हर सहर
नए पैगाम
लाती है
हर शाम
छलकते जाम
लाती है
सहर-ओ-शब् के
दरमियाँ है जो
चन्द घड़िया
वे कुछ
भले बुरे
इलज़ाम लाती है .
ए मेरे खफा
खफा से दोस्त !
ज़िन्दगी
मेरे खातिर
न कोई आगाज़
न ही अंजाम
लाती है.
(यह एक नयी सीरीज की शुरुआत है-ज़ज्बा-ए-कबूलियत याने आत्म स्वीकृति की भावना या सेंटीमेंट्स ऑफ़ कन्फेशन )
नए पैगाम
लाती है
हर शाम
छलकते जाम
लाती है
सहर-ओ-शब् के
दरमियाँ है जो
चन्द घड़िया
वे कुछ
भले बुरे
इलज़ाम लाती है .
ए मेरे खफा
खफा से दोस्त !
ज़िन्दगी
मेरे खातिर
न कोई आगाज़
न ही अंजाम
लाती है.
(यह एक नयी सीरीज की शुरुआत है-ज़ज्बा-ए-कबूलियत याने आत्म स्वीकृति की भावना या सेंटीमेंट्स ऑफ़ कन्फेशन )
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