शिव,
आदि गुरु
महा नर्तक
महा दानी
अनाभिव्यक्त
इन्द्रियातीत
प्रेम के आदि
प्रणेता………..
शिष्य
देवी,
अर्धांगिनी
शिव की
पावन पवित्र
लिए पूर्ण
ग्राहयता……..
देवी के प्रश्न
शिव के प्रत्युत्तर
वार्ता हृदय की
हृदय से,
दर्शन नहीं कोई
प्रतिस्थापन नहीं कतिपय
बस है यह
संवाद प्रेम का
प्रेमालाप
निर्द्वंद
न है विवाद
न है हिंसा
न ही आक्रामकता……
विनिष्ट हुए
पूर्वाग्रह
धारणाएं कुंठित
विस्मृत हुआ अतीत;
हुआ था विसर्जन
मन का
सृजन वर्तमान का
भंगित हुई मूर्च्छितता…….
नर -नारी का
पुरुष-प्रकृति का
अद्भुत सम्मिलन
द्वैत का अतिक्रमण
स्पर्श शिखर का
आलौकिक अनुभव
तिरोहित विषमता
हुई घटित
अनिर्वचनीय एकात्मकता …….
सौरभ विस्तृत
दश-दिशी
आलोक प्रकाशित
सप्तऋषितन मन उच्चारित
दिन-निशि
जागृत चैतन्य
घटित जागरूकता…………
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