Thursday, February 12, 2009

बस चले आओ.........(दीवानी सीरीज)

उसका सोच था एक दिन:

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तुम्हारे बिना
खालीपन
खोखलापन
अँधेरा
रुके रुके से
कदम.....

क्यूँ ना भर दूँ
आशाओं से
खालीपन को ?
क्यूँ ना
गिरती दीवारों को
उठाकर
कर दूँ
तामीर
एक पक्की दीवार की....?

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मेरा सोच था उस दिन :

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मेरे अँधेरे
मेरा खालीपन
समां का
खोखलापन
मेरे थमे थमे से
सांस
कर रहे है
इंतज़ार तुम्हारा....

आओ ना
चले आओ
भरने
अपनी उम्मीदों से
अपनी तवस्सुम से
अपनी मासूमियत से
मेरे खालीपन को,
कर दो ना
रोशन
मेरे अंधेरों को,
चलो ना
कदमों से कदम
मिला कर......

गर देना है साथ
तो
ये उदास उदास से
एहसास क्यूँ
खोये खोये से
अंदाज़ क्यूँ
बुझे बुझे
सवाल क्यूँ ???
चले आओ
बस चले आओ......

चाहिए किसको
तामीर दीवारों की,
बसायें क्यों ना हम
जहां अपना
तले
खुले आकाश के .....

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