Saturday, March 13, 2010

बावरी रे बावरी !

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मधुवत मुस्कान
सजीली शान
अभिनीत अभिमान
नन्ही सी जान
विस्तृत जैसे विभावरी
बावरी रे बावरी !

चपल से भाव
गंभीर स्वभाव
प्रकृति का प्रवाह
शीतल सा ताव
मादक ज्यों कादंबरी
बावरी रे बावरी !

अनूठे अन्दाज़
नित नए साज़
गहरी आवाज़
इठलाई सी लाज
यह नार कोई दिसावरी
बावरी रे बावरी !

उजला है तन
पावन है मन
आह्लादित प्रतिक्षण
क्यूँ बरसे नयन
जलधार गंगा गोदावरी
बावरी रे बावरी !

सुबह का दिनकर
संध्या का दिवाकर
दिवस का उजास
रजनी उल्लास
सुशीतल मेरी सरवरी
बावरी रे बावरी!

रूठे ज्यूँ बालक
टूठे सम प्रतिपालक
देकर कभी झलक
जगा जाये अलख
यूँ विविध रूप जामेवरी
बावरी रे बावरी !



(टुठे= तुष्ठिमान हो जाये, मेहरबान हो जाये, उदार हो जाये. प्रतिपालक=पालनहार. जामेवरी=बेल बूटेदार जैसे कि कश्मीर का जमेवारी काम....शाल पर अन्य ड्रेस मटेरियलप)

2 comments:

  1. Bahut khubsurat sir...bahut hi badhiyaa

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  2. shukriya, avinashji. bahut khushi hui ki aap yahan aaaye...aapki pratiksha rahegi.

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