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पथिक !
करले
विश्राम
छांव में,
क्रोधी
सूरज
क्या कर लेगा,
तपेगा
रागी
घड़ी दो घड़ी,
उकता कर
खुद ही
ठर लेगा....
मत बन तू
खिलौना
हाथ वक़्त के,
कारवां
दुःख सुख का
अपनी मौज
चलेगा,
जलाये रख
जोत सांच की,
गंतव्य तुम्हे
अवश्यमेव
मिलेगा.....
व्याकुल
जब होगी
प्यास से माटी,
बादल
गगन का
समंद
बनेगा,
बढ़ने तो दे
कुटुंब कंस का,
किशन कोई
निश्चित
जन्मेगा....
(An old write of my student period)
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