Monday, March 22, 2010

अग्रिम जमानत....

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बनाया है
तुम ने
एक बंगला
न्यारा,
भव्य
विशाल
अत्यंत ही
प्यारा,
रहेंगे
इसमें
साथ
इन्सां
तेरे
मनचाहे,
मगर
होंगे
कुछ और भी
बाशिंदे
अनचाहे....

बैठेंगे
छज्जों पर
कबूतर,
भिन्नायेंगे
यहाँ वहां
मक्खी-ओ-मच्छर,
पंछी बनायेंगे
तिनकों से
घोंसले,
तिलचट्टे भी
दिखायेंगे
अजीब से
चोंचले,
कौवे
बिगाडेंगे
छत को
तुम्हारी
सांप भी
देंगे
कभी कभार
फुफकारी,
चूहे
बनायेंगे
बागीचे में
यहाँ वहां
बिल,
छिपकलियाँ
दौड़ेंगी
दीवारों पे
फिसल फिसल,
चमगादड़
अँधेरे
तहखानों में
उलटे
लटकेंगे,
म्याऊं म्याऊं
गाते हुए
बिल्ली-बिल्ले भी
भटकेंगे....

करदे तू
किसी भी
कचहरी में
नालिश,
जिरह करेंगे
वकील तेरे
कानूनन
निखालिश,
करते रहेंगे
ये सब
तेरी
अमानत में
खयानत,
वारंट इन पे
ना निकाल पायेगी
कोई भी
अदालत,
क्यूँ कि
दे दी है
इन सब को
ने
अग्रिम
जमानत....

(इंसान की फ़ित्रत और कुदरत की अनकही सच्चाई को लेकर बचपन में यह सब बातें राजस्थान में नानीसा से सुनी थी और मेरे स्कूल लाइफ में मैने एक तुकबंदी के रूप में कलम बंद की थी.....आज आप सब के साथ शेयर कर रहा हूँ...आशा है आपका स्नेह मिलेगा.)

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