Tuesday, February 10, 2009

अस्तित्व



विशाल सागर से
भर लिया था
एक लघु पात्र मैं ने
एवम
लगा था
समझने
उसी को
पूर्ण अस्तित्व
मेरा अस्तित्व
विराट अस्तित्व से
पृथक
सह-प्राणियों से न्यारा
करने पोषित
मेरे मिथ्या
अहम् को......

करने सिद्ध
अस्तित्व
उस अस्तित्वहीन का
कर डाले थे अनगिनत
वृथा करतब मैं ने
एक अबोध
बच्चे की तरहा
जो मोटर गाड़ियों के
छोटे छोटे
मोडेल्स को
समझने लगता है
वास्तविकता
खेलते हुए उन-से
झूठ मूठ में.........

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