Saturday, February 28, 2009

जज्बा-ए -कबूलियत -सहर-ओ-शब


हर सहर
नए पैगाम
लाती है
हर शाम
छलकते जाम
लाती है
सहर--शब् के
दरमियाँ है जो
चन्द घड़िया
वे कुछ
भले बुरे
इलज़ाम लाती है .
मेरे खफा
खफा से दोस्त !
ज़िन्दगी
मेरे खातिर
कोई आगाज़
ही अंजाम
लाती है.

(यह एक नयी सीरीज की शुरुआत है-ज़ज्बा--कबूलियत याने आत्म स्वीकृति की भावना या सेंटीमेंट्स ऑफ़ कन्फेशन )

No comments:

Post a Comment