपने आंसू पोंछ
सो गया था मैं फिर
जय सिया-राम का उदघोष लगा कर.
सपना सच था या संस्कार ?
शेष रह गया था बस
यही प्रश्न मेरा मुझ से।



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