Thursday, February 12, 2009

नैया बिन पतवार

गल बहियाँ ना डारो मोरे साजन
ननदी खड़ी है दुआर रे
खुद पर काबू रखो मोरे बालम
बदनामी के आसार रे.

रात बहुत ही होवे है लम्बी
करके रहूँ सिंगार रे
धन कटनी की रुत है आई
खेत करे इंतज़ार रे.

जिस्म जरूरी है मेरे संगी
पर कैसे यह तकरार रे
जिंदगी नहीं है एक तमाशा
खुद पर करो एतबार रे.

तड़प वही है मेरे दिल में
नहीं ओछा अपना प्यार रे
दो से नहीं बने है दुनिया
अपना सब संसार रे.

मुलुक गाँव और दोस्त हमारे
यह अपना परवार रे
कैसे नदिया पार करेगी
नैया बिन पतवार रे.

(यह बात मैने एक एक्स-कलीग से सुनी थी जो पाकिस्तान से था और हम लोग वर्ल्ड बैंक के एक प्रोजेक्ट पर साथ कम किये थे.

इसमें एक पढ़ी लिखी लड़की की कहानी है जिसकी शादी एक किसान नौजवान से होती है, जो कि बहुत ही भावुक हो कर काम और परिवार से मुंह मोड लेता है, और हर समय बीवी का साथ चाहता है और कैसे उसकी बीवी उसे समझाती है यह बात इस गीत में है.)

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