Thursday, February 12, 2009

बोनसाई ...(दीवानी सीरिज)

दीवानी की बात :

ना जाने क्यों उसने कहा था :

# # #

नारी मानो
कमरे में रखा
पौधा है
गमले का,
नहीं मिलता
जिसे
खुला आकाश,
फैलना है
जिसे
दीवारों के
भीतर ही.....

मैने कहा था :

# # #

माना कि
संसार है
एक कमरा
दीवारों से
घिरा
छत है
जिसकी
आकाश,
नर हो या
नारी
फैल तो
सकतें हैं
मगर
छू नहीं सकते
इस आसमानी
छत को....

क्यूं कि,
हर-एक का
होता है
कद अपना,
सहारों का भी
कमरों का भी
तुम्हारा भी
मेरा भी.....

फिर :

क्यूँ फैलते हो
इतना कि
गिरने
टूटने
और
मिटने के
सिवा
कोई दूसरा
हस्र ना हो...

नहीं है
हम
पौधे
किसी
गमले के
क्यों
उलझें
मिसालों की
कल्पनाओं में,
बढ़ने
और
फैलनेवाले तो
गिरा देते हैं
दीवारें.......


No comments:

Post a Comment