Saturday, March 20, 2010

अंतिम दीप जलाया है.....

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आज प्रिये !
रजनी का
मैने
अंतिम
दीप
जलाया है.....

दे दे कर
अंतिम
आमंत्रण,
शेष रहे
शलभों को
मैने,
सद्य
यहाँ
बुलवाया है...

विदा करो
दीपक को
जलकर,
कल्याण
निहित है
इसमें
सबका,
बस
तथ्य
उन्हें
समझाया है.....

यदि
बचे रहे
इस बार
यहीं,
संभव पाना
है
प्यार
नहीं,
बलि चढ़ोगे
अंधकार की,
कटु
सत्य
उन्हें
बतलाया है.....

देखो
बाती भी
काँप रही है,
सन्निकट
समापन
भांप रही है,
स्नेह हो रहा
शुष्क
क्रमशः,
दृश्य
अंतिम
दर्शाया है.........

(पुराने संग्रह से-मुदिताजी के सहयोग से थोड़ा बहुत तब्दील किया है...फ्लो बेहतर करने के लिए, मूल भाव यथावत है)

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