Saturday, March 20, 2010

काँप उठा विश्वास तुम्हारा.....: दीवानी की रचना

यह कविता उस ने नवरात्र में लिखी थी, साक्षात् दुर्गा का रूप झलक रहा है उसकी इस रचना में....उसके
diifeferent moods उसकी रचनाओं में अनुभव होते हैं....इसे आप से शेयर करने से नहीं रोक सका, क्योंकि महक और मुदिताजी की फरमाईस भी है.

काँप उठा विश्वास तुम्हारा.....: दीवानी की रचना
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रजनी के
मध्यकाल में
दीपक की
एक
लौ के
माफिक
काँप उठा
विश्वास
तुम्हारा !

दर्द जहाँ का
जागा तुझ में,
करुणा का
सोता फूटा है,
पतझड़ जैसे
बिखर रहा है,
क्यों
प्रिय यूँ
मधुमास
तुम्हारा.....

मांगो ना
तुम मेरा
आँचल,
उम्मीदें
परवानों की
छल,
कैसे संभव
इस घेरे में,
प्रिय!
उन्मुक्त
विकास
हमारा......

स्नेहपूरित हो
जल ना
सकोगे,
यदि तिमिर से
तुम यूँ
डरोगे,
तूफानों से
लड़नेवाले !
क्यों होता
उपहास
हमारा......

(स्नेह को यहाँ दीपक के तेल के अर्थ में भी लिया गया है. स्नेह=तेल)

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